Friday, January 25, 2019

स्वच्छता सर्वेक्षण – हकीकत और गाल बजाने का फर्क


लखनऊ की मेयर, नगर निगम के अधिकारी और स्वच्छता अभियान के जिम्मेदार इन दिनों बहुत खुश हैं कि स्वच्छता ऐप डाउनलोड करने और सवच्छता सर्वेक्षण में भाग लेने वालों की संख्य के हिसाब से लखनऊ देश में पहले स्थान पर आ गया है. दावा किया जा रहा है कि सफाई के मामले में पहले नम्बर पर रहने वाले इंदौर नगर को हमने पछाड़ दिया है! गोया कि स्वच्छता सर्वेक्षण से ही शहर साफ हो गया हो!

स्वच्छता अभियान सरकार की प्राथमिकता होने के कारण इस पर बहुत धन खर्च हो रहा है. अधिकारी चौंकन्ने हैं. स्वच्छता ऐप डाउनलोड करके नागरिकों से सर्वेक्षण में भाग लेने की अपील की जा रही है.

सर्वेक्षण में पूछा जा रहा है कि क्या आपको इस अभियान की जानकारी है? क्या आप शहर की सफाई से संतुष्ट हैं? क्या सार्वजनिक स्थलों पर कूड़ेदान आसानी से दिख जाते हैं? क्या आपके घर से सूखा और गीला कचरा अलग-अलग उठाया जाता है? क्या आप जानते हैं कि यह कचरा कहाँ जाता है? क्या आपको सार्वजनिक शौचालय आसानी से और साफ मिलते हैं? क्या आप अपने शहर की खुले में शौच-मुक्ति-स्थिति से अवगत हैं?

इस सर्वेक्षण में शहर के नागरिक अधिक संख्या में भाग ले रहे हैं तो अच्छी बात है लेकिन उनकी संख्या महत्त्वपूर्ण है या उनके उत्तर? क्या नगर निगम के अधिकारी यह बताना चाहेंगे कि अब तक लखनऊ के जिन एक लाख से ज्यादा नागरिकों ने स्वच्छता सर्वेक्षण में  हिस्सा लिया है उनके उत्तर क्या कहते हैं? नागरिकों की स्वच्छता-संतुष्टि के हिसाब से हमारी राजधानी कहाँ ठहरती है?

स्वच्छता ऐप में यह सुविधा भी है कि कोई भी नागरिक किसी भी जगह की गंदगी का फोटो या विवरण डाल कर तत्काल सफाई की अपेक्षा कर सकता है. ऐसा करने वालों की शिकायत है कि ऐप में तो उस स्थल की सफाई कर दिये जाने का उल्लेख आ जाता है लेकिन वास्तव में ठीक से सफाई नहीं की जाती. बीती 13 जनवरी को हमने भी एक शिकायत सचित्र ऐप में डाली. पिछले डेढ़ महीने में भैंसाकुण्ड श्मशान घाट पर तीन बार जाना हुआ. नदी किनारे गंदगी का एक टीला सा बन गया था. दूसरे ही दिन ऐप में दिखा कि आपकी शिकायत दूर कर दी गयी है जबकि वह ढेर चार दिन बाद भी वैसा ही था.

इंदौर को पछाड़ने का दावा करके खुश होने वालों के लिए वहाँ  की असलियत बताना जरूरी है. इंदौर निवासी एक मित्र ने बताया- शुरू में नागरिकों से कहा गया कि वे एक पॉलीथीन में घर का कूड़ा जमा करें जिसे नगर निगम की गाड़ी उठा ले जाएगी. एक महीने बाद कहा गया कि सूखा और गीला कचरा अलग-अलग पॉलीथीन में दें. फिर एक महीने बाद कहा गया कि कचरा पॉलीथीन में नहीं लेंगे. हरे और नीले रंग की बाल्टियाँ रखें. यह नागरिकों की आदत डलवाने के लिए था.  हर सुबह गाना बजाती गाड़ियाँ आती हैं और नागरिक उन्हें कचरा देते हैं. साठ रु महीना लगता है. गीले कचरे की खाद बनाकर निगम नागरिकों को ही बेच देता है. सूखे कचरे के लिए निस्तारण संयंत्र हैं. कूड़ेदान मुहल्लों में रखे ही नहीं जाते. बाजारों में कहीं-कहीं नीले और हरे डिब्बे रखे हैं. नागरिक स्वयं सचेत हैं. कूड़ा नहीं फैलाते. किसी ने किया भी तो सफाई कर्मी तैनात रहते हैं.

तो हुजूर, जमीनी काम करने से शहर साफ होगा या सर्वेक्षण में भाग लेने वालों की संख्या गिनाने से? सरकारी अभियान में सफलता का ढिंढोरा पीटना एक बात है, संकल्प के साथ अभियान को जमीनी पर उतारना अलग बात.   
   
(सिटी तमाशा, नभाटा, 26 जनवरीीी2019), ,

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