Tuesday, January 23, 2018

नाग के फन पर विज्ञान!


हमारी पृथ्वी नागराज के फन पर टिकी हुई नहीं है, विज्ञान ने इसे बहुत पहले साबित कर दिया था. सूर्य पृथ्वी की नहीं, बल्कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है, इसे साबित हुए सदियों बीत गये. बहुत पहले माना जाता था कि नागराज हिलते-डुलते हैं तो भूकम्प आता है. आज यह बात कोई मूर्ख भी नहीं कहता.

पुरानी मान्यताओं एवं विश्वासों को विज्ञान की चुनौती मिलती रही है. विज्ञान की अवधारणाओं और सिद्धांतों को आगे चल कर खुद विज्ञान से चुनौती मिली है. उन्नत विज्ञान पुराने सिद्धांतों को प्रयोगों और प्रमाणों से पुष्ट करता है या इन्हीं आधारों पर पुराने को खारिज कर नये सिद्धांत बनाता है. इसी तरह मानव जाति ने तरक्की है.

पिछले दिनों केंन्द्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह ने यह कह कर सब को हैरत में डाल दिया कि डारविन का उत्पत्ति का सिद्धांतगलत है. उन्होंने तर्क दिया कि जबसे हम कहानियां सुनते आये हैं, जबसे किताबें लिखी जा रही हैं, आज तक किसी ने यह नहीं कहा या लिखा कि हमने जंगल में बंदर को मनुष्य बनते देखा. मंत्री जी ने सुझाव दिया कि स्कूली पाठ्यक्रम से डारविन का सिद्धांत हटा दिया जाना चाहिए. बच्चों को गलत पढ़ाया जा रहा है.

केंद्रीय राज्यमंत्री के बयान से देश का विज्ञानी समुदाय ही नहीं सामान्य जनता भी हतप्रभ है. उनके बयान पर दुख और अफसोस जाहिर किया गया है. विज्ञानियों ने दोहराया है को डारविन का उत्पत्ति का सिद्धांत, जो बताता है कि कभी मनुष्य के पूर्वज बन्दर थे या बंदरों और मनुष्य का विकास एक ही एक ही पूर्वज से हुआ, विज्ञान-सम्मत और सर्व-स्वीकार्य है. अब तक किसी दूसरे भाजपाई ने उनके बयान का समर्थन नहीं किया है. खण्डन भी नहीं.

सत्यपाल सिंह खूब पढ़े-लिखे इनसान हैं. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में पीएच-डी की है. राजनीति में आने से पहले वे आई पी एस में थे और मुम्बई के पुलिस कमिश्नर रहे. आज वे केंद्र सरकार में उस मानव संसाधन मंत्रालय में राज्यमंत्री हैं जिस पर देश को श्रेष्ठ शिक्षा-व्यवस्था देने का उत्तरदायित्व है.

डारविन के सिद्धांत को चुनौती न दी जा सके या अब तक न दी गयी हो, ऐसा नहीं है. विज्ञान के प्रत्येक सिद्धांत को ढेर सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता रहा. उत्पत्ति का सिद्धांत भी इन चुनौतियों से गुजरा लेकिन आज भी टिका हुआ और सर्व-मान्य है तो सिर्फ इसलिए कि उसकी काट सप्रमाण नहीं की जा सकी. विज्ञान प्रमाण की मांग करता है, जो सिद्ध किया जा सके.

हमारे विद्वान राज्यमंत्री को डारविन के सिद्धांत को चुनौती देनी है तो प्रमाण जुटा कर उसे गलत साबित करना होगा. विज्ञान जगत इसका स्वागत ही करेगा और मानव जाति उनकी ऋणी होगी कि उन्होंने सदियों से स्थापित एक सिद्धांत को गलत साबित करके नया सिद्धांत प्रतिपादित किया. सत्यपाल सिंह सच कहते हैं कि किसी ने जंगल में बंदर को आदमी बनते नहीं देखा. उत्पत्ति का सिद्धान्त कहता है कि इसमें करोड़ों वर्ष लगे. इस सृष्टि एवं मानव का विकास जादू से एकाएक बन्दर के मनुष्य में बदलने की तरह नहीं हुआ.

