0नवीन जोशी
चुनाव नतीजों ने सरकार गठन के लिए सौदेबाजी, उठापटक और जोड़-तोड़ की सारी आशंकाएँ एक झटके में खत्म कर दी थीं। अपनी व्यस्तताएँ और तनाव भी एकाएक कम हो गए। ऐसे में लखनऊ की भीषण गर्मी से तनिक निजात पाने की ललक इस बार हमें सपरिवार चकराता ले गई। देहरादून से करीब 95 किमी दूर लगभग 7000 फुट की ऊँचाई पर बसा छोटा-सा नगर चकराता उम्मीद से कहीं ज्यादा शीतल, शान्त और सुहावना मिला, जहाँ अभी पर्यटकों की अराजक भीड़ ने प्रकृति को कुरूप नहीं किया है। जंगल, पहाड़, पानी, वनस्पतियाँ और जीव-जन्तु अभी यहाँ मनुष्यों की अनावश्यक दखल से अपेक्षाकृत मुक्त हैं।
23 मई की दोपहर बाद हम चकराता पहुँचे तो बाँज-बुरांश-देवदार के घने जंगलों में बादलों की छायाएँ उड़ने लगी थीं। मुख्य नगर से 7 किमी दूर एक छोटे और बिल्कुल शांत होटल पहुँचते-पहुँचते बारिश होने लगी। यात्रा की थकान उड़नछू हो गई। स्थानीय युवक बिट्टू चौहान ने पुलम और अखरोट के अपने बगीचे के बीच 7-8 कमरों का यह होटल विशाल चट्टानों वाली पहाड़ी की गोद में इस तरह बनाया है कि अतिथि ज्यादातर समय कमरा छोड़कर आंगन में ही बैठने-टहलने को मजबूर हो जाते हैं। हम फौरन बगीचे की सैर कर आए। अधपके पुलम लचकती शाखों से तोड़कर खाए। वनकाफल और हिसालू ढूँढ-ढूँढकर चखे और कच्चे किलमोड़े के हरे दानों को देखकर बचपन की यादों में बहुत पीछे तक जाते रहे। शाम बहुत ठण्डी हो गई थी लेकिन मन उतना ही सुकून से भर रहा था। साफ आसमान में चमकते तारों का ऐसा नजारा शहरों में दुर्लभ ही है और हमने दमकते सप्तऋषि मण्डल के ठीक नीचे बैठकर रात का खाना खाया। बिल्कुल घरेलू खाना।
24 मई की सुबह हम ‘टाइगर फाल्स’ देखने गए। कोई पन्द्रह किमी दूर सड़क किनारे गाड़ी रुकी तो कल्पना करना भी कठिन था कि भारत के सुन्दरतम और सबसे ऊँचे झरनों में से एक यहीं कहीं नीचे बह रहा होगा। कतई भीड़ नहीं थी, बल्कि तीखी ढाल में टेढ़ी-मेड़ी पगडण्डी पर उतरने वाले हम अकेले थे। सड़क किनारे चाय की छोटी दुकान चलाने वाले ने लता को लाठी पकड़ा दी थी-‘बहनजी, इसे ले जाइए, वर्ना दिक्कत होगी।’ उसने पैसे की कोई बात नहीं की। और वापसी में भी कोई संकेत नहीं दिया।
इतनी तीखी ढाल और खराब रास्ता कि एक बार तो हम बीच से ही लौटने को हो गए। डेढ़ किमी उतरना और फिर वापस चढ़ना- कैसे होगा? लेकिन हिम्मत की तो घण्टे भर बाद बहुत रोमांचकारी मोहक झरना हमारे सामने था। किसी ने बताया कि यह करीब 300 फुट ऊपर से गिरता है। अद्भुत। ऐसा सुन्दर झरना पहले नहीं देखा। हम वाह-वाह करते रह गए और कपड़े भीगने की चिंता किए बगैर मन तक तरबतर होते रहे। वहाँ मुश्किल से आठ-दस पर्यटक थे। चंद स्थानीय लड़के ईटों के अस्थाई चूल्हे और पिचकी डेगचियों में चाय बनाने और ‘मैगी’ उबालकर खिलाने को तैयार थे। बस। टाइगर फाल्स का अभी कतई व्यावसायीकरण नहीं हुआ है। चकराता में सैन्य छावनी के कारण विदेशी पर्यटकों के प्रवेश पर रोक है। हालांकि इसे ब्रितानियों ने बसाया था और ‘टाइगर फाल्स’ उन्ही का दिया नाम लगता है। झरना टाइगर की ही तरह गरजता है।
