Tuesday, December 12, 2017

टुकड़े-टुकड़े हो बिखर चुकी मर्यादा


साल 2014 का आम चुनाव नरेंद्र मोदी ने परिवर्तनसुशासनविकासअच्छे दिन और भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध के नारे से लड़ा था. यूपीए-2 की विफलताओं और घोटालों से आजिज जनता ने बड़ी आशा से मोदी के नेतृत्त्व में भाजपा को भारी विजय दिलवाई. उसके बाद बिहार और उत्तर प्रदेश विधान सभा के चुनावों में मोदी ने खूब चुनाव-प्रचार किया. जब गिरिराज सिंह तथा संगीत सोम से लेकर अमित शाह तक अनर्गल प्रलाप के अलावा साम्प्रदायिक रंग वाले भाषण दे रहे थे तब मोदी ने चुनाव सभाओं में अपने को काफी संतुलित रखा. कतिपय हिंदूवादी उद्गारों के अलावा अपनी सरकार की उपलब्धियांकड़े फैसले और भ्रष्टाचार पर हमले ही उनके भाषणों के केंद्र में रहे.
लेकिन गुजरात का चुनाव प्रचार समाप्त होते-होते मोदी को क्या हो गया? ‘हूं विकास छूंहूं गुजरात छूं’ से शुरू प्रचार देश के खिलाफ साजिश के अनर्गल आरोपोंगुजरात के चुनाव में पाकिस्तानी साठ-गांठ की कल्पित कथापाकिस्तानियों को अपने सफाये की सुपारी देने के अजब इल्जामनीच जाति के बखानपूजा के लिए नमाज की तरह बैठने के किस्सेनाना-दादी पर लांछनोंआदि-आदि में क्यों बदल गयाक्यों हमारे प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के उन अंकुशहीन नेताओं की तरह अमर्यादित भाषा बोलने लगेजिनकी जिह्वा पर कुछ लगाम लगाने की अपील अक्सर उनसे की जाती रही?
शालीन और अक्सर मौन रहने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अगर अत्यंत आहत होकर कहा कि “मोदी जी हर संवैधानिक पद पर कालिख पोतने की अपनी अदम्य इच्छा से जो नजीर पेश कर रहे हैं वह बहुत खतरनाक है “ और उनसे माफी मांगने की मांग के साथ “जिस पद पर वे बैठे हैं उसके अनुरूप परिपक्वता और गरिमा-प्रदर्शन” की अपील की है तो क्या गलत कियाभाजपा के वरिष्ठ मंत्री अब बचाव की मुद्रा में भांति-भांति के तर्क पेश कर रहे हैं.
जिस निजी भोज-चर्चा में पूर्व प्रधानमंत्रीपूर्व उप-राष्ट्रपतिपूर्व सेनाध्यक्षपूर्व राजनयिक और पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री के साथ चंद वरिष्ठ पत्रकार शामिल रहे होंऔर ऐसी बैठकें मोदी जी की जानकारी में पहली बार नहीं हुई हैंउसे गुजरात चुनावों से जोड़कर पाकिस्तानी दखल और एक मुसलमान (अहमद पटेल) को राज्य का मुख्यमंत्री बनाने की पाकिस्तानी साजिश में कांग्रेस के शामिल होने का आरोप लगाकर प्रधानमंत्री ने निश्चय ही अपने पद की गरिमा गिराई है. उन्होंने अनावश्यक रूप से पाकिस्तान को यह कहने का मौका दे दिया कि “चुनाव अपनी क्षमता से जीतेंअपनी चुनावी बहसों में पाकिस्तान को न घसीटें और भारत के प्रधानमंत्री थोड़ा सयानापन दिखाएं”
निश्चय ही प्रधानमंत्री को ये आपत्तिजनक बातें कहने के लिए वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मणिअशंकर अय्यर के अत्यंत निंदनीय बयान ने उकसाया. अय्यर ठीक से हिंदी न जानने के बहाने प्रधानमंत्री को “नीच” कहने की सफाई भले देंइस मुंहफट नेता ने सर्वथा आपत्तिजनक बात कही. किंतु ऊटपटांग बोलने के लिए कुख्यात किसी विरोधी नेता के बयान से प्रधानमंत्री पद पर बैठे नेता का मर्यादा भूल जाना क्या कहलाएगाफिर, “नीच आदमी” को “नीच जाति का आदमी” बना देनाउसे “गुजराती अस्मिता” से जोड़कर “गुजरात और गुजराती का अपमान” बता कर चुनाव-सभाओं में “वोट से बदला लेने” के लिए ललकारना क्या प्रधानमंत्री को शोभा देता है?
