जब तक सत्ता के साथ हैं तब तक आपके सभी धतकर्म माफ हैं, आपके अवैध निर्माण
वैध हैं. अगर न्यायालय ने आपके अवैध निर्माण ढहाने के आदेश दिए हैं तब भी
आंख बंद रखी जाएगी या चंद ईंटें हिलाने की तस्वीरें अदालत में पेश कर दी जाएंगी.
सील इमारत के भीतर-भीतर निर्माण आप जारी रख सकेंगे और किसी ताकतवर राजनीतिक से
उसका उद्घाटन भी करा लेंगे. लेकिन यदि आपने बगावत कर दी तो आपके अवैध कार्य घनघोर
गैर-कानूनी हो जाएंगे और पूरी सरकारी ताकत लगाकर उसे ढहा दिया जाएगा. खोज-खोज कर
आपके वैध-अवैध काम निशाने पर लिए जाएंगे, जिन्हें
अब तक जानबूझ कर अनदेखा किया गया था. आपको जेल की हवा भी
खानी ही होगी. बस, एक नजर के टेढ़ी होने
का सवाल है. बागी सपा विधायक रामपाल यादव के अवैध निर्माण ढहाए जाने से और क्या
संदेश निकाले जा सकते हैं?
विधायक के अवैध निर्माण अवश्य गिराए जाने चाहिए थे, लेकिन तभी जब उनका पता चल गया था. कम से कम तब तो जरूर ही
ढहा दिए जाने चाहिए थे जब अदालत ने ऐसा निर्देश दिया था. राम पाल के ही नहीं, सभी विधायकों, नेताओं और दबंगों के
अवैध निर्माण गिराए जाने चाहिए क्योंकि उनका बनना गैर-कानूनी है. कानून पर अमल इस तराजू
से नहीं किया जाना चाहिए कि मामले का सबंध सत्ता के शत्रु से है या मित्र से.
मित्र के पापों को पुण्य मानना और शत्रु के पाप ढूंढ-ढूंढ कर सामने लाना न्याय
नहीं है. यह घोर अन्याय है और भयानक नजीर पेश करता है. इससे यह भी संदेश मिलता है
कि सत्ता का विरोध हरगिज न करना, वर्ना वही हश्र किया
जाएगा जो राम पाल का किया गया. यह साफ-साफ धमकी और दमन है.
राजधानी लखनऊ में सैकड़ों इमारतें अवैध बनी हैं और बनती जा रही हैं. हाई कोर्ट दर्जनों
भवनों को गिराने का आदेश दे चुका है. स्वयं लविप्रा की सूची में सैकड़ों अवैध
निर्माण दर्ज हैं. उन सबका बाल भी बांका नहीं हो रहा तो यही मानना चाहिए कि वे सब
सत्ता के मित्रों के हैं. यानी उन सब पर सत्ता-प्रतिष्ठान का वरद हस्त है. यहां सत्ता-प्रतिष्ठान
का अर्थ सिर्फ वर्तमान में सत्ता में काबिज लोगों से ही नहीं है. इसमें वे भी
शामिल हैं जो सत्ता में आते-जाते रहते हैं. इस मामले में सब चोर-चोर मौसेरे भाई
है. राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के बावजूद एक-दूसरे के अवैध कार्यों को ढके रखा जाता
है. सच कहा है कि शीशे के घरों में रहने वाले दूसरे के घर पत्थर नहीं फेंकते. राम पाल ने यही गलती कर दी थी. कोई बात नहीं, वह राजनीति में हैं और आगे चल कर नुकसान की खूब भरपाई कर
लेंगे.
अवैध निर्माण कौन होने देता है? क्या वह रातों रात
जमीन पर उग आते हैं? वह खुले आसमान के
नीचे पूरी रोशनी में होते हैं. जो जिम्मेदार हैं वे जानते हैं कि कहां अवैध
निर्माण हो रहे हैं और कौन उन्हें होने दे रहा है. लविप्रा का ही मामला लें तो
विविध स्तरीय इंजीनियरों की फौज इलाकावार तैनात है और उसे सब पता है. सत्ता में
बैठे लोग अगर चाहें कि अवैध निर्माण न हों तो इन इंजीनियरों के पेच कसे जा सकते
हैं. उन्हें जवाबदेह बनाया जा सकता है. एक भी अवैध निर्माण होने देने के लिए उन पर
कड़ी कार्रवाई की जा सकती है. ऐसा नहीं होता. जाहिर
है, पूरा तंत्र अवैध निर्माणों के
पक्ष में जुटा है. हां, राम पाल बनेंगे तो
पूरा तंत्र कानून का पालन करने में सक्रिय हो जाएगा. (नभाटा, 6 मई 2016)
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