Tuesday, September 19, 2017

बड़े बांध विरोधी स्वर तेज हो रहे


कई तकनीकी एवं कानूनी रुकावटों और लम्बे जन-आंदोलनों के बावजूद सरदार सरोवर बांध अंतत: अपनी पूरी ऊंचाई के साथ हकीकत बन गया. मगर एक आदिवासी के विस्थापन की तुलना में सात आदिवासियों को लाभ पहुंचाने’ के दावे वालेदुनिया के दूसरे सबसे बड़े इस बांध के उद्घाटन के साथ बड़े बांधों के व्यापक नुकसान की चर्चा थम नहीं गयी है. बड़े बांधों के खिलाफ आवाज बुलंद करने वालों के तेवर और तर्क अपनी जगह कायम हैं. बल्किसरदार सरोवर के उद्घाटन के बाद वे और ज्यादा गूंजने लगे हैं.
यह सवाल और भी शिद्दत से पूछा जाने लगा है कि क्या विकास के लिए बड़े बांध जरूरी हैंक्या बड़े बांधों के आर्थिक लाभ एक विशाल आबादी के अपने समाजसंस्कृतिपेशेजमीनरिश्तोंजीवन शैली और पर्यावरण से बेदखल होने की भरपाई कर सकते हैंक्या छोटे-छोटे कई बांध उनका विकल्प नहीं हो सकते?
यह संयोग नहीं है कि सरदार सरोवर बांध के उद्घाटन के दरम्यान उत्तराखण्ड में नेपाल सीमा पर महाकाली नदी पर प्रस्तावित पंचेश्वर बांध के विरोध में जनता आंदोलन कर रही है. पंचेश्वर दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी जल विद्युत परियोजना बतायी जाती है. यह टिहरी बांध से तीन गुणा बड़ा होगा जो पिथौरागढ़चम्पावत और अल्मोड़ा जिलों की चौदह हजार जमीन पानी में डुबो देगा. 134 गांवों के करीब 54 हजार लोग विस्थापित हो जाएंगे. विस्थापित होने वाले लोगों के समूल उजड़ने की त्रासदी सिर्फ आंकड़ों से नहीं समझाई जा सकती. त्रासदी को कई गुणा बढ़ा देने वाली सच्चाई यह है कि विस्थापित लोगों के लिए राहत और पुनर्वास की ठीक-ठाक व्यवस्था करने में हमारी सरकारें कुख्यात हैं.
विरोध टिहरी बांध का भी बहुत हुआ था लेकिन 2007 में उसे पूरा कर दिया गया. दावा था कि उससे 2400 मेगावाट बिजली बनेगी. हकीकत यह है कि आज उससे बमुश्किल 1000 मेगावाट बिजली पैदा हो पा रही है. सैकड़ों गांवों के जो हजारों लोग विस्थापित हुए थे उनमें से बहुत सारे आज भी उजड़े ही हैं. टिहरी नगर की जो प्राचीन सभ्यता डूबी उसकी क्षति का कोई हिसाब नहीं. टिहरी बांध से विस्थापित नहीं होने वाले किंतु उस प्राचीन नगर से जुड़े कई गांवों की आर्थिकी और जीवन शैली नष्ट हो गईउसका भी कोई सरकारी हिसाब नहीं.
हिमालय की कमजोर शैशवावस्था और भूकम्प के बड़े खतरों के तर्क भी टिहरी बांध के समय नहीं सुने गये थे. अब पंचेश्वर बांध के समय तो बांध विरोधी जनता के तर्क सुनने का धैर्य भी नहीं दिखाया जा रहा. इस सवाल का जवाब देने वाला कोई नहीं है कि अगर टिहरी बांध अपनी घोषित क्षमता का एक तिहाई ही विद्युत उत्पादन कर पा रहा है तो क्या गारण्टी है कि पंचेश्वर बांध से 5040 मेगावाट बिजली बन ही जाएगी? और उत्तराखण्ड के बेहतर आबाद, उपजाऊ क्षेत्र से बड़ी आबादी का विस्थापन और पर्यावरण की व्यापक क्षति उसके लिए किस तरह उचित है?
बड़े बांध बनाने के मामले में भारत का दुनिया में तीसरा नम्बर है. राहत और पुनर्वास के मामले में वह फिसड्डी ही ठहरेगा. आजादी के बाद हीराकुण्ड बांध पहला था, जिसका उद्घाटन करते हुए जवाहरलाल नेहरू ने बांधों को ‘आधुनिक भारत के मंदिर’ बताया था. विस्थापितों की समस्या पर तब उन्होंने राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत वक्तव्य दिया था कि देश के हित में तकलीफ उठानी चाहिए.’ देश के हित में तकलीफ उठाने का हाल यह है कि हीराकुंड और भाखड़ा नंगल बांधों से विस्थापित होने वाले लाखों लोगों में से कई के वंशज आज भी पुनर्वास का इंतजार करते हुए रिक्शा चला रहे हैं या मजदूरी कर रहे हैं. बाद-बाद में नेहरू जी बांधों से विस्थापित होने वाली जनता के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो गये थेसन 1958 में भाखड़ा नंगल बांध का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा था कि भारत विशालता के रोग’ से पीड़ित हो रहा है. उसी दौरान मुख्यमंत्रियों को लिखे एक पत्र में उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि विकास परियोजनाओं की जरूरत और पर्यावरण की सुरक्षा की आवश्यकता में संतुलन बनाया जाना चाहिए.
जब सरदार सरोवर बांध की योजना बनी थी यानी आज से सात-आठ दशक पहले तब बड़े बांधों के बारे में  समझ एकतरफा थी. सोचा यह गया था कि नदियों की क्षमता का बेहतर उपयोग होगाप्रदूषण-मुक्त बिजली मिलेगी और दूर-दूर तक खेतों की सिंचाई हो सकेगी. लेकिन पचास के दशक तक आते-आते इससे उपजने वाली बड़ी समस्याएं सामने आने लगी थीं. नेहरू जी का विचार-परिवर्तन इसी का नतीजा था.
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बड़े बांधों  के तुलनात्मक लाभों पर सवाल उठने लगे थे. दुनिया भर में एक बड़ा वर्ग बड़े स्तर पर जन-जीवन के अस्त-व्यस्त होने के अलावा बांधों के क्षेत्र में जैविकी एवं पर्यावरण के तहस-नहस होने का मुद्दा उठाने लगा. उनकी आवाज को व्यापक समर्थन मिला. अकेले अमेरिका में अब तक करीब एक हजार बांध ध्वस्त किये जाने की चर्चा करने वाले लेख इण्टरनेट पर मौजूद हैं. अब तो वहां मध्यम आकार के बांधों को भी पानी की गुणवत्ता और नदी की सम्पूर्ण जैविकी को नष्ट करने वाला माना जाने लगा है. मिस्र में नील नदी के प्रवाह-क्षेत्र में व्यापक क्षरणकृषि-उत्पादन में गिरावट और कई परजीवी-जनित रोगों के लिए आस्वान बांध को जिम्मेदार ठहराया जाता है.
हमारे देश में बड़े बांधों से उपजी समस्याएं और भी ज्वलंत इसलिए हैं  क्योंकि विस्थापित जनता को राहत देने  और उनके पुनर्वास के मामले में घोर संवेदनहीनता बरती गयीं. सरदार सरोवर और टिहरी बांधों के विरोध में छिड़े व्यापक आंदोलनों ने इन मुद्दों को जोर-शोर से उठाया. उन्हें समर्थन भी काफी मिला. नर्मदा बचाओ आंदोलन का ही नतीजा था कि सरदार सरोवर बांध के लिए मदद दे रहे विश्व बैंक ने बाद में अपनी शर्तें काफी कड़ी बना दीं जो भारत सरकार को मंजूर नहीं हुईं और मदद अस्वीकार कर दी गयी.
सरदार सरोवर बांध के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भी राहत और पुनर्वास के सवालों को अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना. एक समय तो उसने बांध के निर्माण पर रोक लगा दी थी. बाद में पूरी ऊंचाई तक निर्माण की इजाजत देते हुए विस्थापितों के पर्याप्त पुनर्वास और राहत प्रक्रिया की नियमित देख-रेख करते रहने के निर्देश दिये थे.