दुर्भाग्य से भाजपा के छोटे से बड़े नेता तक अक्सर अजब-गजब बयान देते रहते हैं, जिनका कोई आधार नहीं होता. वैज्ञानिक आधार तो कतई नहीं. राजस्थान के शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने कहा था कि गाय अकेला जानवर है जो सांस में आक्सीजन लेता ही नहीं छोड़ता भी है, कि गोबर में रेडियोधर्मिता-निरोधी गुण हैं, कि गोमूत्र से कैंसर ठीक हो जाता है. यह सच है या निरी गप, इसे सिद्ध करना कठिन नहीं. गोमूत्र से कैंसर का इलाज हो जाता तो हजारों मरीज इस दुस्साध्य रोग से क्यों मर रहे होते? गाय को पूजना आस्था की बात है. उसके बारे में झूठी, अवैज्ञानिक बातें करना क्या है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अक्टूबर 2014 में गणेश जी के संदर्भ में यह भाषण किया था कि जब मानव-धड़ में हाथी का सिर लगाया गया था, तब अवश्य ही हमारे यहां प्लास्टिक सर्जरी होती होगी. कर्ण अपनी मां की कोख के बाहर पैदा हुआ, इससे साबित होता है कि हमारे यहां तब जीनेटिक साइंस प्रचलित थी. प्लास्टिक सर्जरी के अति-उन्नत इस दौर में भी विज्ञान यह साबित नहीं कर सका है कि किसी पशु का सिर मानक धड़ में प्रत्यारोपित किया जा सकता है. बल्कि, विज्ञान ऐसे प्रयोगों का दुस्साहस नहीं करने देता.

ऊंची डिग्री धारी और उच्च पद पर आसीन होना इस बात की गारण्टी नहीं है कि उस व्यक्ति का दृष्टिकोण वैज्ञानिक हो. सामान्य, अनपढ़ मनुष्य का नजरिया वैज्ञानिक हो सकता है. यह जीवन को देखने की दृष्टि है, जो हमें आगे ले जाती है. अंधविश्वास या अवैज्ञानिक दृष्टिकोण पीछे धकेलते हैं. ऊंचे पद पर बैठा व्यक्ति, जिसके बहुत सारे समर्थक और अनुयायी होते हैं, उसकी ही दृष्टि संकुचित हो तो समाज में कैसा संदेश जाएगा?

हमारा जीवन वैसे ही अनेक अंधविश्वासों से घिरा है. सुदूर गांव-कस्बों में ही नहीं, बड़े शहरों तक में कई आदिम मान्यताएं प्रचलित हैं जो अक्सर बहुत अमानवीय और वीभत्स होती हैं. चिकित्सा विज्ञान की खूब प्रगति के बावजूद सांप के काटने या पीलिया हो जाने पर ओझा से झाड़-फूक कराते हुए कितने ही लोग मृत्य को प्राप्त होते हैं. मासिक-धर्म के दौरान आज भी अधिकसंख्य महिलाएं नारकीय स्थितियों में रहने को अभिशप्त हैं. किसी पेड़ के स्पर्श या किसी कुंए के जल से असाध्य रोगों के उपचार की अफवाह फैलते ही लाखों की भीड़ उस ओर दौड़ लगाती है. कभी जनता देव-प्रतिमाओं को दूध पिलाने उमड़ पड़ती है. व्यभिचारी और ठग बाबादेश भर में फल-फूल रहे हैं. बाबाराम रहीम के अपराध के किस्से खुलते हाल ही में देश भर ने देखे. उसके बाद भी आस्थाएंटूट नहीं रहीं. अनंत किस्से हैं. अवैज्ञानिक सोच गहरे पैठा है.

अगर सरकारों में बैठे मंत्री और बड़े नेता ही अवैज्ञानिक सोच से ग्रस्त होंगे तो जनता ऐसी मानसिकता से कैसे मुक्त होगीइस अवैज्ञानिकता को दूर करने की जिम्मेदारी किसकी है? क्या हमारी सरकारों ने शिक्षा-प्रणाली को ऐसा बनाने के बारे सोचा है जो अक्षर-ज्ञान से आगे जाकर जीवन की वैज्ञानिक समझ विकसित कर सके? ‘हिंदू-ज्ञान और परम्पराकी महानता साबित करने मात्र के लिए देश को पीछे ले जाना कहां की बुद्धिमानी है? और, जो चंद लोग अवैज्ञानिक सोच, ‘बाबाओंकी ठगी, और झूठे चमत्कारों के जाल से जनता को बचाने का अभियान चलाते हैं वे क्यों मारे जाते हैं?

वैज्ञानिक दृष्टि समस्याओं के समाधान में मददगार होती है और जीवन को सुन्दर बनाती है. अप्रमाणित मान्यताओं को चुनौती देना विज्ञान है. सप्रमाण स्थापित सिद्धांतों को खारिज करना कूप-मण्डूकता है.

(प्रभात खबर, 24 जनवरी, 2017) 


  

Friday, January 19, 2018

बच्चों को ऐसा-वैसा किसने बना दिया?


बच्चे के जन्म के चंद महीने बाद ही मम्मी-डैडीउसे सेपरेट बेडरूममें सुलाने लगते हैं.  बेडरूम बाकायदा सजाया जाता है. दीवारें विविध रंगों में सजाई जाती हैं. खिलौने भरे जाते हैं. सब कुछ होता है लेकिन उस अबोध के पास माता-पिता का अमृत-तुल्य स्पर्श नहीं होता. काफी बड़ा होने तक मां-बाप के बीच घुस कर, हर करवट किसी एक से चिपक कर सोने का सुरक्षा-कवच अब छिनता जा रहा है. बचपन अनाथ हो रहा है.

