Wednesday, January 10, 2018

अब तीन तलाक की बाजी


नोटबंदी का फैसला अपने गम्भीर आर्थिक दुष्प्रभावों के बावजूद राजनैतिक रूप से नरेंद्र मोदी यानी भाजपा के पक्ष में रहा. क्या उसी तरह एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत)  के खिलाफ आपराधिक कानून बनाने का मोदी सरकार का फैसला उसे इस वर्ष होने वाले विधान सभा चुनावों और फिर 2019 के लोक सभा चुनाव में राजनैतिक फायदा पहुंचाएगा? अपनी विभिन्न सभाओं में मोदी प्रभावशाली वक्तृता से जनता को यह समझाने में सफल रहे कि एक हजार और पांच सौ रु के नोटों का चलन एकाएक बंद करने का उनका फैसला काले धन पर रोक लगाने और अमीरों एवं भ्रष्ट लोगों के खिलाफ बड़ी लड़ाई है. क्या लोक सभा से पारित और राज्य सभा में अटके तीन तलाक विरोधी विधेयक के जरिये मोदी सरकार अपने को मुस्लिम महिलाओं का उद्धारक साबित करने में सफल होगी?

कोशिश पुरजोर है और पहला दौर भाजपा के पक्ष में जाता दिखा है. विपक्ष, खासकर कांग्रेस की गति सांप- छछूंदर केरीहै. उगलते बने न निगलते. वह प्रकट रूप में इस विधेयक के समर्थन में दिख रही है लेकिन इसे तकनीकी कारणों  से उलझाये रख कर भाजपा को मुस्लिम महिलाओं का परम हितैषी बनने का श्रेय नहीं देना चाहती. लोक सभा में कांग्रेस ने अपेक्षाकृत शांत रहकर विधेयक को पारित हो जाने दिया. राज्य सभा में उसके सदस्यों ने विधेयक के कतिपय प्रावधानों के विरोध में बहस जरूर की लेकिन अपना स्वर विधेयक-समर्थक ही रखा. फिलहाल संयुक्त विपक्ष के दबाव में विधेयक अटक गया है. भाजपा अब यह प्रचार कर रही है  कि कांग्रेस ने राज्य सभा में विधेयक पारित नहीं होने दिया..

ध्रुवीकरण की राजनीति

यह धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति का चरम दौर है. मुस्लिम महिलाओं या कहिए समग्र रूप में देश की महिलाओं की स्थिति की चिंता किसी को नहीं है. सभी दल अपनी-अपनी राजनीति और वोट बैंक को ध्यान में रख कर सतर्क चाल चल रहे हैं. भाजपा संघ के निर्देशन में अपने हिंदूवादी एजेण्डे पर अब आक्रामक रवैया अपनाने लगी है. वह व्यापक हिंदू समाज को साफ संदेश दे रही है कि कांग्रेस तथा अन्य क्षेत्रीय दलों की तरह मुस्लिम तुष्टीकरण नहीं करने वाली. बल्कि साहसिकफैसले लेकर मुस्लिम समाज, विशेष रूप से महिलाओं को सशक्त बनाना चाहती है. इससे जहां उसका हिंदू वोट बैंक मजबूत होगा वहीं मुस्लिम महिलाओं का समर्थन भी हासिल हो सकेगा. कांग्रेस समेत अन्य राजनैतिक दलों की अब तक की मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीतिकी हिंदू-प्रतिक्रिया भाजपा की ध्रुवीकरण की राजनीति की मजबूत आधार-भूमि बनी है.

विडम्बना यह है कि मुस्लिम महिलाओं क्या, सभी महिलाओं की समानता और एक पूर्ण व्यक्ति के रूप में उनका सम्मान दांव पर है. तीन तलाक विरोधी विधेयक को ही लें. ऊपर से मुस्लिम महिलाओं को इस जलालत से उबारता दिखने वाला यह विधेयक जितना सख्त आपाराधिक कानून बनने वाला है, वह व्यापक बहस की मांग करता है. कई विद्वानों ने विधेयक के प्रावधानों का विश्लेषण करके बताया है कि कानून बन जाने पर अंतत: यह तलाक दिये जाने वाली महिलाओं की जिंदगी दूभर ही करेगा. इसकी आड़ में मुस्लिम-उत्पीड़न की सम्भावना बढ़ जाएगी, वगैरह.

