प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और अनेकानेक मंत्रियों के
झाड़ू लगाने या स्वच्छ भारत के बारे में भाषण देने से शहर या गांव-कस्बे साफ नहीं
होते. उसे आप दिखावा कह सकते हैं या अधिक से अधिक सफाई बरतने का संदेश ग्रहण कर
सकते हैं. विकास प्राधिकरणों, नगर निगमों, नगर पालिकाओं, आदि को अपने-अपने क्षेत्रों में
कायदे से सफाई न कराने का जिम्मेदार ठहराया जा सकता है क्योंकि यह उनका दायित्व
है. जितनी गंदगी रोज हमारे नगरों-कस्बों में निकलती है, उसे
रोजाना साफ करने की क्षमता इन निकायों में नहीं है. न पूरे संसाधन हैं, न पर्याप्त अमला. यह भी स्थापित सत्य है कि अपनी क्षमता भर भी ये निकाय
काम नहीं करते. भ्रष्टाचार, निकम्मापन और नेतागीरी हावी है.
सफाई में हमारा प्रदेश फिसड्डी है और गोण्डा देश में सबसे ज्यादा गंदा पाया जाता
है तो आश्चर्य क्या!
स्वच्छता सिर्फ सरकारी और स्वायत्तशासी विभागों का काम नहीं
है. यह हर नागरिक का भी काम है. वास्तव में यह काम नहीं है, सोच है. सफाई दिमाग में होती है और वहीं से निकलती है. आचार-विचार की सफाई
हो या मुहल्ले और शहर की, वह सबसे पहले दिमाग में होती है.
हमारा मुहल्ला गंदा है माने हमारे मुहल्ले के दिमागों में सफाई नहीं हैं. नगर-शहर
गंदे हैं तो उनके दिमाग साफ नहीं है. नगर निगम हों या नागरिक, बात माथे की है. समाज का माथा गंदा है.
मैं अपने घर में सफाई रखता हूँ. कूड़ेदान रखता हूँ और उसका
इस्तेमाल करता हूँ. मैं कागज-पत्तर हों या पान की पीक, कमरे के ओने-कोने में नहीं फेंकता. बाथरूम बराबर साफ रखता हूँ. नियमित
झाड़ू-पोचा लगाने की व्यवस्था है. गंदगी देखकर डांट लगाता हूँ. घर के बाहर निकलते
ही मैं बदल जाता हूँ. कहीं भी कचरा फेंक देता हूँ. पान की पीक से सड़क, सीढ़ी और दफ्तर की फर्श रंग देता हूँ. कहीं भी फारिग हो लेता हूँ. कुछ
खा-पीकर प्लास्टिक के कप-प्लेट जहां मर्जी आए, उछाल देता
हूँ. कहीं गंदगी देख कर बच कर निकलता हूँ और नगर निगम को कोसता हूँ. मेरा माथा
खराब है. मेरा मुहल्ला, मेरा शहर साफ हो ही नहीं सकता.
हनुमान जी और लक्ष्मण जी को नगर निगम की जिम्मेदारी देकर देख लीजिए.
हनुमान जी के नाम से याद आया. बड़े मंगल के पर्व शुरू होने
वाले हैं. पूड़ी-कचौड़ी, हलवा, खीर, शर्बत, आदि-आदि के भोग से हनुमत-सेवा करने का ठेका
देना है. पुण्य कमाना है. हनुमान जी बड़े दयालु हैं. बढ़िया प्रसाद बांटूंगा ताकि
मेरी ठगी, मेरा भ्रष्टाचार क्षम्य रहे. प्रसाद खिलाने और
खाने वाले को कचरा फैलाने में कोई पाप नहीं दिखता. पुण्य मिले न मिले, झूठे दोने, पत्तल, गिलास और
चम्मचों से सड़कें-नालियां भर जाएंगी. भक्ति में दूसरे से आगे निकलना है, गंदगी नहीं देखनी. हनुमान जी सब देख लेंगे. बेचारे बजरंगबली बोल पाते तो
बताते किभक्तों का खराब है.
कचरा बीन कर रोटी कमाने वाली बड़ी आबादी नहीं होती तो देखते
कि गन्दगी और सड़ांध से कैसे बजबजाते हमारे शहर. उनकी गरीबी और लाचारी ने विशाल
उपभोक्ता-वर्ग और भद्र-लोक का नरक भरसक साफ कर रखा है. नगर-निकायों की नाक कुछ बचा
रखी है. तो भी हमारे लिए वे गंदे और दुरदुराने लायक हैं. हमें सफाई रैंकिंग की नहीं, माथे के इलाज की
जरूरत है. (सिटेीीतमाशा, नभाटा, 6 मई 2017)
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