इस अनतर पर हम ध्यान नहीं देते. ध्यान देते हैं गुड़गांव के रेयान स्कूल की उस भयावह वारदात पर जिसमें ग्यारहवीं के एक लड़के ने अपने ही स्कूल के नन्हे बच्चे को बाथरूम में मार डाला था. कारण सिर्फ इतना कि वह स्कूल में छुट्टी कराना चाहता था. दु:ख और हैरत में कहते हैं कि देखो, कैसा समय आ गया. बच्चों में इतनी क्रूरता कहां से आ गयी!

कुछ महीने ही बीते हैं कि ठीक ऐसी वारदात लखनऊ के एक स्कूल में हो गयी. इस बार आरोपित सातवें दर्जे की एक छात्रा है, जिसने बताते हैं कि एक छोटे से बच्चे को स्कूल के बाथरूम में ले जाकर यह कहते हुए चाकू मारे कि तुझे मारूंगी तभी तो स्कूल में छुट्टी होगी. हम सदमे में आ जाते हैं और बेहद अफसोस के साथ कहते हैं कि आजकल के बच्चों को क्या होता जा रहा है.

क्या हम इस पर भी ध्यान देते हैं कि हमारी आधुनिकता का सबसे बड़ा शिकार बच्चे हुए हैं? बचपन कहते थे जिसे, वह उनसे छिन गया है. भयानक वारदात करने वाले दोनों बच्चे स्कूल की छुट्टी कराना चाहते थे. वजह जो भी रही हो, सच यह है कि आज बच्चों के पास किसी दिन स्कूल नहीं जाने की आजादी नहीं है. हम कभी-कभार स्कूल से जनरल फूटिंगकरके कंचे-पिन्नी-पतंग में मशगूल हो जाते थे.  किसी दिन मन नहीं हुआ तो बस्ता पेड़ पर टांग कर दिन भर गुल्ली-डंडा खेलने लग जाते थे. पकड़े जाते तो डांट पड़ती, पिटाई होती मगर तनाव और अवसाद हमारे बचपन के शब्द नहीं थे.

आज के बच्चे बहुत कड़े अनुशासन में बांध दिये गये हैं. नर्सरी क्लास से ऊंचे टारगेटहैं. मुंह व कपड़ों पर खाना पोतने और प्लेट गिराने का सुख नहीं, डायनिंग टेबल के मैनर्स सीखने का खौफ है. बच्चे तितलियों के पीछे नहीं भागते, मां-बाप की महत्वाकांक्षा के पीछे हाँके जाते हैं. बच्चा किसी कारण स्कूल नहीं जाना चाहता मगर उसे जबरन भेजा जाता है. वह एक दिन मां से चिपका रहना चाहता है, अपनी बात कहना चाहता है मगर उसे उल्टियां करते-करते भी स्कूल बस में ठूंस दिया जाता है. हमारी पीढ़ी की मां कहती थीं, मेरा बच्चा बचा रहेगा तभी तो पढ़ेगा. आज की मम्मियों की प्राथमिकता भावनाएं नहीं, लालन-पालन-शिक्षण का टारगेटेड प्लानहै. रेसके घोड़े को कतई पिछड़ने नहीं देना है.

बच्चे बहुत अकेले हैं. स्कूल में भी और घर में भी. उनके पास दादी-नानी की कहानियां नहीं हैं. उछल-कूद के लिए दोस्त नहीं हैं. भारी बस्ता है. खेल के नाम पर एकांत कमरे के मुर्दा गैजेट हैं जो जीवन की कम, मौत की कलाबाजियां ज्यादा सिखाते हैं. मां की मीठी लोरियों के साथ आती नींद नहीं है. अकेले बिस्तर पर सपने डराते हैं. नींद में चौंक कर जागते बच्चे आत्मीय आलिंगन ढूंढते हैं. उनके दिमाग में संग्राम छिड़ा है जिसकी अभिव्यक्ति खतरनाक ढंग से हो रही है.

और, हम हैरान हैं कि छोटे-छोटे बच्चे कैसे-कैसे अपराध करने लगे हैं.

 (सिटी तमाशा, नभाटा, 20 जनवरी, 2018 )

Friday, January 12, 2018

शहर में बढ़ता शोर और ‘यू पी-100’


दिन ही नहीं रातों का शोर भी इतना बढ़ गया है कि बड़ी आबादी परेशान है. पुलिस से शिकायत करने में डर के बावजूद  2017 में यूपी-100’ (पुलिस की त्वरित सेवा) ने ध्वनि प्रदूषण की 21 हजार शिकायतें दर्ज कीं. उच्च न्यायालय कई बार राज्य सरकार को निर्देशित कर चुका है कि लाउड स्पीकर पर रोक लगायी जाए. अब राज्य सरकार ने मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे, आदि का सर्वेक्षण शुरू किया है कि कहां-कहां बिना अनुमति के लाउड स्पीकर लगे हुए हैं. बिना अनुमति लाउड स्पीकर से शोर फैलाना दण्डनीय बनाया जाएगा.

सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश है कि रात दस बजे बाद किसी प्रकार का कानफाड़ू शोर न मचाया जाए. इस निर्देश की खूब अनदेखी होती है. प्रशासन और पुलिस देख कर भी अनजान बने रहते हैं. सबसे ज्यादा शोर बारातें मचाती हैं, आधी-आधी रात तक लेकिन यह चंद महीनों के कुछ खास दिनों ही रहता है.

साल भर शोर मचाने में डीजे, आदि अब आगे हैं. शहर जैसे-जैसे आधुनिक हो रहा है वैसे-वैसे खुली छतों पर रेस्त्रां एवं बार खोले जा रहे हैं- रूफ टॉप’. पीना और भयानक धूम-धड़ाके में नाचना आधुनिक होने की निशानी है.  वे खुली छ्तों पर डीजे लगाते हैं. उसका शोर दूर-दूर तक के लोगों को परेशान करता है. आस-पास वालों  घरों के खिड़की-दरवाजे बजते हैं.

यूपी-100’ ने एक साल में शोर की जो 21 हजार शिकायतें दर्ज कीं, उनमें अधिकसंख्य लखनऊ की हैं. पिछले कुछ महीनों से गोमती नगर के पत्रकारपुरम चौराहे पर भी एक रूफ टॉप खुल गया है. पांच मंजिली इमारत की छत पर खुले में जब डीजे बचता है तो ड्रम के धमाके ही नहीं नाचने वालों की चीखें भी आस-पास वालों को आधी रात तक सोने नहीं देतीं.

हमने एक रात 100नम्बर पर फोन किया. हम चकित और खुश हुए जब फौरन शिकायत दर्ज की गयी. एसएमएस आया कि कौन-सी गाड़ी हमारी शिकायत पर कार्रवाई करने निकली है.  तभी उस गाड़ी से फोन आ गया. आश्वासन दिया कि अभी डीजे बंद कराते हैं. शिकायत करने के चौदह मिनट बाद डीजे का शोर थम गया. हमने बड़ी राहत के साथ पुलिस को ट्वीटर पर थैंक-यूकहा.

अगली रात फिर डीजे चालू हो गया. तबसे लगभग रोज चालू हो जाता है. शनिवार-इतवार की रातों में तो शाम से देर रात तक. इस बीच हम कम से कम पांच बार शिकायत दर्ज करा चुके. हर बार थोड़ी देर में शोर शांत या बहुत कम करा दिया गया. अगली शाम से फिर चालू. कोई कितनी शिकायत करे!

रात में डीजे गैर-कानूनी है तो अगली ही रात डी जे क्यों चालू हो जाता है? दोबारा शिकायत नहीं की जाए तो शोर जारी रहता है. क्या जनता की शिकायत एक ही रात के लिए होती है? नियम का पालन एक ही रात के लिए कराया जाएगा, वह भी शिकायत पर?

अब देखना यह है कि लाउड-स्पीकर की अनुमति लेने का नियम सिर्फ धर्म-स्थलों तक रहता है या रूफ-टॉप डीजे भी इसकी जद में आते हैं. अब तक का अनुभव तो यही है कि हाई कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कुछ दिन कार्रवाई की जाती है.  फिर जो जैसा था, वैसा हो जाता है. अतिक्रमण हटाना हो या शोर थामना.

 (सिटी तमाशा, नभाटा, 13 जनवरी, 2018)

Wednesday, January 10, 2018

अब तीन तलाक की बाजी


नोटबंदी का फैसला अपने गम्भीर आर्थिक दुष्प्रभावों के बावजूद राजनैतिक रूप से नरेंद्र मोदी यानी भाजपा के पक्ष में रहा. क्या उसी तरह एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत)  के खिलाफ आपराधिक कानून बनाने का मोदी सरकार का फैसला उसे इस वर्ष होने वाले विधान सभा चुनावों और फिर 2019 के लोक सभा चुनाव में राजनैतिक फायदा पहुंचाएगा? अपनी विभिन्न सभाओं में मोदी प्रभावशाली वक्तृता से जनता को यह समझाने में सफल रहे कि एक हजार और पांच सौ रु के नोटों का चलन एकाएक बंद करने का उनका फैसला काले धन पर रोक लगाने और अमीरों एवं भ्रष्ट लोगों के खिलाफ बड़ी लड़ाई है. क्या लोक सभा से पारित और राज्य सभा में अटके तीन तलाक विरोधी विधेयक के जरिये मोदी सरकार अपने को मुस्लिम महिलाओं का उद्धारक साबित करने में सफल होगी?