बांध-विरोधी आंदोलनकारी टिहरी बांध का बनना रोक सके न सरदार सरोवर बांध को. सरकारों के तेवर से लगता है कि पंचेश्वर बांध भी बन कर रहेगा. इतने वर्षों के आंदोलन की सफलता यह है कि राहत और पुनर्वास के मुद्दों पर राष्ट्रव्यापी जागरूकता फैली है. इस तर्क को भी व्यापक स्वीकृति मिली है कि बड़े बांधों या विशाल परियोजनाओं वाले विकास-मॉडल का विकल्प अपनाया जाना चाहिए.
(प्रभात खबर, 20 सितम्बर 2017) 

1 comment:

सुधीर चन्द्र जोशी 'पथिक' said...

अच्छा जानकारी देता लेख। बाँधों की गणित, अर्थ और सामाजिक समझ मेरी बहुत अच्छी नही है, फिर भी मुझे भी लगता है कि छोटे छोटे अनेक बाँध बनाया जाना अधिक लाभकारी होता। इससे विस्यापन की बड़ी समस्या भी नही होती और जगह जगह गाँवों में या आस पास ही रोज़गार भी लोगों को मिलता और पलायन भी कम होता। पलायन पर्वतों.और मैदानी गाँवों की समान समस्या है। टेहरी बाँध जो अपेक्षाओं पर खरा नही उतरा, उससे सबक लिया ही जाना चाहिए। जहाँ तक सरदार सरोवर बाँध का प्रश्न है, इतनी लम्बी यात्रा के बाद यह चालू तो होता ही, सो, कोई आश्चर्य का विषय नही है। सरकार के पास छोटे बाँधों के प्रस्ताव जाते रहने चाहिए और पंचेश्वर बाँध के सम्बंध में संघर्ष ज़ारी रहना शायद अपने उद्देश्य को प्राप्त कर ले। थोड़ा मुश्किल ज़रूर है।