किसी को याद है कि दो-तीन महीने पहले ही प्रदेश सरकार ने
पॉलिथीन पर रोक लगाई थी? दुकानों से पॉलिथीन के थैलों में सामान
मिलना बंद हो गया था. पॉलिथीन निर्माताओं और सप्लायरों के ठिकानों पर छापे पड़ रहे
थे. लोग बाजार में घर से लाए गए थैलों के साथ दिखने लगे थे. दुकानों में कागज के
लिफाफों की आमद बढ़ गई थी. प्रदेश
मंत्रिमण्डल ने बाकयदा फैसला लिया था, अधिसूचना जारी की गई
थी और उस पर सख्ती से अमल के लिए जिला प्रशासन, नगर निगम,
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, आदि कुछ विभागों की
कमेटी बना दी गई थी. तभी हमने इस स्तम्भ में लिखा था कि पर्यावरण के इस बड़े शत्रु
पर अगर सचमुच रोक लग सकी तो इसका पूरा श्रेय अखिलेश सरकार को मिलेगा. ‘अगर’ शब्द का इस्तेमाल हमने जान-बूझ कर किया था.
पॉलिथिन-लॉबी इस फैसले को किसी भी तरह विफल करने पर उतारू थी. हमने
लिखा था कि आगामी चुनाव के मद्देनजर सरकार किसी लॉबी को नाराज नहीं करना चाहेगी.
देख लीजिए, फिर से धड़ल्ले से पॉलिथीन बन रही है,
बिक रही है और इस्तेमाल हो रही है. रोक पर अमल के जिम्मेदार विभाग
पहले एक दूसरे पर टालते रहे और फिर सब
शांत बैठ गए, यह कह कर कि प्रतिबंध को लागू करने के लिए
जरूरी नियमवाली ही नहीं बनी. जब मंत्रिमंडल ने फैसला कर लिया था और अधिसूचना भी
जारी कर दी गई थी तो नियमावली क्यों नहीं बनीं? सच्चाई यही
कि उसे बनने नहीं दिया गया. पॉलिथीन लॉबी को मालूम था कि सपा सरकार चुनावी मोड में
आ चुकी है और इस आड़ में अपना उल्लू सीधा किया जा सकता है. मीडिया धीरे-धीरे इस
मुद्दे को भूल गया और सरकार ने आंखें मूंद लीं. वर्ना ऐसा कैसे हो सकता था कि
प्रदेश मंत्रिमण्डल एक बड़ा फैसला करे और सरकार ही के विभाग उसे दफ्न कर दें?
जाहिर है सत्तारूढ़ पार्टी ही नहीं चाहती कि पॉलिथीन लॉबी नाराज हो.
सरकार में इतना भी साहस नहीं कि वह फैसला रद्द करने की घोषणा कर दे. उसकी तरफ से
आंखें मूंद लेना आसान और आजमाया हुआ उपाय है. चुनावी चंदे और वोट दोनों का महत्वपूर्ण
सवाल है. जनहित और पर्यावरण के मुद्दे गौण हैं.
गुटखा पर रोक लगाने का फैसला भी इसी सरकार ने क़िया था.
क्या हुआ? गुटखा लॉबी भी धंधे से मजबूत लॉबी है. पहले उसने भी विरोध का
रास्ता अपनाया, बाद में उसे अक्ल आई या समझा दिया गया. गुटखा
की परिभाषा पान मसाला और तम्बाकू के मिश्रण के रूप में की जाती है. सो, उन्होंने एक ही पाउच को दो हिस्सों में बांट कर मसाला अलग और तम्बाकू अलग
बेचना शुरू कर दिया, बस! सरकार का फैसला रह गया और उनका धंधा
भी चलता रहा. इससे कोई मतलब नहीं कि गुटखा पर रोक का मकसद जनता के स्वास्थ्य से
जुड़ा था. पॉलिथीन लॉबी ने भी रोक से बचने के लिए पहले ऐसी ही बहानेबाजी निकाली.
उन्होंने कैरी बैग बनाने की बजाय लिफाफे जैसे थैले बनाए जिसमें पकड़ने के लिए जगह
नहीं थी. कहा कि यह कैरी बैग नहीं हैं. रोक कैरी बैग पर लगी है. ये थैले खूब चलम
में हैं. नियमावली बनी नहीं थी, इसलिए प्रशासन कुछ कर नहीं
सका. हफ्ते-दस दिन बाद कैरी बैग वापस आ गए. जनता, जो खरीदारी
के लिए घर से अपने थैले ले जाना सीख रही थी, फिर से ढेर
पॉलिथीन लाने और खुले में फेंकने लगी है. और, नियमावली अब भी
नहीं बनी है. वह बनेगी भी नहीं. (नभाटा, 29 अप्रैल, 2016)
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