कोशिश पुरजोर है और पहला दौर भाजपा के पक्ष में जाता दिखा है. विपक्ष, खासकर कांग्रेस की गति सांप- छछूंदर केरीहै. उगलते बने न निगलते. वह प्रकट रूप में इस विधेयक के समर्थन में दिख रही है लेकिन इसे तकनीकी कारणों  से उलझाये रख कर भाजपा को मुस्लिम महिलाओं का परम हितैषी बनने का श्रेय नहीं देना चाहती. लोक सभा में कांग्रेस ने अपेक्षाकृत शांत रहकर विधेयक को पारित हो जाने दिया. राज्य सभा में उसके सदस्यों ने विधेयक के कतिपय प्रावधानों के विरोध में बहस जरूर की लेकिन अपना स्वर विधेयक-समर्थक ही रखा. फिलहाल संयुक्त विपक्ष के दबाव में विधेयक अटक गया है. भाजपा अब यह प्रचार कर रही है  कि कांग्रेस ने राज्य सभा में विधेयक पारित नहीं होने दिया..

ध्रुवीकरण की राजनीति

यह धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति का चरम दौर है. मुस्लिम महिलाओं या कहिए समग्र रूप में देश की महिलाओं की स्थिति की चिंता किसी को नहीं है. सभी दल अपनी-अपनी राजनीति और वोट बैंक को ध्यान में रख कर सतर्क चाल चल रहे हैं. भाजपा संघ के निर्देशन में अपने हिंदूवादी एजेण्डे पर अब आक्रामक रवैया अपनाने लगी है. वह व्यापक हिंदू समाज को साफ संदेश दे रही है कि कांग्रेस तथा अन्य क्षेत्रीय दलों की तरह मुस्लिम तुष्टीकरण नहीं करने वाली. बल्कि साहसिकफैसले लेकर मुस्लिम समाज, विशेष रूप से महिलाओं को सशक्त बनाना चाहती है. इससे जहां उसका हिंदू वोट बैंक मजबूत होगा वहीं मुस्लिम महिलाओं का समर्थन भी हासिल हो सकेगा. कांग्रेस समेत अन्य राजनैतिक दलों की अब तक की मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीतिकी हिंदू-प्रतिक्रिया भाजपा की ध्रुवीकरण की राजनीति की मजबूत आधार-भूमि बनी है.

विडम्बना यह है कि मुस्लिम महिलाओं क्या, सभी महिलाओं की समानता और एक पूर्ण व्यक्ति के रूप में उनका सम्मान दांव पर है. तीन तलाक विरोधी विधेयक को ही लें. ऊपर से मुस्लिम महिलाओं को इस जलालत से उबारता दिखने वाला यह विधेयक जितना सख्त आपाराधिक कानून बनने वाला है, वह व्यापक बहस की मांग करता है. कई विद्वानों ने विधेयक के प्रावधानों का विश्लेषण करके बताया है कि कानून बन जाने पर अंतत: यह तलाक दिये जाने वाली महिलाओं की जिंदगी दूभर ही करेगा. इसकी आड़ में मुस्लिम-उत्पीड़न की सम्भावना बढ़ जाएगी, वगैरह.

विचार-विमर्श से किनारा

सामान्य परम्परा रही है कि किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय के निजी कानूनों में परिवर्तन से पहले उस समुदाय में व्यापक बहस कराई जाए, सलाह-मशविरे हों. भाजपा ने ऐसा कुछ नहीं किया, बल्कि वह इससे बचती आयी है. सुप्रीम कोर्ट के बहुमत वाले निर्णय की अनदेखी कर वह अल्पमत वाले निर्णय को ले उड़ी.  पांच में से तीन जजों का फैसला है कि एक बार में तीन तलाक न केवल इस्लाम विरोधी है बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 15 के अंतर्गत गैर-कानूनी है.  इस फैसले के बाद कानून बनाने की जरूरत नहीं थी. सुप्रीम कोर्ट का फैसला अपने आप में कानून है. भाजपा नेताओं ने अपनी शुरुआती प्रतिक्रिया में कहा भी था कि सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को गैर-कानूनी घोषित कर दिया है. इसके बाद कानून बनाने की आवश्यकता नहीं है.

बहुत जल्द भाजपा ने पैंतरा बदल दिया. उन्हें सुप्रीम कोर्ट के अल्पमत वाले फैसले में अपने राजनैतिक लाभ का सूत्र दिखाई दिया. दो न्यायाधीशों का मत था कि तीन तलाक गैर-कानूनी तो है लेकिन सरकार को चाहिए कि वह इसके लिए छह मास में एक कानून बनाए. बस, भाजपा सरकार फटाफट विधेयक बना लायी. इसके लिए उसने मुस्लिम विद्वानों, नेताओं, कानूनविदों और समाज के प्रबुद्ध लोगों  से सलाह-मशविरा करना भी जरूरी नहीं समझा.

