विशेषांक को "मंगलेश : मनुष्यता पर इसरार" कहा गया है।
मंगलेश डबराल निस्संदेह हमारे समय के बड़े कवि हैं। अजेय कुमार के शब्दों में "मंगलेश डबराल बड़े कवि इसलिए हैं कि उनकी निगाह उस यथार्थ को देख लेती है जिसमें मनुष्यता का मर्म भी शामिल है और उस पर हो रहे हमले भी, उनका पश्चाताप भी शामिल है और बहुत मद्धिम लय में वह सांस्कृतिक प्रतिरोध भी जो अपने मामूलीपन में ही भव्य हो उठता है।"
और यह भी कि "राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्षता, उर्दू, नस्ल-भेद, अल्पसंख्यकों के अधिकार और साम्राज्यवाद के बारे में उनके दृष्टिकोण को देखते हुए यह अंक निकालने का फैसला लिया गया। मैं समझता हूं कि फासीवाद से लड़ने के लिए मंगलेश की रचनाएं हमारी मदद करती हैं।"
दिसम्बर 2020 में कोरोना ने उन्हें हमसे छीन लिया। पांच साल हो गए। मंगलेश पर यत्र-तत्र छिट-पुट लिखा जाता रहा लेकिन हिंदी की अनेकानेक पत्रिकाओं ने उन पर "विशेषांक निकालना तो दूर, शायद एक खण्ड देना भी जरूरी नहीं समझा।" इस पीड़ा और आश्चर्य के साथ अजेय जी ने यह विशेषांक निकाला है जो मंगलेश जी और उनकी रचनाओं को समग्रता में देखने-समझने की सटीक खिड़की है।
'मंगलेश की याद', 'संस्मरण', 'मंगलेश की कविता', 'चयनित कविताएं', 'कवि का गद्य', 'अनुवाद' तथा 'संगीत, सिनेमा और कथेतर गद्य' शीर्षक खण्डों में समायोजित यह अंक संग्रहणीय है। पहले खण्ड में मंगलेश जी के निधन के बाद उनकी स्मृति में लिखी गई कविताएं हैं। दूसरे में रविभूषण, मनोहर नायक, आनंद स्वरूप वर्मा, इब्बार रब्बी, नरेश सक्सेना, अजय सिंह, विनोद भारद्वाज, प्रमोद कौंसवाल और उनकी बेटी अलमा डबराल के संस्मरण हैं। तीसरे खण्ड में अशोक वाजपेयी से लेकर शंकरानंद तक, पुरानी-नई पीढ़ी के बीस रचनाकारों ने मंगलेश जी की कविता पर टिप्पणियां की हैं। चौथा चयनित कविताओं का खण्ड है।
पांचवें खण्ड में मंगलेश जी के कुछ महत्वपूर्ण लेख एवं गद्यांश हैं। उनका गद्य उनकी कविताओं से कम महत्वपूर्ण नहीं है। बल्कि, कवि का गद्य एक अलग ही चमक और गहराई लिए हुए है। इस खण्ड के प्रारम्भ में दिया गया चंद्रभूषण का लेख ठीक ही मंगलेश के गद्य को 'सोचता हुआ और जिसमें मंगलेशियत बसी है' बताते हैं। मैंने 'अमृत प्रभात' लखनऊ में मंगलेश के कार्यकाल में उन्हें बड़े ध्यान से खबरों-लेखों को सम्पादित करते देखा है। उनके सम्पादन का लोहा सभी मानते थे। इसकी चर्चा भी यहां हुई है।
अनुवादक के रूप में भी उनकी ख्याति रही है। विश्व के अनेक प्रसिद्ध कवियों की कविताओं के उन्होंने जो अनुवाद किए वे खूब चर्चित रहे। उनमें से कुछ अनुवाद खण्ड में संकलित हैं। उन्होंने चंद उपन्यासों का भी अनुवाद हिंदी में किया था। हरमेन हेस का उपन्यास 'सिद्धार्थ' मैंने उनके अनुवाद में ही पढ़ा है।
अंतिम खण्ड सिनेमा और संगीत पर है। दोनों विधाओं की उन्हें अच्छी समझ थी। संगीत उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला था और खूब गाने के शौकीन थे, यद्यपि कभी बेसुरे भी हो जाते थे। इस खण्ड की शुरूआत में संजय जोशी का लेख उनके सिनेमा सरोकारों की चर्चा करता है।
इस तरह 'उद्भावना' का यह विशेषांक मंगलेश जी के निजी जीवन और रचना जगत का सही प्रतिनिधित्व करता है। इसीलिए पठनीय और संग्रहणीय है। वर्तमान दौर में जब देश की साझा विरासत को फासीवादी प्रवृत्तियां तार-तार करने पर उतारू हैं, मंगलेश जी पर, जो इन प्रवृत्तियों का सदैव विरोध करते रहे थे, ऐसा अंक निकालना बहुत महत्वपूर्ण है। अजेय कुमार को साधुवाद।
-न जो, 04 नवम्बर 2025

No comments:
Post a Comment