मोटर साइकल पर पीछे बैठे
सज्जन के कंधे पर कपड़े का थैला टंगा दिखा. उस पर हरी स्याही से छपा है- ‘पर्यावरण बचाएं, पॉलीथीन से दूर रहें.’ एक डिपार्टमेण्टल स्टोर के
काउण्टर पर नोटिस टंगी है- ‘ग्राहकों की सुविधा के लिए 20 रु में बड़ा और 10 रु में छोटा
थैला उपलब्ध है. पॉलीथीन का इस्तेमाल अब नहीं होगा. ग्राहक जब चाहें थैला लौटा कर
उसका मूल्य वापस ले सकते हैं.’ एक एफएम चैनल अपने श्रोताओं से पॉलीथीन के खतरों पर बात कर
रहा है और उन्हें कपड़े के थैले नि:शुल्क बांटने की सूचना दे रहा है. ऐसे थैले कुछ
अन्य संगठन और संस्थान भी बांट रहे हैं. मॉल और दुकानों में ईको-फ्रेण्डली लिफाफे
और थैले दिख रहे हैं. बाजार में कागज के लिफाफे वर्षों बाद वापास आए हैं. कुछ
स्वयंसेवी संगठन भी जनता को सचेत करने के वास्ते सक्रिय हुए हैं.
देख कर अच्छा लगता है कि
अपने शहर में बहुत सारे सजग और समझदार नागरिक हैं. इस पहल को बढ़ाना होगा. पॉलीथीन
से मुक्ति के लिए लम्बा सफर तय करना है. मैं सब्जी मण्डी में खड़ा हूँ. बहुत कम लोग
घर से थैले लाए हैं. आलू, प्याज, टमाटर से लेकर धनिया, अदरक और हरी मिर्च के लिए अलग-अलग आकार की
पन्नियां इस्तेमाल हो रही हैं. दुकानदारों को पॉलीथीन में सामान तौलने में कोई
संकोच नहीं. खरीदने वालों को भी नहीं. मैंने पूछा- ‘पॉलीथीन पर रोक लग गई, पता है?’ सब्जी वाला एक बार मेरी
तरफ देख कर फिर तौलने में व्यस्त हो गया. खरीदने वाले सज्जन बोले- ‘गुटखा पर भी रोक लगी थी, बंद हुआ? पॉलीथीन भी बंद न होगी.’ मैं कहा- ‘कोई बंद नहीं कर पाएगा अगर
आप नहीं चाहेंगे.’ पॉलीथीन के कई-कई थैले लटकाए वे चले गए तो मैंने हिसाब
लगाया कि सब्जी खरीदने वाला हर व्यक्ति औसतन छह पॉलीथीन एक बार में घर ले जा रहा
है. सुबह से शाम तक एक घर में कितनी पॉलीथीन पहुंच रही है! छोटे-छोटे दुकानदार, खोंचे-ढाबे सबसे ज्यादा
पॉलीथीन का इस्तेमाल करते हैं. उन तक यह चेतना पहुंचाने की बहुत जरूरत है. इसे हम
अपना फर्ज मान लें.
हम सब मिल कर ही इसे रोक सकते हैं. नियम बन गया है और सजा
का भी प्रावधान भी है लेकिन क्या ही अच्छा हो कि किसी जोर-जबर्दस्ती की जरूरत ही न
पड़े. हम घर से निकलें तो एक थैला साथ में हो. वह गाड़ी में रखा हो,
साइकिल के हैण्डल में टंगा हो. पहले हम ऐसा ही करते थे. दाल-चावल और सब्जी लाने के
अलग-अलग झोले घर में होते थे. फिर पॉलीथीन ने हम सबकी आदत बिगाड़ दी. हमारी बिगड़ी
आदत ने पर्यावरण की हालत खराब कर दी. अब इसे दुरस्त करने का समय है. हर नागरिक को
इसमें भूमिका निभानी होगी. ऐसे उदाहरण हैं जहां नागरिकों के सक्रिय सहयोग से पॉलीथीन
पर पूरी रोक लगी हुई है, जैसे नैनीताल. वहां कई साल से इस पर
रोक है और किसी को कोई दिक्कत नहीं होती.
ताज्जुब है कि पॉलीथीन उत्पादक अब भी विरोध पर अड़े हैं बजाय
इसके कि कोई दूसरा काम शुरू करें. उन्हें समझना होगा कि यह फैसला उनके खिलाफ नहीं
है, बल्कि मनुष्य के बेहतर भविष्य के लिए आवश्यक है. सरकार को भी चाहिए कि वह
उनके सामने विकल्प रखे और नए उद्यम लगाने में उनकी सहायता करे. पॉलीथीन का
इस्तेमाल पूरी तरह रोकने के लिए उसका उत्पादन बंद होना जरूरी हैं. उम्मीद है लखनऊ में
इस अभियान को हम कामयाब बनाएंगे ताकि दूसरे जिले हम से सीख लें.
(नभाटा, लखनऊ, 22 जनवरी, 2016)
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