चुनावी मुद्दा बनाया था

याद कीजिए कि उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन तलाक से मुस्लिम बहनोंका जीवन नारकीय होने का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था. उनकी चुनाव सभाओं में मुस्लिम महिलाओं की बड़ी उपस्थिति दिखाने की कोशिश की जाती थी. गोरक्षा की आड़ में मुसलमानों की  हत्याओं पर चुप लगा जाने वाले मोदी तीन तलाक के मुद्दे पर खूब बोलते थे. यह अचानक नहीं हुआ था. सर्वेक्षणकरवा कर यह बताया गया कि मुस्लिम समाज की सबसे बड़ी बुराई तीन तलाक प्रथा है. सर्वेक्षण करने वालों को मुसलमानों की गरीबी, अशिक्षा, और उनका मुख्य धारा से लगातार हाशिये पर धकेला जाना कोई समस्या नजर नहीं आया. सायरा बानो का मामला अदालत में था ही. बड़ी चतुराई से तीन तलाक को भाजपा ने चुनावी मुद्दा बनाया लिया.

नरेंद्र मोदी के नेतृत्त्व में भाजपा ने कांग्रेस की बहुतेरी कमजोरियों का खूब लाभ उठाया है. 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मुस्लिम नेताओं एवं धर्म-गुरुओं के दवाब में शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला संसद से पलटवाया न होता तो आज भाजपा को यह मौका न मिलता. आज मोदी ने सायरा बानो के मामले में कोर्ट के फैसले को अपना बड़ा राजनैतिक हथियार बना लिया है.

मुसलमानों का हर हाल में पक्ष लेती रही कांग्रेस की दिक्कत आज यह है कि मोदी की लोकप्रियता की काट के लिए उसे उदार हिंदुत्व का सहारा चाहिए तो मुसलमानों का समर्थन भी. यही हाल यूपी में सपा से लेकर बंगाल में ममता बनर्जी तक का है. भाजपा अपने हिंदू आधार को व्यापक बनाते हुए मुसलमानों, खासकर महिलाओं का समर्थन पाने का दांव चल रही है.

राजनीति के इन दांव-पेचों में कई जरूरी मुद्दे भुलाये जा रहे हैं. मीडिया भी इस खेल में आपादमस्तक डूबा है. बाजी तीन तलाक की है. चालें चली जा रही हैं. महिलाओं का वास्तविक हित बहस के केंद्र से बाहर है. तलाक-ए-बिद्दत जुल्म है. वह बंद होना चाहिए लेकिन क्या प्रस्तावित कानून इसका सही और सर्वोत्तम उपाय है? इसके दुष्परिणाम क्या-क्या हो सकते हैं? राजनीति की बिसात में जरूरी सवाल खो गये हैं.   


 ( नवीन जोशी, प्रभात खबर, 11 जनवरी, 2018)

Friday, January 05, 2018

मुख्यमंत्री से और शिकायत करोगे श्यामजी?


यह किस्सा सोनभद्र जिले में ओबरा के रहने वाले युवक श्यामजी मिश्र का है. उस इलाके में खनन पर रोक है लेकिन जो भी पार्टी सत्ता में होती है उसके नेता-ठेकेदार खनन कराते रहते हैं. इन दिनों भाजपा के कुछ नेता भी इसी अवैध धंधे में लगे होंगे. श्यामजी उनकी शिकायत करना चाहता था. किससे करता शिकायत? जिले के अफसर, डीएम, वगैरह सब जानते ही हैं. सत्ता की हनक के आगे ज्यादातर अधिकारी चुप लगाये रहते हैं.

अधिकसंख्य लोगों की तरह श्याम जी को भी लगा कि अधिकारियों से शिकायत करने को कोई लाभ नहीं. मुख्यमंत्री सुनें तो सुनें. इसीलिए हर शासनकाल में मुख्यमंत्री से मिलने वालों की लम्बी कतार होती है. जनता दर्शन में भीड़ उमड़ती है. यह अलग बात है कि उसमें मुख्यमंत्री जनता के दर्शन ही कर पाते हैं.

श्यामजी भी लखनऊ चला आया. वह मुख्यमंत्री निवास की तरफ गया. किसी भले पुलिस वाले ने उसे सी एम आवास के अधिकारियों तक पहुंचा दिया. उसने आने का मकसद बताया लेकिन अधिकारियों ने दो टूक कह दिया कि मुख्यमंत्री से मुलाकात नहीं हो सकती. श्यामजी निराश हो गया. मगर वह धुन का पक्का था. हताश वापस नहीं लौटना चाहता था. क्या करे?

मुख्यमंत्री निवास में उसे पता चला कि कुछ देर में वे अपने दफ्तर जाने वाले हैं. श्यामजी लोक भवन की तरफ चला आया. मुख्यमंत्री जब इधर आएंगे तो उनका ध्यान कैसे खींचा जाए? कैसे उन तक शिकायत पहुंचाई जाए? उसे मुख्यमंत्री का काफिला आते दिखा. उसने दुस्साहसिक फैसला किया, जैसा पहले भी कुछ निरुपाय लोग करते रहे हैं. वह दौ‌ड़ा और बीच सड़क पर लेट गया.

