Friday, August 27, 2021

पर्यटकों की मौज-मस्ती ठीक लेकिन वन्य जीवों की चिंता?

रेलवे ने दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में पर्यटकों के आनंद के लिए पारदर्शी डिब्बों (विस्टाडोम कोच) वाली ट्रेन चलाने का निर्णय तो कर लिया है लेकिन वहां के वन्य जीवों के जीवन में न्यूनतम व्यवधान डालने की नीति पर उसने या वन विभाग ने विचार किया है अथवा नहीं, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। इस मस्ती ट्रेनके लिए दो पारदर्शी डिब्बे मैलानी पहुंच भी गए हैं। अगले माह किसी समय ट्रेन चलाने की योजना है।

भारतीय रेलवे के विस्टाडोम कोचपर्यटकों की मौज-मस्ती के लिए बनाए गए हैं। इनमें बड़ी-बड़ी पारदर्शी खिड़कियां तो होती ही हैं, छत के भी आर-पार देखा जा सकता है। चलती ट्रेन से बाहर दोनों तरफ और ऊपर के दृश्यों में पर्यटक जैसे तैरते हों! डिब्बे के भीतर उनके आनंद और आराम के लिए सारी व्यवस्थाएं होती हैं। सामन्य ट्रेनों के यात्रियों को भले ही कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता हो, पर्यटकों को आकर्षित करने वाले डिब्बों, यात्रा-पैकेज और सुख-सुविधाओं का अच्छा ध्यान रखा जाने लगा है। विस्टाडोमकोच भारतीय रेलवे के विकास के प्रतीक भी हैं ही।

सवाल यह है कि दुधवा राष्ट्रीय उद्यान या किसी भी ऐसे उद्यान में जहां वन्य-जीवों का स्वतंत्र विचरण एवं संरक्षण मुख्य ध्येय है, क्या ट्रेन परिचालन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, वह भी सिर्फ पर्यटन के उद्देश्य से? हमारे यहां कई कारणों से राष्ट्रीय वन्य जीव अभयारण्यों (जहां उन्हें कोई भय न हो) के इर्द-गिर्द की मानव आबादी की सुविधाओं के लिए उनके बीच से सड़क और रेलवे लाइन भी चालू रखी गई हैं। इसकी कुछ कीमत इनसान चुकाते हैं लेकिन सबसे बड़ी कीमत वनचरों को चुकानी पड़ती है। अभी चंद दिन पहले ही तराई क्षेत्र से एक हथिनी और उसके छोटे बच्चे के ट्रेन से कटकर मरने की खबर आई थी। प्रथम दृष्टया उसमें मानवीय चूक ही पाई गई।

जंगल के बीच या आस-पास से गुजरती ट्रेनों या गाड़ियों से हाथियों एवं अन्य जानवरों के कुचले जाने की खबरें अक्सर आती हैं। इन हादसों को रोकने के लिए कोई कारगर व्यवस्था रेलवे तलाश पाया है न वन विभाग। दुधवा ही नहीं, जिम कॉर्बेट पार्क के भीतर और परिधि से भी आम यातायात वाली सड़कें गुजरती हैं जिनमें ट्रकों, यात्री बसों और टेम्पो को धड़धड़ाते जाते देखा जा सकता है। सड़कें भी तारकोल से पक्की बनाई गई हैं। जानवरों के अभय और शांतिमय जीवन के लिए जहां पयटकों को भी जोर से बोलना मना होना चाहिए

, वहां यातायात की चिल्लपों मची रहती है। वन्य जीवों का संरक्षण हमारी राष्ट्रीय नीति है लेकिन उसकी वैज्ञानिक समझ न सरकारों में है न जनता में। वन विभाग में भी वह समझदारी कितनी है, इस पर अक्सर सवालिया निशान लगते रहते हैं।

राष्ट्रीय वन्य जीव उद्यानों में पर्यटकों का स्वागत होना चाहिए। पर्यटन को बढ़ावा देने के अलावा वन्य जीवों तथा प्रकृति के प्रति प्रेम एवं समझदारी बढ़ाने के लिए भी यह आवश्यक है। इसके लिए विस्टाडोम ट्रेन' चलाना रेलवे और पर्यटकों दोनों के लिए लाभकारी हो सकता है लेकिन उससे पहले यह सुनिश्चित किया जाना जरूरी है कि उससे वन्य जीवों को कतई कोई असुविधा न हो। पर्यटकों की मस्ती का ही नहीं, अपने घर में पशुओं के सुख-चैन का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। इसके लिए ट्रेन के संचालन से जुड़े कर्मचारियों के साथ ही पर्यटकों को भी संवेदनशील बनाया जाना चाहिए। पर्यटकों की संवेदनहीनता के अनेक किस्से हम नाजुक हिमालय से लेकर राष्ट्रीय उद्यानों तक खूब देखते-सुनते हैं।

पर्यटन मात्र मौज-मस्ती नहीं है। वह सम्पूर्ण प्रकृति के आदर और उसकी सराहना का अत्यंत संवेदनशील विषय है।          

(सिटी तमाशा, नभाटा, 28 अगस्त, 2021) 

       

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