हम फिर उसी दारुण दौर में बहुत तेजी से लौट आए हैं जब बीमारों के इलाज और उन्हें बचाने की सुविधाओं की कौन कहे, श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार की भी व्यवस्था नहीं हो पा रही। यह देखना-सुनना हृदय विदारक है कि लाशें खड़ी हैं और उनके परिवारीजनों को टोकन बांटे जा रहे हैं। पंद्रह घण्टे तक प्रतीक्षा करनी पड़ रही है। और, इस पूरे दौर में वह जो प्लास्टिक में लिपटा बण्डल पड़ा है, उसके भीतर अपने किसी प्रियजन के होने की प्रतीति भर है। छूने का तो सवाल ही नहीं, उसे दूर से देखा तक नहीं जा सकता।
बार-बार चेतावनियां दी जा रही थीं, टीके
लगाने वालों को भी पूरी-पूरी सावधानी बरतने को कहा जा रहा था लेकिन अधिसंख्य जनता
ने मान लिया था कि कुछ नहीं है कोरोना या वह उनका कुछ बिगाड़ नहीं पाएगा। ‘यहां नहीं है कोरोना,’ कई लोगों ने साफ-साफ कहना
शुरू कर दिया था। इसमें दिहाड़ी के लिए मजबूर आबादी ही नहीं, अघाए-खाए-मुटाए
लोगों की भी खूब संख्या है जिन्हें पार्टी और हंगामा किए बिना नींद ही नहीं आती।
नतीजा सामने है। इस बार कोरोना का जो विस्फोट हुआ है, वह
पहले से कहीं अधिक रफ्तार से बेकाबू दौड़ने लगा है।
अपेक्षाकृत सावधान रहे लोगों ने भी कम लापरवाहियां नहीं
कीं। ये मेरे पक्के दोस्त हैं या ये मेरे बहुत करीबी रिश्तेदार हैं, इनसे
मिलने में कुछ नहीं होगा, ऐसा भाव भी खूब रहा। होली खेली और
मिली गई। इस सबके पीछे सबसे बड़ा योगदान सत्तारूढ पार्टी समेत उन दलीय नेताओं का
रहा जो चुनाव जीतने के लिए रैली पर रैली और विशाल सभाएं करते रहे। ‘दो गज की दूरी है जरूरी’ कहने के बाद इस नारे का
सबसे अधिक मखौल नेताओं ने ही उड़ाया। चुनाव जीतने के लिए सारे घोड़े खोल देने वाले
जिम्मेदार नेताओं ने भी चुनावी रैलियां, सभाएं, पदयात्राएं करके यही संदेश दिया कि कोरोना का कोई डर नहीं है। उनकी बातों
और करनी में जमीन-आसमान का असर यहां भी खूब दिखा।
कोरोना अमीर-गरीब में अंतर नहीं करता लेकिन जितनी त्वरित
जांच और चिकित्सा सुविधा नेताओं को मिल जाती है उसकी कल्पना भी सामान्य जन नहीं कर
सकते। वे जांच कराने के लिए भटक रहे हैं, रोगी पाए जाने पर अस्पताल, डॉक्टर और दवा के लिए दर-दर मारे फिर रहे हैं। उन्हें पूछने वाला कोई नहीं
है। थोड़ा-सा बोझ बढ़ते ही स्वास्थ्य तंत्र चरमरा उठता है। नेताओं, आदि के लिए कोई कमी नहीं होती। यह पूरी व्यवस्था उन ही के लिए काम करती है।
पिछले साल कोरोना फैलाने के लिए कभी तब्लीगियों को जी भर
कोसा-गरियाया गया, कभी दिहाड़ी कामगारों की झुण्ड के झुण्ड गांव वापसी को और कभी
रोजी-रोटी के लिए जूझते गरीबों-लाचारों को। क्या आज कोई अंगुली इन नेताओं की ओर भी
उठेगी जो कोरोना नियंत्रण के लिए आवश्यक सभी निर्देशों की धज्जियां उड़ाते फिर रहे
हैं?
अब आश्चर्य नहीं होता कि कोरोना की भयावहता के बाद दूसरी
सबसे बड़ी खबर अपराध सरगना मुख्तार अंसारी बना हुआ है। वह किस गाड़ी से कैसे आया, कैसी
ह्वील चेयर थी और बांदा जेल में आते ही वह कैसे व्हील चेयर छोड़कर आराम से चलने
लगा। उसके साथ कौन-कौन आया और किस जेल अधिकारी ने कैसे आंखों-आंखों में रात काटी।
उसकी बैरक में क्या-क्या है और कौन उसे कैसे देख रहा है। आने वाले दिनों में हम
मुख्तार की जेल कोठरी की और भी कई खबरें पढ़ेंगे। पिछले किस्से भी दोहराए जाएंगे।
कोरोना अपनी निर्मम, दारुण कथाएं कहता रहेगा। एक अदृश्य सूक्ष्म
वायरस गर्वीले, हठी, पथभ्रष्ट और सृष्टि-विरोधी
मानव को उसकी औकात बताने निकल पड़ा है।
(सिटी तमाशा, नभाटा, 10 अप्रैल, 2021)
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