Friday, May 19, 2017

बदलाव आये तो भला किस रास्ते से?

सिटी तमाशा
हमारी तरह आप भी खुश हुए होंगे कि बड़े पैमाने पर पेट्रोल-डीजल की घटतौली पकड़ी जा रही है. तेल चोरी करने वाली चिपें बतौर सबूत जमा हो रही हैं. पकड़े गये पम्प सील किये जा रहे हैं. उनके मालिकों की पकड़-धक‌ड़ हो रही है. हमारा अब तक जो नुकसान हुआ, सो हुआ. अब आगे तेल चोरों की हिम्मत टूटेगी. औरों को भी सबक मिलेगा.
आम जनता हमेशा ऐसा सोचती है. कार्रवाइयों, वादों पर जल्दी भरोसा कर बैठती है. फिर उसका भ्रम टूटने लगता है. चोरी की पकड़ में काफी पम्प आ गये तो एक दिन पम्प मालिकों ने एकाएक हड़ताल कर दी. एसटीएफ और प्रशासन पर उत्पीड़न का आरोप लगा दिया. आरोप लगा दिया कि चोरी पकड़ने के नाम पर सताया जा रहा है. हड़ताल हुई तो तेल कम्पनियों और प्रशासन से बातचीत हुई. बीच का रास्ता निकाला गया कि जिन मशीनों में चिप लगी पायी गयी, सिर्फ उन्हें सील किया जाएगा. बाकी मशीनों से तेल बेचते रहेंगे.
फिर हम देखते हैं कि पम्पों पर छापे में एसटीएफ की भूमिका कम हो गयी. कहा गया कि उन्हें दूसरे जिलों में भेजा है. असलियत कुछ और निकली. घटतौली जांचने का जिम्मा आपूर्ति विभाग को मिल गया. उन्हें सब चाक-चौबंद मिलने लगा. मशीनों से छेड़छाड़ के यानी चिप निकाले जाने के सबूत मिले लेकिन उस मशीन को दुरस्त करार दिया गया. पकड़-धकड़ बंद. कोई रिपोर्ट नहीं. अब पम्प वालों को कोई शिकायत नहीं है. जनता हैरत में है कि हुआ क्या! किसी नये तरीके से फिर तेल चोरी होने लगे तो भी लम्बे समय तक कोई पत्ता नहीं हिलेगा.
दो दिन पहले की खबर है कि नेहरू एनक्लेव में एक नेताजी छत पर अवैध निर्माण करा रहे थे. पड़ोसियों ने शिकायत की. एलडीए के लोग तोड़ने गये तो नेताजी ने समर्थकों के साथ बवाल कर दिया. टीम लौट गयी. पुलिस ऐसे में भी मदद को आती नहीं. सड़क पर गरीब पंक्चर बनाने वाले, रेहड़ी-खोंचे वाले अतिक्रमण के नाम पर आये दिन उजाड़े जाते हैं लेकिन सड़क किनारे घोर अवैध इमारतें बिना कोई मानक पूरा किए शान से खड़ी हैं. उनहें तोड़ने का आधा-अधूरा नाटक रोज ही होता है.
मुख्यमंत्री योगी कह रहे हैं विधायकों से कि जनता से, अफसरों से शालीन व्यवहार कीजिए. अफसर विधायकों के हाथों पिट रहे हैं, गाली खा रहे हैं. दबंग हाथ पुलिस के गिरेबां पकड़ रहे हैं. नेता सत्तारूढ़ दल का हो या विपक्ष का उसकी अकड़ जा ही नहीं रही. लाल बत्ती बंद हो गयी, दबंगई नहीं गई. पुलिस एस्कॉर्ट है, निजी गनर हैं, रास्ता साफ करते सिपाही हैं.

सारा तंत्र इस वीआईपी अकड़ का मारा है. पेट्रोल पम्प तेल चोरी करेंगे. पकड़ोगे तो अकड़ दिखाएंगे. ज्यादातर पम्प नेताओं, उनके सम्बन्धियों और दबंग लोगों के हैं. अधिसंख्य अवैध निर्माण उन्हीं के हैं. काले धंधे वे कर रहे या करा रहे हैं. भाषणों में नैतिकता और सदाचार बघारे जा रहे हैं. आचरण में उनकी बखिया उधेड़ी जा रही है. सत्ता में चेहरे अवश्य बदल गये हैं लेकिन पीछे से सत्ता को चलाने वाले वही हैं. गरीब शहीद के घर थोड़ी देर को एसी, सोफा, कालीन भेजने वाले. सड़कों को पानी से धुलवाने वाले वही हैं. नारे खूब हवा में हैं लेकिन असल में परिवर्तन के दरवाजे पर सख्त पहरा बैठा है. (नभाटा,20मई,2017) 

1 comment:

अभय पन्त said...

दुनिया में गर आए हैं तो जीना ही पड़ेगा। जीवन है गर ज़हर तो पीना ही पड़ेगा। परिवर्तन के दरवाज़े पर पहरा है। लेकिन इन पहरेदारों पर हमेशा के लिए प्रभावी नियंत्रण के लिए अपने हितों की आहुति देने का माद्दा किसमें है?