Friday, May 12, 2017

कहां रहिए, क्या खाइए, बताइए तो!

नसीमुद्दीन के बसपा के निष्कासन की खबर सुन कर टीवी खोला लेकिन अपने प्रिय चैनल में कुछ और ही चल रहा था. गैस के चूल्हे पर पत्ता गोभी का एक पत्ता भूना जा रहा था. तेज आंच में भी उस हरे-धानी पत्ते का बाल बांका न हुआ, वह आग को चुनौती देता वैसा ही बना रहा. हम नसीमुद्दीन को भूल कर करामाती पत्ता गोभी को देखते रहे.  अब गोभी के उस पत्ते को खीचा-ताना जा रहा था जो रबर की माफिक खिंचता ही चला गया. हम हैरान. यह सुन कर तो हम सन्न ही रह गये कि यह गोभी सब्जी बनाने के लिए बाजार से खरीदी गयी थी. वह किसी खेत की मिट्टी में उगायी गयी थी या नकली सब्जियों के कारखाने में, खुदा जाने!

चंद रोज पहले ही हमने पत्ता गोभी के गुण पढ़े थे कि विटामिन सी से भरपूर है, कैलोरी कम है और आंत का कैंसर होने से रोकने में सहायक है. तभी इन दिनों खूब पत्ता गोभी खा रहे थे कि यह वज्रपात! हम एकाएक इस रिपोर्ट पर भरोसा न करते मगर चंद रोज पहले एक परिचित, समझदार बिटिया बता कर गयी थी कि अंकल, आजकल नकली अण्डे आ रहे हैं. ऑमलेट बनाओ तो वह प्लास्टिक की तरह हो जाता है. नकली अण्डों की खबर कहीं पढ़ी भी थी. तब हंस दिये थे कि आज के पत्रकार कैसी-कैसी खबरें छपने लगे हैं. मगर उस बिटिया ने कहा तो हमें अपने फ्रिज में रखे अंण्डों पर शक हो गया. उनमें कुछ अजीब आकार के दिखे. कोई टेढ़ा, कोई कम्बख्त ऊबड़-खाबड़ खोल वाला. हमने माथे पर हाथ मारा कि प्रोटीन का हमारा एक अच्छा स्रोत भी नकली हो गया! साजिश मुर्गी की है या बाजार की?

अभी तक हवा-पानी के प्रदूषण और मिलावट से डरते थे. अब नकली सब्जी और अण्डे आने लगे! दूध से अपच है सो दही का सहारा रहता था. घर में क्या बढ़िया दही जम जाया करता था. अब नहीं जमाते  क्योंकि दही की बजाय अजीब लसलसा पदार्थ मिलता है. दही के तार बनने लगते हैं, शहद की तरह. दूध में पानी की मिलावट का जमाना गया. अब नकली दूध बनने लगा है, सुना. जाने क्या-क्या रसायन मिलाकर दूध बना देते हैं कि झाग भी दिखे और मलायी भी जमे! बाजार का गाढ़ा दही ललचाता है मगर जाने क्या मिला कर जमाते होंगे.

डॉक्टर कहते हैं पपीता खाइए, केला खाइए, हरा साग खाइए. आये दिन सुनते-पढ़ते हैं कि केला, पपीता, आम, आदि कार्बाइड से पकाये जा रहे हैं और लोगों को बीमार बना रहे हैं. हरे साग के पत्तों से महक नहीं आती, नथुनों में पेस्टीसाइड की तीखी दुर्गंध भर जाती है जो पकने पर भी जाती नहीं. लौकी हाथ में लो तो ऑक्सीटोसिन का इंजेक्शन दिखता है. तरबूज के लाल रंग में किसी सीरिंज का डंक चुभता है. सेब को रंगा और पॉलिश किया जा रहा है. डाइटीशियन से पूछा तो कह रही थी कि नमक के पानी में भिगो कर रखिए, पोटाश से धोइए. हमने सोचा कि पोटाश ही खाना है तो फल क्यों खरीदें!


चूल्हे की तेज आंच में मजे से मुस्कराता और प्लास्टिक की तरह खिंचता गोभी का पत्ता देखने के बाद हम बहुत व्याकुल हैं. हे बजरंगबली, इस जेठ में इतनी कृपा कर कि रबर की आंतें दे या वह जगह बता जहां....  (नभाटा, 12 मई, 2017)

2 comments:

Unknown said...
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Unknown said...

मिलावट पर बेहद संजीदा और जानकारी से भरा लेख। समझ में नहीं आता कि कैसा समय आ गया है कि आदमी ही आदमी का दुश्मन बन गया है। कल शुक्र बाजार से हम भी लाल और हरी-भरी चौलाई पर मुग्ध हो गए, खरीद लाए, पकाया, खाया। लेकिन, असलियत में हरे साग के मोह में मैं ही दो बार खा गया उस स्वादहीन चौलाई को। पता लगा बेटी और पत्नी ने तो वह खाया ही नहीं। आखिर क्या था वह? पालक लाना इसलिए बंद कर दिया कि पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय से मेरी प्रशिक्षित नाक उसकी भाप में कीटनाशकों की गंध को पहचान लेती है। उस पालक को खाना गैमेक्सीन या डीडीटी खाना होता है। मझली बिटिया बता रही थी कि पिछले कई दिनों से बैंगन बाहर रखे हैं लेकिन वे ज्यों के त्यों चमकदार बने हुए हैं। स्टीफन हाकिंग कह तो सही रहे हैं कि मानवता को बचाना है तो मनुष्य को जल्दी से जल्दी दूसरे किसी ग्रह पर जाकर बसना चाहिए। लेकिन, वहां भी तो वे ही लोग जा पाएंगे जिनके पास वहां जाने के लिए धन है। बाकी लोग यहां छूट जाएंगे मगर एक-दूसरे की जान लेने का ये जो हुनर वे सीख गए हैं, उससे क्या यह धरती आबाद रह पाएगी? कई बार सोचता हूं, गलती से ही सही, आखिर वे हुनरमंद लोग और उनके परिवार के लोग, बाल-बच्चे भी तो कभी गलती से यही सब नकली और जहरीला खाना खा लेते होंगे? क्या उनकी भी फिक्र नहीं है इन मिलावटखोरों को?
- देवेंद्र मेवाड़ी