फिर जो होना था वही हुआ. उसे पुलिस ने धर दबोचा और मुख्यमंत्री की सुरक्षा में सेंध लगाने का संगीन मामला बनाकर गिरफतार कर लिया. मुख्यमंत्री आराम से अपने दफ्तर चले गये. श्यामजी को पुलिस पकाड़ ले गयी. मुख्यमंत्री को शायद कुछ पता भी न चला हो. या उन्हें बताया गया हो कि कोई युवक उन पर हमले के इरादे से आया था. उसे चुस्त सुरक्षा दस्ते ने पकड़ लिया. मीडिया को भी यही बताया गया.

गिरफ्तार श्यामजी से कड़ी पूछताछ की गयी. सुरक्षा अधिकारी साजिश का भंडाभोड़ करने में लगे रहे. भोला श्यामजी लगातार यही कहता रहा कि सोनभद्र में भाजपा नेताओं के अवैध खनन की शिकायत मुख्यमंत्री से करने आया हूं. मुख्यमंत्री तक अपनी बात पहुंचाने के लिए मैंने यह कदम उठाया.

किसी ने उसकी शिकायत मुख्यमंत्री तक नहीं पहुंचाई. उस पर किसी ने भरोसा नहीं किया होगा. उन्हें हमेशा कुछ सनसनीखेज ढूंढना होता है. चंद महीने पहले विश्वविद्यालय के कुछ युवक-युवतियां मुख्यमंत्री के काफिले के रास्ते में इसी मकसद से आ गये थे. उन्हें गम्भीर धाराओं में जेल भेज दिया गया था. उनकी जमानत बहुत समय बाद हो पायी. विश्वविद्यालय से भी उन्हें निकाल दिया गया था. मुख्यमंत्री की सुरक्षा का मामला बहुत गम्भीर होता है. श्यामजी को यह सब नहीं मालूम.

प्रदेश के बहुत सारे नागरिक सीधे मुख्यमंत्री तक अपनी बात पहुंचाना चाहते हैं -निजी दु:ख-दर्द से लेकर बड़े भ्रष्टाचार और अत्याचारों तक, क्योंकि नीचे सुनवाई नहीं होती. मुख्यमंत्री तक कोई कैसे पहुंचे.  वे अफसरों और सख्त सुरक्षा के घेरे में होते हैं. दुस्साहस करो तो सीधे जेल. इस लोकतंर में कोई अपनी बात सत्ता-शीर्ष तक कैसे पहुंचाए?


फिलहाल सोनभद्र में अवैध खनन जारी होगा और श्यामजी सलाखों के पीछे. वह मिले तो पूछना चाहूंगा, क्या अब भी किसी की शिकायत ऊपर तक पहुंचाने का इरादा है?
(सिटी तमाशा, नभटा, 06 जनवरी, 2017)

Wednesday, January 03, 2018

योगी के निशाने पर मदरसे क्यों हैं?


