बचपन में हम बड़े मंगल का बेसब्री से इंतज़ार करते थे. सिंचाई विभाग के सामने की
जमीन पर कब्जा करके एक बाबा ने हनुमान जी को स्थापित कर लिया था. एक लम्बोतरे पत्थर को गेरुआ रंग कर माला पहना दी जाती थी. हमें वह पवन पुत्र की दिव्य प्रतिमा नजर आती थी. रोज शाम को आठ बजे आरती के समय हम घंटा बजाने
पहुंच जाते. बदले मेंअंजुरी भर लड्डू मिलते. खैर, बड़े
मंगल के दिन हम लाल लंगोट पहन, हाथ में एक पत्थर
लेकर घर से नंगे बदन सड़क नापते हुए हनुमान जी, बल्कि
बाबा के चरणों में माथा टेका करते थे. तब भक्त कम थे और जेठ का पहला मंगल ही बड़ा
मंगल कहलाता था. अब भक्त बहुत सारे हो गए तो सारे मंगल बड़े हो गए. सब भक्तों ही की
माया है. पहले इस दिन सिर्फ प्याऊ लगते थे, अमीर
भक्त शरबत पिला दिया करते थे, बस. कचौड़ी, छोले, मैगी, चाउमिन, हलुआ, आईसक्रीम, वगैरह का भण्डारा तो
आज के भक्तों की देन है. हनुमान जी वही
रहे, भक्त तरक्की कर गए. तरक्की का
प्रसाद है जो थोक के भाव बंटता है. तरक्की
कैसे और किस वजह से हुई, यह हनुमान जी जानें.
तो, पिछले बड़े मंगल को
हमारे वृद्ध मन ने धिक्कारा कि दो रोटी क्या मिलने लगी थी, हनुमान जी को ही भूल गए. अरे, किसी
बड़े मंगल पर भण्डारा कर डालो, बुढ़ापा धन्य हो
जाएगा. हमने भी सोचा, इस बार लाल लंगोटे
वाले की जय बोली जाए. अब नंगे बदन सड़क तो नहीं नापी जा सकती, सड़क किनारे तम्बू लगाकर कुछ प्रसाद बांट दिया जाए. शायद
हाउस टैक्स ही कुछ कम हो जाए. वैसे हमारे एक दोस्त बता रहे थे कि जो शुद्ध देशी घी
का हलुआ-पूरी दिन भर बांटते हैं, वे हाउस टैक्स तो
क्या, कोई भी टैक्स नहीं देते. उलटे, हनुमान जी के नाम पर खूब कमाई करते हैं . हमने घोषणा की- हे पवन सुत, अगले मंगल को हम भी
भण्डारा करेंगे, तुम्हारे नाम पर प्लास्टिक
के दोने में आलू-पूरी खिलाएंगे. कृपा रहे!
यह कहना था कि बजरंग बली साक्षात प्रकट हो गए. लाल लिबास, मुंह फुलाए, कंधे पर भारी गदा
धरे और लम्बी पूंछ दरवाजे पर पटकते हुए बोले- ‘खबरदार
रे, मेरे पूर्व भक्त, ऐसी गलती मत करना. तू विगत भक्त ही अच्छा. अब भक्त मत बन.
मैं भक्तों से बहुत आजिज आ गया हूँ.’ मैंने कहा- ‘हे वज्र देह, क्या हो गया? भक्त आप के नाम पर
सब कुछ लुटाए दे रहे हैं और आप हैं कि...’ वे
बोले- ‘तू जानता नहीं वत्स, आजकल के भक्तों ने अपने भगवानों की वाट लगा रखी है. वे इस
तरह पूजते हैं कि मेरी पूंछ ही गायब हो जाती है. प्रसाद खुद खाते-खवाते हैं और मैं
तमाम कचरे के नीचे सड़ता रहता हूं. प्रभु राम टोकते हैं कि बरसात से पहले सब
नालियां-नाले चोक करने का इंतजाम क्यों करा रहे हो. सीता मैया पल्लू से नाक दबाए बैठी रहती
हैं.’ फिर पवन पुत्र हाथ जोड़ कर
गिड़गिड़ाने लगे कि ‘वत्स, मुझे इन भक्तों से निजात दिलाने के लिए कुछ करो. पुण्य भक्त
कमाएं, और कचरा मेरे सिर! ऐसा रावण ने
भी मेरे साथ नहीं किया था.’
हम कहना चाहते थे कि हे बजरंगी, भक्तों पर कृपा तो
आप ही करते हो. अब वे सिर चढ़े हो गए
तो घबरा गए? मगर वे अंतर्धान हो
गए. हमने गौर किया तो पाया कि आजकल भांति-भांति के भक्त बहुत गंद फैला रहे हैं, कुछ प्लास्टिक मलवे से, बाकी
दिमागी कचरे से. (नभाटा, 27 मई 2016)
1 comment:
हे बजरंगी, भक्तों पर कृपा तो आप ही करते हो. अब वे सिर चढ़े हो गए तो घबरा गए?
अब भक्त बेशर्मी पर उतर आये तो भगवान् भी क्या करे ..लाचार हो जाते हैं न ..
रोचक व मर्मस्पर्शी प्रस्तुति
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