मोहनलालगंज में युवती के साथ बलात्कार और हत्या की
भयानक वारदात के बाद हमारे जवान सी एम ने सख्ती दिखाई। तब ऊंचे स्तर पर समीक्षा
बैठक हुई और महिलाओं से छेड़-छाड़ रोकने के लिए प्रशासन को कुछ दिशा-निर्देश जारी किए
गए। उनमें से एक है कि शराब की दुकानों पर नज़र रखी जाए ताकि वहाँ से निकलने वाले
महिलाओं को तंग न करें।
एक हफ्ता होने को है, प्रशासन ने
मीटिंग करके शराब की दुकानों पर नज़र रखने के तौर-तरीके और तंत्र अभी तक बनाया ही
नहीं। सो, हमने सोचा, क्यों न हम ही एक
बार राजधानी की शराब दुकानों का जायजा लें। शुरू किया गोमती नगर से। सबसे बड़े और
व्यस्त चौराहे की मॉडल शॉप। शाम के आठ बजे ही शॉप के बाहर मोटरसाइकिलों की भीड़।
आहा, युवा लखनऊ का जोश यहाँ उबाल मार रहा है! सब पीने-खाने
में मस्त। हर मेज़ पर बीयर,व्हिस्की की बोतलों-गिलासों के साथ
बहसें भी गरम। मोहनलालगंज के भयानक हादसे से अब भी सब का गम बढ़ा हुआ था और पूछ रहे
थे कि आखिर वह युवती रात के सन्नाटे में अकेले वहाँ करने क्या गई थी?
जो सवाल वे होशोहवाश में नहीं पूछ पाए थे, अब नशे में ज़ोर-ज़ोर से पूछ रहे थे। वे सब पुरुष थे। सोलह से छब्बीस और
सत्ताईस से पचास-साठ तक के पुरुष। नशे में भी उन्हें महिलाओं के चरित्र और आचरण का
बहुत ध्यान था। इसके अलावा वहाँ सिगरेट का धुआँ, गालियां और
लड़खड़ाती जुबानें थीं।
हमने दूसरी दुकान का रुख किया। वह और भी बड़ी थी और
पीने-खाने का बेहतरीन इंतजाम। इसलिए बाहर और भी ज़्यादा बाइकें और अंदर खूब ज़्यादा
धुआँ, बहसें और नशा। सड़क किनारे खड़ी गाड़ियों के अन्दर भी पैग बन रहे थे। इंजन
और एसी चालू थे। एयरकण्डीशण्ड बार!
गोमती नगर, इंदिरा नगर, महानगर और हजरतगंज की मॉडल शॉपों पर नज़र डालते हुए (पता नहीं प्रशासन कब
और कैसी नज़र डालेगा!) हम वापस गोमती नगर आ गए। दस बजने वाला था और मॉडल शॉपों के
आस-पास देश-दुनिया और समाज की चिंता गहरी हो चुकी थी। इस चिंता में नॉन वेज के
ठेले और खोंचे जल्दी-जल्दी खाली होने लगे थे। मॉडल शॉप से स्टार्ट हुई बाइकें
फर्राटा मारती उड़ी जा रही थीं। उन पर सवार दो-दो, तीन-तीन
युवक उत्साह में चीखते, हवा में हाथ लहराते, सीटियां और डॉयलॉग मारते उड़े जा रहे थे। कुछ के हाथों में अब भी बोतलें
थीं। युवा भारत का जोश पूरे शबाब पर था। हम चौराहे के डिवाइडर पर खड़े इस छलकते
उत्साह को सगर्व देखा किए।
दस बजते-बजते पूरा बाजार बंद हो गया लेकिन चौराहा
बढ़ती भीड़ से गुलज़ार होता रहा। मॉडल शॉप हाउस फुल। सो, सड़क के दोनों तरफ कारों के भीतर, उनकी छत और
डिक्कियों में, पान की गुमटियों और नॉन वेज के खोंचों तक इतने
ज़ाम कि सड़क तक जाम हो गई।
तभी फर्राटा मारती दो बाइकें बीच चौराहे पर भिड़
गईं। उस तरफ दौड़ने वाले हम अकेले थे। भरा-पूरा चौराहा अपने में ही मस्त रहा। गनीमत
कि लड़कों को चोट ज़्यादा नहीं आई थी। किसी का घुटना छिल गया था और किसी की उँगलियों
से खून टपक रहा था। हेलमेट बाइकों में पीछे सुरक्षित बंधे थे और लड़कों के सिर भी
सलामत थे। कुछ दवा-मरहम-पट्टी के इरादे से हम दवा की दुकान की तरफ लपके लेकिन वह
तो बंद थी। पूरे बाज़ार के साथ दवा की दुकान भी कबके बंद हो चुकी थी।
तब हमें पता चला कि हमारे प्रदेश में रात दस बजे
बाद दवा की दुकान नहीं खुल सकती मगर दारू की दुकान (हालांकि यह मॉडल शॉप की तौहीन
है) रात ग्यारह बजे तक नियमतः और उसके बाद अनियमतः खुली रह सकती है।
वाह! हमने अपनी सरकार
की दाद दी। दवा सिर्फ दस बजे तक लेकिन दारू आधी रात तक। नशा करने के बाद पूरी
आज़ादी है। जो चाहे, करो- छिनैती, छेड़छाड़
या हत्या। बाज़ार दस बजे इसलिए बंद कि शरीफ जनता, खासकर
महिलाएं ख़रीदारी, वगैरह निपटाकर सुरक्षित घर पहुँच जाएँ। दस
बजे बाद निकलें तो अपनी ज़िम्मेदारी पर।
इसीलिए अखिलेश यादव के एक युवा मंत्री ने कहा है कि
सरकार हर महिला के पीछे पुलिस नहीं लगा सकती। हमारा विनम्र सुझाव है कि सरकार हर
शराबी के पीछे एक पुलिस वाला लगा दे। दोनों एक साथ मॉडल शॉप में बैठें और रात में
एक साथ शहर की गश्त पर निकलें। देखें, कैसे नहीं रुकते
महिलाओं के साथ होने वाले अपराध!
(रविवार, 27 जुलाई को नभाटा, लखनऊ में छपा कॉलम- "तमाशा मेरे आगे"। सुधीर ने यह कॉलम शुरू करवा तो लिया, देखिए, कितना निभ पाता है।)
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