विचार-विमर्श से किनारा

सामान्य परम्परा रही है कि किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय के निजी कानूनों में परिवर्तन से पहले उस समुदाय में व्यापक बहस कराई जाए, सलाह-मशविरे हों. भाजपा ने ऐसा कुछ नहीं किया, बल्कि वह इससे बचती आयी है. सुप्रीम कोर्ट के बहुमत वाले निर्णय की अनदेखी कर वह अल्पमत वाले निर्णय को ले उड़ी.  पांच में से तीन जजों का फैसला है कि एक बार में तीन तलाक न केवल इस्लाम विरोधी है बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 15 के अंतर्गत गैर-कानूनी है.  इस फैसले के बाद कानून बनाने की जरूरत नहीं थी. सुप्रीम कोर्ट का फैसला अपने आप में कानून है. भाजपा नेताओं ने अपनी शुरुआती प्रतिक्रिया में कहा भी था कि सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को गैर-कानूनी घोषित कर दिया है. इसके बाद कानून बनाने की आवश्यकता नहीं है.

बहुत जल्द भाजपा ने पैंतरा बदल दिया. उन्हें सुप्रीम कोर्ट के अल्पमत वाले फैसले में अपने राजनैतिक लाभ का सूत्र दिखाई दिया. दो न्यायाधीशों का मत था कि तीन तलाक गैर-कानूनी तो है लेकिन सरकार को चाहिए कि वह इसके लिए छह मास में एक कानून बनाए. बस, भाजपा सरकार फटाफट विधेयक बना लायी. इसके लिए उसने मुस्लिम विद्वानों, नेताओं, कानूनविदों और समाज के प्रबुद्ध लोगों  से सलाह-मशविरा करना भी जरूरी नहीं समझा.

चुनावी मुद्दा बनाया था

याद कीजिए कि उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन तलाक से मुस्लिम बहनोंका जीवन नारकीय होने का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था. उनकी चुनाव सभाओं में मुस्लिम महिलाओं की बड़ी उपस्थिति दिखाने की कोशिश की जाती थी. गोरक्षा की आड़ में मुसलमानों की  हत्याओं पर चुप लगा जाने वाले मोदी तीन तलाक के मुद्दे पर खूब बोलते थे. यह अचानक नहीं हुआ था. सर्वेक्षणकरवा कर यह बताया गया कि मुस्लिम समाज की सबसे बड़ी बुराई तीन तलाक प्रथा है. सर्वेक्षण करने वालों को मुसलमानों की गरीबी, अशिक्षा, और उनका मुख्य धारा से लगातार हाशिये पर धकेला जाना कोई समस्या नजर नहीं आया. सायरा बानो का मामला अदालत में था ही. बड़ी चतुराई से तीन तलाक को भाजपा ने चुनावी मुद्दा बनाया लिया.

नरेंद्र मोदी के नेतृत्त्व में भाजपा ने कांग्रेस की बहुतेरी कमजोरियों का खूब लाभ उठाया है. 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मुस्लिम नेताओं एवं धर्म-गुरुओं के दवाब में शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला संसद से पलटवाया न होता तो आज भाजपा को यह मौका न मिलता. आज मोदी ने सायरा बानो के मामले में कोर्ट के फैसले को अपना बड़ा राजनैतिक हथियार बना लिया है.

मुसलमानों का हर हाल में पक्ष लेती रही कांग्रेस की दिक्कत आज यह है कि मोदी की लोकप्रियता की काट के लिए उसे उदार हिंदुत्व का सहारा चाहिए तो मुसलमानों का समर्थन भी. यही हाल यूपी में सपा से लेकर बंगाल में ममता बनर्जी तक का है. भाजपा अपने हिंदू आधार को व्यापक बनाते हुए मुसलमानों, खासकर महिलाओं का समर्थन पाने का दांव चल रही है.

राजनीति के इन दांव-पेचों में कई जरूरी मुद्दे भुलाये जा रहे हैं. मीडिया भी इस खेल में आपादमस्तक डूबा है. बाजी तीन तलाक की है. चालें चली जा रही हैं. महिलाओं का वास्तविक हित बहस के केंद्र से बाहर है. तलाक-ए-बिद्दत जुल्म है. वह बंद होना चाहिए लेकिन क्या प्रस्तावित कानून इसका सही और सर्वोत्तम उपाय है? इसके दुष्परिणाम क्या-क्या हो सकते हैं? राजनीति की बिसात में जरूरी सवाल खो गये हैं.   


 ( नवीन जोशी, प्रभात खबर, 11 जनवरी, 2018)

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