देर तक झरने की फुहारों के बीच बैठे हम सोचते रहे कि उत्तराखण्ड की सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर क्या कर रही है? इतनी सुन्दर जगह को बेहतर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करके स्थानीय गरीब जौनसारियों के जीवन में कुछ रंग लाए जा सकते हैं। सरकार ने यहाँ कुछ भी नहीं किया है। लेकिन फिर सोचा कि पर्यटन विकास के नाम पर हमारी सरकारें जो करती हैं वह प्रकृति को नष्ट करने और स्थानीय निवासियों का जीवन नरक बनाने के अलावा और होता ही क्या है। अच्छा है कि टाइगर फाल्स अपने स्वाभाविक स्वरूप में बह रहा है। चंद पर्यटक यहाँ आने का साहस करते हैं तो उन्हें प्रकृति का असली रूप-रंग तो नजर आता है।
अब डेढ़ किमी की कठिन चढ़ाई चढ़नी थी। डर रहे थे कि कैसे चढ़ेंगे लेकिन इस झरने ने दुखते घुटनों और फूलती सांसों वाले हमको इतना तरोताजा कर दिया था कि पता ही नहीं चला कि कब ऊपर सड़क तक आ गए। हमें रास्ता दिखाने के लिए स्थानीय लड़का दीवान सिंह खुद ही साथ लग गया था। हमारे सफल अभियान के सुखद समापन पर उसने हँसकर कहा-‘देखा, मैंने कहा था न कि कुछ कठिन नहीं है!’ दीवान सातवीं में पढ़ता है और छुट्टी के दिन पर्यटकों को झरने का कठिन रास्ता दिखाता है।
हम दो दिन-दो रात चकराता रहे। बिल्कुल निजर्न में बसा होटल हमें सुकून से भरता रहा। एक गुजराती परिवार वहाँ एक हफ्ते से ठहरा था। नौकरीशुदा अपने परदेसी बेटे-बेटी को भी उन्होंने वहीं बुला लिया था। परिवार के साथ छुट्टियाँ मनाने का यह कितना बढ़िया तरीका है- सारा समय अपना। न नाते-रिश्तेदार, न मित्र, न पार्टियाँ। और सबसे बड़ा सुकून यह कि मोबाइल की घण्टी यहाँ विरले ही बजती है। आसपास घूमने के लिए कई जगह हैं- जैसे देववन, जहाँ विशाल देवदार अचंभित करते हैं। लेकिन हम घूमने और अपने को थकाने नहीं गए थे। इसलिए ऐसी जगह चुपचाप पड़े रहना, प्रकृति को देखना और उसे सुनना-सराहना ही पर्याप्त लगा। टाइगर फाल्स को छोड़कर कही गए ही नहीं।
25 मई को वापसी का रास्ता हमने विकासनगर की बजाय मसूरी वाला चुना। चकराता से नीचे उतरे तो पूरी यमुना घाटी से लिपटी सर्पिल सड़क डराती-लुभाती रही। बाँज-बुरांश का घना जंगल बहुत दूर तक साथ रहा। यमुना में कितना कम पानी। अफसोस कि हमने अपनी नदियों का क्या हाल कर दिया है। मसूरी से पहले ‘कै म्पटी फाल’ के पास एक किमी तक सड़क के दोनों तरफ बसों और कारों का काफिला रास्ता जाम किए था। कैम्पटी फाल पर अराजक पर्यटकों ने हल्ला जैसा बोल रखा था। अत्यंत रोमांचक टाइगर फाल्स देखकर आए हम लोगों की कोई रुचि कैम्पटी फाल में नहीं थी। इसे पहले भी देखा है। भीड़ और भीषण गन्दगी से कैम्पटी फाल का सारा सौन्दर्य जाता रहा है।
