Saturday, March 13, 2021

लड़कियों का पहनावा और समाज का दिमाग

इन दिनों मेरठ-मुज़फ्फरनगर की किसान पंचायतें चर्चा में हैं। किसानों की गर्जना खबरों में सुनाई देती है। तीन नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर शुरू हुआ आंदोलन अब भी जोर-शोर से जारी है। किसान संगठन ही नहीं,  विपक्षी राजनैतिक दल भी किसान पंचायतें लगा रहे हैं। केंद्र सरकार के विरुद्ध हाल के वर्षों का यह सबसे बड़ा और लम्बा आंदोलन है।

ऐसे में मुज़फ्फरनगर से आई एक खबर चौंकाती कम और अफसोस से ज़्यादा भर देती है। जिले के चरथावल थाने के तहत आने वाले पीपलशाह गांव के राजपूत समाज की पंचायत ने फरमान जारी किया है कि गांव के लड़के हाफ पैण्ट और लड़कियां जींस नहीं पहनेंगी। खबर के अनुसार पंचायत में कहा गया कि गांव में लड़के हाफ पैण्ट पहन कर घूमते हैं जो आम लोगों को अच्छा नहीं लगता। इसलिए उस पर रोक लगा दी गई। फिर लड़कियों का जींस पहनना क्यों अच्छा लगता! इसलिए उन्हें खबरदार कर दिया गया। साथ ही उन स्कूलों का बहिष्कार करने का फैसला भी किया गया है जहां भारतीय परिधान पहनने की व्यवस्था नहीं है। भारतीय परिधानकी परिभाषा क्या है, यह समाचार में नहीं बताया गया है, लेकिन समझना मुश्किल नहीं है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही नहीं, देश के विभिन्न कोनों से ऐसे समाचार अक्सर आते रहे हैं। कभी खाप पंचायतें और कभी कॉलेज ऐसे फरमान सुनाते हैं। वक्त तेज़ी से बदला है लेकिन समाज का दिमाग नहीं बदल रहा। गांवों से निकल कर लड़के-लड़कियां दिल्ली-बंगलूर-मुम्बई तक जाकर पढ़ रहे हैं। गांवों में भी अब सभी मां-बाप चाहते हैं कि उनके बच्चे उच्च शिक्षा हासिल करें। कई माता-पिता खेत बेचकर भी बच्चों को पढ़ाने के लिए शहरों की तरफ भेजते हैं। बड़े शहरों में कई कॉलेज और उनके आस-पास के आवासीय परिसर ऐसे बच्चों से भरे पड़े हैं। वे हॉस्टल या किराए के मकानों में रहते हैं। उनके लिए हाफ-पैण्ट और जींस पहनना आम बात है।

गांव भी अब वैसे कहां रहे। गांवों के बाजार नए जमाने के पहनावों से भरे पड़े हैं। शहरों की हवा गांव पहुंचने में अब अधिक समय नहीं लेती। गांवों का पहनावा ही नहीं, खान-पान तक बहुत तेजी से बदला है। हाट-बाजार में चाऊमिन-मोमो-बर्गर के ठेले खूब भीड़ खींचते हैं। बच्चों के बर्डेया शादी-बारात चायनीज के बिना अधूरे माने जाते हैं। यह बदलाव बहुत सहज ढंग से आया है।

लड़कों के हाफ-पैण्ट पहनने पर रोक आश्चर्यजनक है। आम तौर पर लड़कों पर ऐसी रोक नहीं लगती। लड़कों को पूरी आज़ादी रहती है। रोक-टोक लड़कियों के साथ ही अधिक होती है। उनके जींस पहनने पर आपत्तियां गांवों ही नहीं, शहरों में भी होती रही हैं। कई खाप पंचायतें ऐसे फरमान सुना चुकी हैं। कुछ वर्ष पहले मुजफ्फरनगर की गुर्जर पंचायत ने लड़कियों के मोबाइल रखने पर भी रोक लगा दी थी। पिछले साल पंजाब के एक कॉलेज ने लड़के-लड़कियों, दोनों के जींस पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था। उनसे सलवार-कुर्ता पहनने को कहा गया था।

जींस आज बहुत सुविधाजनक पहनावा है और दशकों से खूब चलन में है। कोई भी काम करने, दौड़-भाग करने, उठने-बैठने, सायकल-कार-बाइक चलाने में जींस इतनी आराम दायक है कि पुरानी पीढ़ी के महिला-पुरुषों ने भी उसे अपना लिया है। युवा पीढ़ी का तो वह पसंदीदा पहनावा है ही। उस पर रोक लगाने की मानसिकता बीमार ही कही जाएगी। हमारे समाज में वैसे भी वैज्ञानिक सोच का अभाव है। हाल के वर्षों में दकियानूसी सोच को और बढ़ावा मिला है। अवैज्ञानिक-अतार्किक बातों और अंधविश्वास को महान भारतीय ज्ञानबताया जा रहा है। दु:ख तब बढ़ जाता है जब ऐसे विचारों और फैसलों के विरुद्ध आवाज नहीं उठती।

(सिटी तमाशा, नभाटा, 13 मार्च 2021)          

     

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