-“सुनिए, मुख्यमंत्री जी, मैं दिल्ली में आडवाणी जी
से मिला तो उन्होंने कहा कि यूपी में कानून व्यवस्था की हालत खराब है, भ्रष्टाचार का बोलबाला
है... आडवाणी जी बड़े नेता हैं और झूठ नहीं बोलते.... सख्त हो जाइए, अपराधियों में डर पैदा
होना चाहिए.” 23 मार्च 2013 को लखनऊ में राम मनोहर लोहिया जयंती समारोह में
समाजवाद पर बोलते-बोलते मुलायम सिंह अपने बेटे और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की
सरकार पर हमलावर हो गए थे- “आपके मंत्री कुछ नहीं कर रहे, मुझसे कुछ छुपा नहीं है.”
तब अखिलेश सरकार को साल भर
ही हुआ था. मुलायम के इस तेवर पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं हुई थीं. मुख्यमंत्री
ने बाद में शांत भाव से यह कह कर चर्चाओं को खत्म कर दिया था कि नेता जी बड़े हैं, पार्टी के राष्ट्रीय
अध्यक्ष हैं और मेरे पिता हैं. उन्हें हमें डांटने का पूरा हक है.
तब से पिता बेटे को डांटते
ही आ रहे हैं लेकिन अकेले में पिता की तरह डांटने और सार्वजनिक रूप से प्रताड़ित
करने में बहुत फर्क है. यह एक-दो बार का किस्सा भी नहीं है. हर दूसरे-तीसरे महीने
किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में, जहां मंच पर मुख्यमंत्री भी होते हैं, मुलायम अपने बेटे की सरकार
को कटघरे में खड़ा कर देते हैं. कभी-कभी तो ऐसी तीखी बातें कह जाते हैं, जैसी अखिलेश के विरोधी भी
कहने से बचते हैं. तारीफ के शब्द उनके मुंह से कम ही निकलते हैं.
-“आपकी सरकार को चापलूस चला
रहे हैं.” चार मार्च 2014 को आगरा में मुलायम जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे कि
अचानक मंच पर मौजूद अखिलेश से मुखातिब हो गए- “सुन लीजिए, मुख्यमंत्री जी, अपनी सरकार के बारे में. चापलूसी
से काम हो रहा है. चापलूसी से खुश होने वाले धोखा खाते हैं.” उस दौरान कानपुर में
सपा विधायक और पुलिस द्वारा जूनियर डॉक्टरों की बेरहम पिटाई से पूरे प्रदेश के
डॉक्टर हड़ताल पर थे. गम्भीर मरीज इलाज के अभाव में मौत के मुंह में जा रहे थे
जिसके लिए सपा सरकार की चौतरफा आलोचना हो रही थी.
-“ये तो बहुत बिजी सी एम
हैं.” पांच अगस्त 2015 को लखनऊ में एक कार्यक्रम में मुलायम मंचासीन अखिलेश पर तंज
किया. हुआ यह कि मुलायम प्रदेश में राहत कार्यों के लिए केंद्र से पर्याप्त धन
नहीं मिलने की चर्चा कर रहे थे कि अखिलेश बगलगीर मंत्री से कुछ बतियाने लगे. यह
देख मुलायम बोले– “मैंने मुख्यमंत्री से कहा था कि राहत कार्यों के लिए धन की मांग
पर एक नोट बनाकर मुझे दीजिए. लेकिन ये किसी की सुनते ही नहीं.” फिर अखिलेश से
उन्होंने सीधे पूछ लिया था- “बताइए तो अभी मैं क्या कह रहा था?”
लोक सभा चुनाव 2014 में
बुरी पराजय के बाद उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच कहा था- “मैंने सी एम से
कहा था कि लैपटॉप मत बांटिए. देखिए क्या हुआ, हमारे दिए गए लैपटॉप पर मोदी के भाषण सुने गए!”
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने चुनाव घोषणा पत्र के मुताबिक इण्टर पास छात्रों को
फ्री लैपटॉप बांटे थे. इसके लिए हुए पहले भव्य कार्यक्रम में खुद मुलायम भी खुशी-खुशी
मौजूद थे.
पिछले करीब चार साल में ऐसे
कई वाकये हुए जब मुलायम ने अखिलेश को सबके सामने खरी-खरी सुनाई और सरकार की तीखी
आलोचना की. एक बार उन्होंने किसी योजना में विलम्ब का जिक्र करते हुए अखिलेश से कहा
था- “मैं मुख्यमंत्री होता तो काम छह महीने में हो जाता.”
