Friday, March 30, 2018

गरीब का शव और विधायक निधि



शारीरिक रूप से निश्शक्त (जिसे पता नहीं किस खुशी में दिव्यांग कहा जाने लगा है) बाराबंकी का एक युवक गम्भीर रूप से बीमार अपने पिता को ठेलिया पर खींचते हुए करीब आठ किमी दूर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तक ले गया. डॉक्टर ने पाया कि वह मर चुका है. लाश को वापस घर तक ले जाने की समस्या आ खड़ी हुई. काफी इंतजार के बाद भी कोई इंतजाम न हुआ तो वह अशक्त युवक उसी ठेलिया पर पिता का शव रखकर गांव वापस ले गया.

जिस दिन अखबारों में यह खबर छपी ठीक उसी दिन मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने विधान सभा में घोषणा की कि प्रदेश के विधायकों को अपने क्षेत्र के विकास के लिए मिलने वाली विधायक निधि की राशि डेढ़ करोड़ रु से बढ़ाकर दो करोड़ कर दी गयी है.

प्रकट में दोनों खबरों में कोई परस्पर सम्बंध नहीं है. एक खबर गरीबों की दुर्दशा का हाल बताती है. दूसरी, हमारे विधायकों की विकास-क्षमता और सामर्थ्य की. गरीबी आज की है नहीं और न चुटकियों में दूर हो सकती है. बाराबंकी के अशक्त युवक को कम से कम एक ठेलिया तो उपल्ब्ध थी. कई वाकये ऐसे सामने आते हैं जहां गरीब-गुरबे शवों को कंधे पर लाद कर ले जाने को मजबूर होते हैं. साइकल पर भी अस्पताल से घर तक शव ढोने के चित्र गांव-देहातों से आते रहते हैं.

विधायक निधि निर्वाचित जन प्रतिनिधियों को इसलिए दी जाती है कि वे अपने निर्वाचन क्षेत्रों का विकास अपने हिसाब से करा सकें. वे सिफारिश करते हैं और सरकारी तंत्र उनके बताये काम प्राथमिकता से करा देता है. पहले यह रकम कम होती थी. जैसे-जैसे विधायकों की विकास के प्रति रुचि बढ़ती गयी, निधि का आकार भी  बढ़ता गया. महंगाई के हिसाब से भी रकम को बढ़ना ही चाहिए. इसमें जनता ही का फायदा है. एक निश्शक्त गरीब का अपने पिता का शव आठ किमी तक ठेलिया पर ढोने का विधायक निधि से क्या सम्बंध?

पीएचसी, सीएचसी इलाज करने के लिए हैं. बीमार आएगा तो डॉक्टर  इलाज करेगा. बीमार की रास्ते में मृत्यु हो जाये तो डॉक्टर अफसोस में सिर हिलाने के अलावा और क्या कर सकता है? वहां मौजूद डॉक्टर ने ठीक ही कहा कि सीएचसी में शव भिजवाने की कोई व्यवस्था नहीं है. जो उस समय मौजूद नहीं थे, उन प्रभारी महोदय ने बड़ा मानवीय बयान दिया कि यदि मैं होता तो शव भिजवाने की व्यवस्था करता, चाहे अपनी जेब से देना पड़ता. वे वास्तव में क्या करते, इस पर अनुमान लगाने से क्या फायदा. गांवों में प्रधान या प्रधान-पति भी होते हैं. सम्बद्ध प्रधान ने कहा कि वे बाहर थे, इसलिए मदद नहीं कर सके.

विकास की बयार चली है. इसलिए मीटिंग खूब होती रहती हैं. डॉक्टरों को, प्रधानों को अधिकतर समय महत्त्वपूर्ण बैठकों में लगाना पड़ता है. विधायकों को तो क्षेत्र में रहने या दौरे करने की फुर्सत ही नहीं होती. राज्य सभा के चुनाव ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं कि एक गरीब के शव का मामला? 

इतने बड़े देश के सबसे बड़े प्रदेश में गरीबों की भरमार है. कैसी-कैसी बीमारियां और कैसी-कैसी मौतें. जब तक सबका विकास नहीं हो जाता तब तक ऐसा होगा ही. इसलिए, ठेलिया में शव रख कर आठ किमी धकेल कर ले जाने की खबर छपनी ही नहीं चाहिए. ऐसी खबरें आती हैं तो दिमाग में सवाल उठने लगते हैं. जैसे यही कि विधायक निधि के दो करोड़ हो जाने और एक गरीब का शव ठेलिया में ढोने की खबर में क्या कोई सम्बंध है?

वैसे, सोचिए तो कि दोनों में सम्बंध होना चाहिए?   

(सिटी तमाशा, नभाटा, 31 मार्च, 2018)



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