खबर है कि राजधानी के लोहिया पथ को और
चौड़ा किया जाएगा. अभी यह आठ लेन की सड़क है. अब दस लेन की बनाई जाएगी. हम सोच में
पड़ गए कि सरकार ने क्या सोच कर यह फैसला किया होगा? लोहिया पथ लखनऊ की सबसे अच्छी और चौड़ी सड़क है. आठ लेन की और
कोई सड़क यहां नहीं है. हर चार-छह महीने में मेण्टीनेंस के नाम पर उसमें लाखों रु
की लेयर बिछाई जाती है, रंग-रोगन किया
जाता है. पिछले सात-आठ सालों में इस मार्ग पर इतना कंक्रीट, सीमेंट और कोलतार बिछा दिया गया है कि हजारों साल बाद की
मानव सभ्यता (अगर बची रह गई तो!) हमारे समय के ‘विकास’ पर हैरत के साथ अध्ययन करते-करते थक जाएगी. वीवीआईपी
गाड़ियां ही नहीं, पूरा ट्रैफिक यहां
फर्राटा भरते गुजर जाता है. अब दो लेन और बना कर क्या फायदा होने वाला है और किसको? उलटे जनता परेशानी में पड़ने वाली है क्योंकि जियामऊ के पास
इस सड़क पर बनने वाला फुट ओवरब्रिज फिलहाल नहीं बनेगा. दस लेन की सड़क के लिए वह
बाधा बन रहा है, इसलिए. यह अलग बात है कि कालिदास मार्ग चौराहे के
मुहाने पर साल भर से बन रहे ‘कीर्ति स्तम्भों’ के कारण लोहिया पथ छह लेन का ही रह गया है.
क्या सरकार ऐसे फैसले लेते वक्त यह नहीं
सोचती होगी कि इनके बारे में जनता की क्या प्रतिक्रिया होगी? शायद ही कोई आम शहरी होगा जिसने लोहिया पथ की खबर पढ़ कर
नाक-भौं न सिकोड़ी हो. साथ में भद्दी-सी टिप्पणी भी जरूर की होगी. कारण यह कि आम
शहरी संकरी, गड्ढेदार और
बेतरतीब सड़कों से परेशान है. आए दिन अखबारों के पन्नों पर विभिन्न इलाकों के
मुहल्लों की नारकीय स्थितियों की तस्वीरें छपती रहती हैं. नालियां वहां बहती दिखती
हैं जहां सड़क नाम की चीज होनी चाहिए. इन हालात को दिन-रात झेलने वाली जनता लोहिया
पथ की खबर पढ़ कर क्या यही नहीं सोचेगी कि काश इस तरह बर्बाद किया जा रहा हमारा धन
शहर की ऊबड़-खाबड़ सड़कों को ठीक करने में लगाया जाता, उसका एक हिस्सा ही सही. लेकिन सरकार में बैठे लोग पता नहीं
किस तरह सोचते हैं.
जनता के लिए फैसले करने होते तो सरकार
हर इलाके में अच्छी सड़क बनवाती, उसे मेण्टेन कराती. वह हर मुहल्ले में, घरों तक पीने लायक पानी पहुंचाने की व्यवस्था कराती. बढ़ते
लोड से दगते ट्रांसफॉमरों को तुरंत बदलने के लिए बेहतर ट्रांसफॉर्मर स्टॉक में
रखवाती ताकि बिजली सप्लाई यथासंभव बनी रहे. रास्तों से अतिक्रमण हटवाती, बाजारों में महिलाओं-पुरुषों के वास्ते साफ-सुथरे शौचालय
बनवाती, गर्मी में
पर्याप्त छांव की और जाड़ों में शीतलहर से गरीबों को बचाने के इंतजाम करवाती. वह यह
भी देखती कि शहर में सस्ती और सुलभ नगर
बसें बराबर अंतराल पर चलें. मेट्रो का खूब गुणगान हो रहा है, उसके बावजूद सुचारू नगर बस सेवा की जरूरत बराबर बनी रहेगी.
ऐसे फैसले होते सुनाई-दिखाई नहीं देते.
होते भी हैं तो सिर्फ कागजी. उन पर अमल नहीं होता. चुनाव नजदीक आ रहे हैं. विभिन्न
वर्गों, जातीय गुटों को
रिझाने के लिए लुभावने फैसले होंगे. भत्ते बढ़ाए जाएंगे, नई छुट्टियां घोषित होंगी लेकिन ऐसा फैसला नहीं होगा जिससे
सरकारी काम-काज चुस्त-दुरुस्त हो, जनता को छोटे-छोटे काम के लिए महीनों दौड़ना न पड़े. देखिएगा कि लोहिया पथ को और चौड़ा करने का काम
युद्ध स्तर पर शुरू हो जाएगा. उधर पॉलिथीन पर रोक का बड़ा फैसला दम तोड़ गया. सरकार
अगर यह सोचती है कि जनता जानती-समझती नहीं तो वह भारी गलतफहमी में है. (नभाटा, 13 मई 2016)
1 comment:
बहुत सही लिखा है आपने नवीन जी। शहर के कई इलाके दुर्दशा को प्राप्त हैं और सर्कार व्यर्थ के कार्यों में पैसा खर्च कर रही है। मुझे यह भी आश्चर्य होता है कि सरकारें क्या इतना भी नहीं समझ पाती हैं कि पैसा किन कार्यों में खर्च करने पर उनको लोकप्रियता मिलेगी। पपुरे शहर की सड़के उधड़ी हुई हैं और ध्यान है केवल लोहिया पथ पर।
बहुत सुन्दर लेख। क्या सरकार के मंत्री व अधिकारी इन लेखों को पढ़ते होंगे और क्या इनके आधार पर अपनी योजनाओं में परिवर्तन करते होंगे नवीन जी ?
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