जैसी आपात स्थितियां चल रही हैं और चारों तरफ जैसा हाहाकार मचा हुआ है, ऐसे संकट काल में राजनैतिक नेतृत्व का दायित्व है कि वह जनता को भरोसा दिलाए कि प्राण रक्षा के लिए आवश्यक सुविधाओं, दवाओं, ऑक्सीजन आदि की कमी नहीं होगी। प्रधानमंत्री से लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनके आला अफसर तक ऐसे आश्वासन वाले बयान दे रहे हैं। जनता ही उन बयानों पर भरोसा नहीं कर रही। वह पैरासिटामॉल जैसी सामान्य दवा से लेकर ऑक्सीजन के सिलेण्डर तक घर में रख लेने के लिए पूरी जान लगा दे रही है। जिन्हें अभी आवश्यकता नहीं है या जो कोविड संक्रमण से अभी बचे हुए हैं, वे भी दवाएं और ऑक्सीजन सिलेण्डर का जुगाड़ लगाने के लिए भाग-दौड़ में लगे हैं। अगर हमें हो गया तो क्या करेंगे? उन्हें भरोसा ही नहीं है। सब इसी भय से त्रस्त हैं कि आने वाले दिनों में स्थिति और विकट हो जाएगी।
उत्तर प्रदेश का उदाहरण लें तो यहां लोक सभा से लेकर विधान
सभा चुनाव तक भाजपा को जबर्दस्त बहुमत मिला था। भाजपा ने ऐसी चुनावी सफलता पहले
कभी नहीं देखी थी। यह उस पर जनता के अपार विश्वास के कारण ही सम्भव हुआ होगा। जनता
ने दूसरे दलों की तुलना में भाजपा पर खूब भरोसा किया। और, भरोसा
यह था कि भाजपा नेतृत्व देश और उत्तर प्रदेश को बेहतर शासन दे सकता है।
अब जबकि देश और प्रदेश कोविड संक्रमण के तूफान से बेहाल है
और अस्पतालों से लेकर दवाइयों-उपकरणों और अत्यावश्यक प्राण वायु के लिए मरीज और
तीमारदार त्रस्त है, तब वही जनता बड़े विश्वास से चुनी अपनी सरकार पर भरोसा क्यों
नहीं कर रही कि संकट अवश्य है लेकिन हमारी सरकार इससे निपट लेगी? हमें बिना जरूरत दवा, ऑक्सीमीटर, ऑक्सीजन, आदि खरीदकर जमा करने की अवश्यकता नहीं है,
क्योंकि हमने भरोसे वाली सरकार चुनी है। यह आश्वस्ति-भाव जनता में
क्यों नहीं जागता?
सिर्फ इस सरकार की बात नहीं है, स्वास्थ्य
सुविधाओं का संक्ट हो या दूसरी आवश्यक चीजों की कमी, जनता आम
तौर पर सरकारों के आश्वासनों पर भरोसा नहीं करती। आजादी के बाद से ही उसे कटु
अनुभव हुए हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि स्वतंत्रता के पश्चात शुरुआती सरकारों में
शामिल लोग जनता का थोड़ा-बहुत ख्याल कर लेते थे। समय के साथ यह गुण गायब होता गया।
आज का दौर इस मामले में बहुत निर्मम है।
बीते बुधवार को एक मित्र खाली ऑक्सीजन सिलेण्डर भराने के
लिए एक ऑक्सीजन सयंत्र पहुंचे। भारी भीड़ थी। बेहाल लोग तड़के से लाइन लगाए खड़े थे।
भीड़ को अनुशासित करने के नाम पर पुलिस बल आया। उसने आनन-फानन लाठियां चलाईं और कुछ
समय बाद फैक्ट्री से अपने साहबों के लिए सिलेण्डर भरवा ले गए। यह सिर्फ एक वाकया
है। जनता देखती आई है कि जब भी किसी वस्तु का संकट पैदा हो जाता है, तो
सबसे पहले यह तंत्र अपने आकाओं की सेवा में जुट जाता है। पेट्रोल-डीजल की हड़ताल ही
हो जाए तो रातों रात जरकिन भर-भर कर अफसरों-नेताओं के यहां पहुंचने लगते हैं। कोई
आश्चर्य नहीं कि इस समय भी बड़े-बड़े प्रभावशाली लोगों के यहां हर वह चीज उपलब्ध हो,
जिसके बिना जनता मर रही है। वैसे भी, यह
व्यवस्था जनता के लिए कम, नेताओं-अफसरों के लिए अधिक काम
करती है। जनता जानती है कि अस्पताल हो या ऑक्सीजन, नेताओं-अफसरों
को हर हाल में मिल जाएंगे लेकिन उसे तरसना-मरना होगा।
जब मुद्दा धर्म, राजनीति, पाखण्ड और भावनात्मक
मुद्दों पर यही जनता अपने नेताओं के पीछे लहालोट होती रहती है। इसीलिए लोकतंत्र का
वर्त्मान विद्रूप हमारे यहां बना है। सरकारों का चुनावी निर्णय उनके काम-काज पर नहीं
ही होता।
(सिटी तमाशा, नभाटा, 24 अप्रैल, 2021)
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