उत्तर प्रदेश के मदरसों के लिए पिछले वर्ष एक पोर्टल बनाकर रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करने तथा स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण एवं राष्ट्रगान की वीडियोग्राफी करने के फरमान के बाद नये साल में योगी सरकार ने उनकी विशेष धार्मिक छुट्टियों पर कैंची चला दी है. यही नहीं, रक्षाबंधन, महानवमी, दशहरा और दीवाली जैसे पर्वों पर मदरसों में अवकाश घोषित कर दिया है.
अभी तक उत्तर प्रदेश के मदरसों में मुस्लिम पर्वों पर विशेष अवकाश होता था. इसके अलावा वे होली और अम्बेडकर जयंती पर बंद रहते थे. दशहरा-दीवाली पर वहां छुट्टी की व्यवस्था नहीं थी.
योगी सरकार इससे पहले भी मदरसों के लिए कुछ फरमान जारी कर चुकी है. पिछले वर्ष जुलाई में उसने एक पोर्टल बनाया, जिस पर सभी मदरसों के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया था. इस पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन नहीं करने वाले मदरसे सरकारी अनुदान से वंचित हो जाएंगे.
मदरसों को स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने, राष्ट्रगान गाने और पूरे कार्यक्रम की वीडियो रिकॉर्डिंग कराके प्रशासन को भेजने के निर्देश भी योगी सरकार ने बीती अगस्त में जारी किये थे.
दस की बजाय सिर्फ चार  छुट्टियां
प्रदेश में उन्नीस हजार से कुछ ज्यादा मदरसे हैं. उनमें अभी तक मुस्लिम पर्वों पर दस छुट्टियों की व्यवस्था थी. ईद व मुहर्रम जैसे मौकों पर मदरसों के व्यवस्थापक अपने हिसाब से कुल दस दिन छुट्टी कर सकते थे. सन 2018 के नये सरकारी कलेण्डर के मुताबिक अब वे इन अवसरों पर सिर्फ चार दिन अवकाश रख सकते हैं. वह भी एक बार में एक दिन से ज्यादा नहीं.
कोई मदरसा किस दिन अवकाश रखेगा, यह सूचना उसे एक सप्ताह पहले जिला अल्पसंख्यक अधिकारी को लिखित रूप में देनी होगी.
मदरसों के लिए नये कैलेण्डर में मुस्लिम पर्वों पर छुट्टियों की कटौली करने के साथ सात नये अवकाश जोड़े गये हैं. इसके मुताबिक अब उन्हें महानवमी, दशहरा, दीपावली, बुद्ध पूर्णिमा, महावीर जयंती, और क्रिसमस पर भी अवकाश रखना होगा.   
टाइम्स ऑफ इण्डियामें बुधवार को प्रमुखता से प्रकाशित एक रिपोर्ट में मदरसा बोर्ड के रजिस्ट्रार राहुल गुप्ता ने बताया है कि पहले दस दिन का अवकाश मदरसा व्यवस्थापकों के विवेक पर रहता था लेकिन अब चार दिन का अवकाश पूर्व-निर्धारित होगा.
नये निर्देशों के अनुसार स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर मदरसों में पढ़ाई नहीं होगी लेकिन विद्यार्थियों, शिक्षकों, कर्मचारियों और प्रबंधकों को मदरसे में आयोजित कार्यक्रमों में शामिल होना होगा.
मदरसों पर नियंत्रण बढ़ा
प्रदेश में भाजपा की प्रचण्ड विजय के बाद गोरक्ष पीठ के महंत आदित्यनाथ योगी के नेतृत्त्व में बनी सरकार के इन कदमों को मुस्लिम संस्थाओं पर नजर रखने और उनकी स्वायत्तता छीनने के रूप में देखा जा रहा है.  योगी की छवि आक्रामक हिंदू नेता की है. मुख्यमंत्री बनने से पहले उनके कई मुस्लिम विरोधी बयान विवाद का मुद्दा रहे हैं.
मदरसों की छुट्टियों में कटौती और गैर-मुस्लिम पर्वों पर छुट्टियां अनिवार्य करने का ताजा फैसला सरकार के मुस्लिम विरोधी रवैये के रूप में देखा जा रहा है. एक मदरसा मौलवी ने नाम न लिखने की शर्त पर कहा कि मदरसे धार्मिक शैक्षिक संस्थान हैं. उनमें अपने धार्मिक पर्वों पर छुट्टी होती रही है. दशहरा-दीवाली पर छुट्टी हो, यह तो ठीक है लेकिन मुस्लिम पर्वों पर छुट्टी कम करना आपत्तिजनक है. इस फैसले की मुस्लिम समाज में तीव्र प्रतिक्रिया होगी.
देश-प्रेम पर शक’?
मुस्लिम संस्थाओं ने पिछले वर्ष भी पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करने और स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रमों की वीडियोग्राफी करने वाले फैसलों आलोचना की थी. सरकार का कहना था कि सरकारी पोर्टल पर मदरसों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करने का उद्देश्य उनके काम-काज में पारदर्शिता, गुणवत्ता और विश्वसनीयता लाना है.
स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रमों की वीडियोग्राफी कराने पर मुस्लिम संगठनों की तीखी प्रतिक्रिया थी कि यह इस देश के मुसलमानों के देश-प्रेम पर शक करने जैसा है. 
भाजपा और हिंदूवादी संगठन मदरसों को अच्छी नजर से नहीं देखते रहे हैं. मदरसों के खिलाफ अक्सर वे बयानबाजी करते हैं. यह भी आरोप लगाया जाता रहा है कि सीमा पर कुछ मदरसे चरमपंथियों को आश्रय देते हैं.
मुसलमानों में असुरक्षा-बोध
योगी सरकार के कतिपय निर्णयों से ही नहीं, भाजपा के कुछ विधायकों के बयानों से भी प्रदेश के मुसलमानों में असुरक्षा की भावना बढ़ रही है.
मुजफ्फरनहर की खटौली सीट से भाजपा विधायक विक्रम सैनी ने नये साल के अवसर पर आयोजित एक समारोह में कहा कि “कुछ नालायक नेताओं ने इन लम्बी दाढ़ी वालों को यहां रोक कर रखा. इन लोगों ने जमीन और दौलत हथियाई. अगर ये ना होते तो यह सब हमारा होता ... यह देश हिंदुओं का है.”
भाजपा विधायक का यह बयान मीडिया में तो आया ही, उसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है. इस तरह के बयान बीच-बीच में भाजपा और संघ नेताओं के मुंह से सुनने में आ रहे हैं. मुख्यमंत्री या अन्य वरिष्ठ नेता अपने विधायकों को ऐसी टिप्पणियां करने से बरज नहीं रहे.
उलटे, सरकार के कुछ फैसलों से भी मुसलमानों में आशंका व्याप रही है.

(https://hindi.firstpost.com/politics/yogi-adityanath-cut-madarsa-holidays-why-are-the-madarsas-on-the-target-of-the-yogi-after-coming-to-power-78613.html)