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Friday, October 22, 2021

रजत जयंती से अमृत महोत्सव तक

यह उन दिनों की बात है जब आज़ादी की रजत जयंती आने में चंद वर्ष शेष थे। कभी स्कूल से आने पर हम बच्चे पाते कि मुहल्ले में टीकेलगाने वाली टीम हमारी प्रतीक्षा कर रही है। वे टीकेबहुत दर्द करते थे। हमें तरह-तरह से समझाकर टीके लगवाए जाते। कोई हाथ पकड़ता और कोई बाजू में दवा लगाकर किर्रकरने वाली बड़ी-सी सुई चुभाकर घुमा देता। उस जगह एक रक्तिम नन्हा गोला बन जाता जो कई दिन दर्द करता। बाद में हमने जाना वह लखनऊ नगर महापालिका के स्वास्थ्य कर्मियों की टीम होती थी।

उन दिनों लखनऊ छोटा-सा शहर था। नगर निगम नहीं, नगर महापालिका थी। वह भी नगर पालिका से कुछ समय पहले ही प्रोन्नत हुई थी। सामान्य से एक मुहल्ले में जहां हम रहते थे, अक्सर नगर महापालिका के स्वास्थ्य एवं स्वच्छता विभागों के दल आते। कभी वह सबको टीके लगाते, कभी बुखार, रक्त, आदि की जांच करते थे। साफ-सफाई नियमित होती थी। हफ्ते-दस दिन में नालियों के किनारे, कचरा फेंकने वाली जगहों पर चूने, गैमक्सीन, आदि का छिड़काव होता था। कभी बीमारियां फैलतीं तो कर्मचारी आते और पीठ पर लदी मशीनों से जलभराव की जगहों तथा नालियों में दवा डालते। तीखी बदबू वाली तैलीय दवा होती थी और उसकी गंध कई दिन तक रहती थी।

हमें याद है, अखबार में छपी छोटी-सी शिकायत पर पूरी नगर महापालिका में हल्ला मच जाता था। सम्पादक के नाम पत्रमें भी गंदगी या जल भराव या बीमारी फैलने की शिकायत छप जाने पर तुरंत कार्रवाई होती थी। नगर महापालिका की टीम उसी सुबह साफ-सफाई में जुट जाती। अखबारों का इतना असर होता था और नगर महापालिका का प्रशासन उत्तरदाई और चुस्त लगता था। प्रकाशित शिकायतों की कतरनें सम्बद्ध मंत्री और सचिव की मेजों पर रखी जाती थीं। वे जिम्मेदार अफसरों-कर्मचारिरों से जवाब तलब करते रहते थे।

आज सन 2021 में आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। मनाना अगले वर्ष चाहिए था जब स्वतंत्रता मिले 75 वर्ष होंगे। गौरवपूर्ण अवसर है इसलिए एक साल पहले से मना लेने में महोत्सव की प्रसन्नता दोगुनी ही होगी। आज़ादी मिलते समय हमारा देश कहां था और तरक्की करते-करते कहां पहुंच गया। अमृत महोत्सव का यही उद्देश्य होगा। साथ में यह भी कि क्या चुनौतियां हैं जिनसे निपटना है। अच्छा है, यह सब हिसाब-किताब करना।

दो दिन पहले ही अखबार में खबर पढ़ी कि लखनऊ नगर निगम के बाईस वार्डों में मच्छर मार दवा का छिड़काव इसलिए ठप हो गया क्योंकि दवा छिड़कने वाली गाड़ियों को पेट्रोल नहीं मिल पा रहा। पेट्रोल इसलिए नहीं मिल पाया क्योंकि पेट्रोल सप्लाई करने वाले को बकाया भुगतान नहीं हो पाया। राजधानी में डेंगू फैला हुआ है, फैलता जा रहा है। हालात चिंताजनक लगते हैं लेकिन मच्छर मार दवा का छिड़काव भी नगर निगम चुस्ती से नहीं कर पा रहा।  

लखनऊ नगर महापालिका से नगर निगम बने वर्षों हो गए। आज़ादी की रजत जयंती मनाए दशकों हो गए। अमृत महोत्सव के आयोजन चल रहे हैं और नगर निगम का हाल ये खबरें बता ही रही हैं। मीडिया में खबरें हैं। जनता शिकायत करते-करते थक जाती है। कोई पत्ता नहीं खड़कता। क्या कोई सचिव या मंत्री शिकायतें सुनता है? मीडिया की खबरों और जनता शिकायतों को कोई देखता है? मेयर को कभी–कभार शहर का दौरा करते और हालात पर नाराज होते देखा जाता है। मेयर के पास कितने अधिकार हैं?

आज़ादी के अमृत महोत्सव के समय लखनऊ जितना बड़ा है उसकी आवश्यकता के हिसाब से नगर निगम और उसके संसाधन पर्याप्त हैं क्या? उसकी कार्य संस्कृति आगे बढ़ी है या पिछड़ी है? और, बाकी सरकारी विभाग?