दोपहर की धूप में मसूरी में काफी गर्मी थी। माल रोड, रेस्तरां और दुकानों पर पर्यटकों की भीड़ टूटी पड़ी थी। इतनी भाषा-बोलियाँ सुनने को मिलीं कि भारत की विशालता और विविधता का सहज ही साक्षात हो गया। मसूरी से भी हम घण्टे भर में भाग लिए। देहरादून होते हुए हरिद्वार-ऋषिकेश। दोनों जगह बहुत भीड़ और उमस भरी गर्मी। ऋषिकेश में गंगा किनारे कुछ देर बैठे। गंगा भी अब कहाँ गंगा रह गई। घाटों से दूर सहमी-सी बहती पतली धारा। क्या ये नदियाँ फिर कभी हहरा कर बहेंगी? बचपन में देखा-सुना इनका भव्य रूप और कल-कल निनाद क्या कभी लौटेगा?
चकराता की यह यात्रा हमें शांति और आनन्द से भर गई थी। नदियों का दुख मन में भर कर हम उस सुख को खोना नहीं चाहते। इसलिए नजरें फेर कर चुपचाप लौट आए।
लखनऊ में फिर बेहद चिपचिपी गर्मी है और बेशुमार भीड़। मगर मन के कोने से चकराता की शांत, शीतल वादियाँ और बाँज-बुरांश-देवदार के घने वन राहत पहुँचाते रहेंगे। फिर-फिर वहाँ जाने को मन करेगा।
याद आती है अज्ञेय की कविता-
पाश्र्व गिरि का नम्र
चीड़ों पर डगर चढ़ती उमंगों-सी
बिछी पैरों में नदी ज्यों दर्द की रेखा
मैंने आह भर देखा
दिया मन को दिलासा फिर आऊंगा
भले बरस-दिन-अनगिन-युगों बाद
क्षितिज ने पलक सी खोली
तमक कर दामिनी बोली
अरे यायावर, रहेगा याद?
12 comments:
Aapne hame bhi sair kara dee...chakrata kee..! Chitrmay shaili hai aapki!
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
अच्छी रचना। बधाई। ब्लॉगजगत में स्वागत।
narayan narayan
ब्लॉगजगत में आपका स्वागत है. इस
सार्थकता और गंभीरता को बनाये रखिये...
.. आपका अपना ही,
रेक्टर कथूरिया
http://punjabscreen.blogspot.com/
Rochak prawas warnan,jise ekhee saans me padh gayi..aur padhte, padhte kalpana lok me ghoom bhi aayee..!
बन्धू सुन्दर यात्रा वृतान्त लिखा आप ने
आप सब्का बहुत-बहुत धन्यवाद.
excellent. suprrb
अति सुन्दर वर्णण ।
जीवन दर्शन की ये बातें ,मन मेरा बहलाती हैं
आपका स्वागत है ब्लागिंग में ,हवाएं गुनगुनाती हैं
चकराता का बहुत सजीव चित्रण किया आपने।
चकराता का बहुत सजीव चित्रण किया आपने। उत्तराखण्ड में और भी कई ऐसी अनछुई जगहें हैं, उन्हीं को सामने लाने का गिलहरी प्रयास हम भी कर रहे हैं, कभी तशरीफ लाइये-
www.merapahad.com/forum
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