ताजा मामला बीते सोमवार, आठ फरवरी 2016 का है.
पार्टी मुख्यालय में अगला विधान सभा चुनाव जीतने के लिए मंत्रियों, विधायकों और कार्यकर्ताओं
को जनता के बीच जाने की हिदायतें देते-देते वे मुख्यमंत्री की आलोचना करने लगे-
“ये तो लोगों से मिलते ही नहीं. लखनऊ में ही छोटे-छोटे कार्यक्रमों में बिजी रहते
हैं. जब भी मैं पूछता हूं, कहां हो, तो कहते हैं कि लखनऊ में एक प्रोग्राम में हूं.”
अखिलेश यादव हर बार इसे ‘एक पिता की अपने बेटे को
डांट’ कहकर टाल देते हैं लेकिन साफ है कि यह इतना ही मामला नहीं है. इसके एकाधिक
कारण हैं.
पहला कारण यह कि अखिलेश को
मुख्यमंत्री बनाने का विरोध मुलायम के परिवार में ही काफी हुआ था. उन्हें मनाने
में मुलायम को दो दिन लगे थे, वह भी यह कह कर कि सरकार की बागडोर तो मेरे ही हाथ रहेगी.
सो, अखिलेश सरकार को बार-बार डांट कर वह उन लोगों को यह संदेश देते रहते हैं कि
सरकार पर उनकी पूरी नज़र है. मुख्यमंत्री एक मात्र प्रमुख सचिव की मार्फत वे सरकार
पर पकड़ बनाए भी हुए हैं.
दूसरा कारण यह कि सरकार
बनने के छह महीने के भीतर ही कानून-व्यवस्था बिगड़ने के कारण अखिलेश सरकार की तीखी आलोचना
होने लगी. यह अखिलेश सरकार की कमजोर नस है भी. अखिलेश को सबके सामने डांट लगा कर
मुलायम पार्टी के भीतर और बाहर हो रही इन आलोचनाओं की धार कुंद करने का प्रयास
करते हैं. मुलायम के दांव-पेच अच्छी तरह समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेंद्र
शर्मा भी मानते हैं कि सरकार के प्रति विपक्ष और जनता का गुस्सा शांत करने की यह
मुलायम की चाल ही हो सकती है.
वे पार्टी कार्यकर्ता जो
अखिलेश सरकार में महत्व नहीं पा पाए या जो और किन्हीं कारणों से असंतुष्ट हैं, वे अखिलेश की तरफ छोड़े गए
मुलायम के इन शब्द बाणों से राहत पाते हैं और जोश में आ जाते हैं. अकारण नहीं है
कि मुलायम ऐसी ज्यादातर बातें तब कहते हैं जब पार्टी कार्यकर्ता, विधायक और मंत्री सुन रहे
होते हैं. मुख्यमंत्री को डांटने का अर्थ उनके मंत्रियों और विधायकों को प्रताड़ित
करना भी जरूर होता है. अखिलेश के लिए कई मंत्री व विधायक काफी वरिष्ठ हैं, जिनके पेच वे खुद नहीं कस
पाते. ऐसे मंत्रियों को अखिलेश की तरफ से डांटने का यह मुलायम का एक तरीका भी हो
सकता है. मंत्रियों को वे भ्रष्ट और जनता के बीच न जा कर लखनऊ में ऐश करने वाला तक
कह चुके हैं.
पार्टी के भीतर कुछ नेता, खासकर अखिलेश समर्थक, दबी जुबान में इसे मुलायम
पर बुढ़ापे का असर भी मानते हैं तो विपक्ष, खासकर भाजपा के नेता इसे बाप-बेटे का ड्रामा
बताते हैं.
मुलायम का असली मकसद तो वे
ही जानें लेकिन एक बात साफ है कि युवा मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश की छवि पर
इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. सपा अगला विधान सभा चुनाव अखिलेश सरकार की ‘उपलब्धियों’ को सामने रखते हुए उन्हें
ही फिर मुख्यमंत्री का उम्मीदवार पेश करके लड़ना चाहती है. ऐसे में खुद मुलायम
द्वारा प्रदेश सरकार की आलोचना न केवल अखिलेश को ‘असफल’ बताती है बल्कि विपक्ष के हाथ में बड़ा हथियार
भी सौंपती है.
(बीबीसी.कॉम. 06 मार्च, 2016)
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