(सिटी तमाशा, नभाटा, 23 अक्टूबर, 2021)    

Friday, January 24, 2020

लखनऊ नगर निगम, विद्युत शवदाह गृह और मरा कुत्ता



यह पिछले सप्ताह की बात है. हम के के नय्यर साहब की पार्थिव देह लेकर भैंसाकुण्ड श्मशान घाट गए थे. विद्युत शवदाह गृह वह खराब पड़ा था. नीचे घाट पर जहां चिताएं जलती हैं, इतनी भीड़ थी जैसे बहुत विलम्ब से आ रही किसी ट्रेन को पकड़ने के लिए यात्री रेलवे प्लेटफॉर्म पर ठुंसे हों. हर निर्धारित ठौर पर चिताएं जल रही थीं और कई शव प्रतीक्षा में थे. उनके साथ आए शोकाकुल परिवारीजन-मित्र-सम्बंधी इधर-उधर दौड़ रहे थे कि इंतज़ार लम्बा न हो.

तीन दिन से बारिश हो रही थी. लकड़ियां गीली थी और आग नहीं पकड़ रही थीं. उन्हें राल डाल-डाल तक सुलगाने की कोशिश हो रही थी. चिरायंध भरा काला-भूरा धुआं पूरे घाट पर छाया हुआ था. जमीन पर कीचड़ था. शव आते जा रहे थे. उनके लिए बने विश्राम स्थल भरे हुए थे. आने वाले शवों को उसी कीचड़दार जमीन में थोड़ी साफ जगह ढूंढ कर  प्रतीक्षा करने के अलावा लोगों के पास कोई चारा नहीं था.

इनमें से कई अंत्येष्टियां विद्युत शवदाह गृह में होनी थी लेकिन वह खराब पड़ा था.  खराब पड़ा है या जान-बूझ कर बंद किया गया है- यह चर्चा चल रही थी. सब लकड़ी ठेकेदारों से मिले रहते हैं- यह आम धारणा थी.  हमारे सरकारी विभागों पर जनता का विश्वास रहा ही नहीं. मशीन वास्तव में खराब रही हो तो भी यही कहा जाता.

नगर निगम द्वारा संचालित घाट और विद्युत शवदाह गृह में कोई हलचल या संकेत नहीं थे जिनसे पता चले कि ज़िम्मेदारों को उसे ठीक कराने की चिंता है. किसी को फिक्र नहीं थी कि श्मशान घाट पर अपने प्रिय जनों के शव लेकर आए लोग किस कदर परेशान हैं. नगर निगम में ऊपर से नीचे तक सब उस बदली-बारिश और शीतलहरी वाले दिन कहीं आराम फरमा रहे थे. ज़िम्मेदार अभियंता का फोन बज रहा था लेकिन कोई उठा नहीं रहा था.

यह 2020 का साल है और लखनऊ नगर निगम अपने एकमात्र विद्युत शवदाह गृह को चालू रखने की हालत में नहीं है. हम पर्यावरण बचाने की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, हवा की गुणवत्ता खतरनाक होने पर कल-कारखाने बंद करते हैं, हर साल रिकॉर्ड पौधारोपण के दावे करते हैं लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि उत्तर प्रदेश की राजधानी में एक बिजली शवदाह घर नहीं चला सकते. कहां तो यह होना था कि भैंसाकुण्ड के अलावा शहर के दूसरे श्मशान घाटों पर भी एक से ज़्यादा विद्युत शवदाह घर होते. जनता को प्रेरित किया जाता कि वे इसी विधि से अंतिम संस्कार कराएं.  वास्तविकता यह है कि जो विद्युत शवदाह गृह का उपयोग करना चाहते हैं, उन्हें  भी ग्यारह मन लकड़ी फूंकने के लिए विवश किया जा रहा है.

चलते-चलते नगर निगम की एक और उपलब्धि को सलाम कर दें. बीते शनिवार को विनय खण्ड, पत्रकारपुरम के एक पार्क में कुत्ता मरा पड़ा होने की सूचना स्वच्छ भारत ऐप  पर डाली. तस्वीर भी अपलोड की. दूसरे दिन किन्ही पंकज भूषण जी की टिप्पणी ऐप पर थी-सेण्ट टु एसएफआई.इसका जो भी मतलब हो, उसी दिन अगली टिप्पणी थी-  वर्क इज डन.’ देखा तो मरा कुत्ता उसी जगह वैसे ही पड़ा था. फीडबैक में हमने लिखा कि "सॉरी सर, काम नहीं हुआ. रविवार 19 जनवरी को 11-06 बजे भी कुत्ता वहीं पड़ा है" इसका कोई ज़वाब नहीं आया. ऐप में हमारी शिकायत के सामने लिखा है कि 'रिजॉलव्ड' और सिटीजन संतुष्ट है.हमने फिर लिखना चाहा कि काम अब भी नहीं हुआ है लेकिन ऐप कह रहा है कि आप अपना फीडबैक दे चुकेन्हैन यानी 'सिटीजन सेटिसफाइड.'  हकीकत यह है कि 24 जनवरी की दोपहर भी मरा कुत्ता उसी जगह सड़ रहा है.

पूरा तंत्र एक मज़ाक बना हुआ है. हंसिए या रो लीजिए. 
  
(सिटी तमाशा, नभाटा, 25 जनवरी, 2020)