Friday, March 23, 2018

लक्षणों के इलाज से थाने नहीं सुधरने वाले



एनबीटीयानी आपके इस अखबार ने लखनऊ के पांच थानों में स्टिंग ऑपरेशन करके पुलिस को आईना भर दिखाया था. पुलिस महानिदेशक ने उस रिपोर्ट पर ध्यान दिया और पांचों थानों के प्रभारियों को लाइन हाजिर करके मामले की जांच बैठा दी. भोला-सा सवाल सिर उठाता है कि जांच किस बात की होगी, एनबीटी के स्टिंग में सामने आये रिश्वतखोरी और जनता को बेवजह परेशान करने  के मामलों की सच्चाई की या पुलिस थानों के काम-काज और पुलिसजनों के आम व्यवहार की?

वैसे, दोनों ही मामलों में जांच कराने की जरूरत क्या है? पुलिस महानिदेशक हों या एसएसपी या कोई भी पुलिस अधिकारी, क्या उन्हें मालूम नहीं कि उनके थाने कैसे काम करते हैं? थानों की बंधी-बंधाई गैर-कानूनी मासिक आय के आधार पर उनकी कीमत क्या उच्चाधिकारियों से छुपी है? कोई भी बता देगा कि राजधानी का सबसे कीमती थानाकौन है और लाइन हाजिर होना कोई सजा न होने के बावजूद क्यों बड़ी सजा माना जाता है?  आखिर यह किस आधार पर तय होता है?

कई सरकारें आईं-गईं, बड़े-बड़े दावे करने वाले पुलिस महानिदेशक आये और गये, पुलिस का रवैया नहीं सुधरा. थानों में एफ आई आर लिखवानी हो या पासपोर्ट सत्यापन हो या सड़क किनारे खड़े खोंचे-ठेले, पुलिस को कुछ दिये बिना किसी का काम नहीं चलता. हर नियम का उल्लंघन पुलिस करने देती है और उसकी कीमत वसूलती है. नियम का पालन हो या अपने दायित्त्वों का, वह भी पुलिस बिना कुछ लिये नहीं करती. वह साक्षात देवता है जिसे अच्छे-बुरे हर काम के लिए चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है.

इसलिए, इस जांच की कोई उपयोगिता नहीं है. अधिक से अधिक स्टिंग में पकड़े गये पुलिस वालों पर कुछ और कार्रवाई हो जाएगी. कुछ के लाइन हाजिर, निलम्बित या बर्खास्त होने से पुलिस महकमा, खासकर थाने नहीं सुधरते.

जांच होनी ही हो तो इसकी हो कि थानों में ऐसा होता क्यों है? अतिक्रमण करने वालों से वसूली तो चलिए, गलत काम करते रहने देने के लिए होती है मगर पासपोर्ट सत्यापन के लिए किसी छात्र या बेरोजगार से रिश्वत क्यों मांगी जाती है? नहीं देने पर गलत रिपोर्ट क्यों भेज दी जाती है? उस छात्र का क्या दोष है? डकैती की रिपोर्ट लूट में इसलिए लिख लेते हैं, माना, कि अपराध की गम्भीरता कम दिखा के थाने की इज्जत बनायी रखी जाए लेकिन मार्क्सशीट गुम होने की रिपोर्ट लिखने से भी किसी को क्यों टरकाया जाता है? इस रिपोर्ट के बिना उसकी दूसरी मार्क्सशीट नहीं बन सकती. उससे रिश्वत क्यों मांगी जाती है?

इस महामारी की जड़ें थानों में नहीं मिलेंगी. उसके लिए पुलिस प्रशासन को अपने पूरे तंत्र में झांकना होगा. थानों की बीमारियां सिर्फ लक्षण हैं. रोग के कारण ऊपर छिपे मिलेंगे. इसलिए थाना प्रभारियों को लाइन हाजिर करके इसका निदान नहीं होगा. रोग ऊपरहै तो इलाज भी वहीं का होना चाहिए.

पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह की सिफारिशें, उनकी पी आई एल पर सुप्रीम के दिशा-निर्देश ही देख लें तो बीमारी और उसके कारणों का पता चल जाता है. क्या वजह है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश मानने में राज्यों ने आज तक हीला-हवाली कर रखी है? साफ है कि सरकारें और उन्हें चलाने वाले नेता एवं अधिकारी नहीं चाहते कि पुलिस व्यवस्था में आमूल सुधार हों.  

अतएव, थाने वैसे ही बने रहेंगे, जैसे कि वे हैं.  सामान्य जनता पुलिस थानों में वैसे ही प्रताड़ित होती रहेगी, जैसा कि एनबीटी स्टिंग में पाया गया. कार्रवाई के नाम पर गाहे-ब-गाहे कुछ पुलिसवाले लाइन हाजिर या निलम्बित हुआ करेंगे, बस,  
  
 (सिटी तमाशा, नभाटा, 24 मार्च 2018)


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