पिछले दिनों प्रधानमंत्री हफ्ते में पांच दिन गुजरात में सघन चुनाव-प्रचार में जुटे रहे. जैसे-जैसे प्रचार का समय बीतता गया उनकी वाणी संतुलित होती गयी और उसी तेजी से विकास के दावे और वादे नदारद हो गये. कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में अपने मुवक्किल की तरफ से रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई टालने की दलील क्या दीमोदी जी ने उसे भी कांग्रेस के खिलाफ चुनावी मुद्दा बना लिया. राहुल के नाना और दादी के किस्से तो वे सुना ही रहे थे. राहुल की ताजपोशी पर अय्यर ने औरंगजेब का जिक्र क्या कियामोदी उनके बयान का आधा हिस्सा लेकर “कांग्रेस के औरंगजेब राज” तक पहुंच गये.
नोटबंदी से “काले धन और भ्रष्टाचार की कमर तोड़ने” और जीएसटी के “साहसी फैसले” का जिक्र करना वे गुजरात में क्यों भूल गये? अपने तीन साल के शासन की उपलब्धियां गिनाना भी उनसे नहीं हो पाया. वे कांग्रेस पर इस कदर हमलावर हो गये कि राहुल ने तंज कर डाला कि “मोदी जीआप तो कांग्रेस को खत्म करने का दावा करते हैंफिर हर समय कांग्रेस की ही बात क्यों करने लगे?” भाजपाई बागी शत्रुघ्न सिन्हा ने पूछा कि “आदरणीयक्या किसी भी कीमत पर चुनाव जीतने के लिएवह भी प्रचार के अंतिम दौर मेंअपने राजनैतिक विरोधियों के विरुद्ध बिल्कुल नयीअप्रमाणित और अविश्वसनीय कथाएं गढ़ना बहुत जरूरी हो गया है?” मोदी के अविश्वसनीय आरोपों पर  भाजपा के सहयोगी दल जद (यू) के पवन वर्मा को कहना पड़ा कि यह “कुछ ज्यादा ही हो गया”
विपक्षी दलोंविशेष रूप से कांग्रेस की हौसला अफजाई करता हुआ यह तथ्य भी गुजरात के इस चुनाव-प्रचार से निकला है कि राजनीति के लिए अनुपयुक्त ठहराये जा रहे राहुल गांधी कहीं बेहतरजिम्मेदार और शालीन नेता के रूप में उभरे हैंजबकि अजेय-सा माने जा रहे नरेंद्र मोदी की छवि अपने ही कारण धुंधली हुई है. स्वयं उनके कई समर्थकों ने उनके हाल के बयानों पर आश्चर्य प्रकट किया है.
संयोग है कि इसी हफ्ते राहुल कांग्रेस अध्यक्ष भी निर्वाचित घोषित किये गये हैं.  मोदी की तुलना में राहुल ने ज्यादा संयम और जिम्मेदारी वाले बयान दिये. जब मोदी कांग्रेस पर अजब-गजब आरोप लगा रहे थे तब राहुल कह रहे थे कि “हम प्रधानमंत्री पद का सम्मान करते हैंइसलिए प्रधानमंत्री की मर्यादा के विपरीत कुछ नहीं कहेंगे. हम उन्हें प्यार से हराएंगे.” बड़बोले अय्यर को कांग्रेस से निलम्बित करने का राहुल का फैसला भी काफी सराहा गया. इससे भी मोदी पर जवाबी दवाब बनाहालांकि साम्प्रदायिक-घृणा-जनित हत्याओं पर भी प्रधानमंत्री मौन ही रहे.
गुजरात का चुनाव नतीजा चाहे जो होउसने राजनैतिक मतभेदों को निजी वैमनस्यता, अनर्गल-अविश्वसनीय आरोपों तथा संवैधानिक पदों के मर्यादा-भंग के निम्न-स्तर तक पहुंचाया. खेद है कि इस अनैतिक संग्राम में प्रधानमंत्री स्वयं भी शामिल हो गये. यह याद रखा जाना जरूरी है कि राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों में मर्यादा और परस्पर सम्मान हर हाल में बनाये रखने का अलिखित लोकतांत्रिक नियम है. नेताओं को आत्मनिरीक्षण करना चाहिएवर्ना 2019 आते-आते भारत विश्व-गुरु नहींहंसी का ही पात्र बनेगा.
“अंधा युग” में धर्मवीर भारती की पक्तियां स्मरण हो आती हैं- “टुकड़े-टुकड़े हो बिखर चुकी मर्यादाइसको दोनों ही पक्षों ने तोड़ा है. पाण्डव ने कम, कौरव ने कुछ ज्यादायह रक्तपात अब कब समाप्त होना है.”
मर्यादा का यह रक्तपात गुजरात में ही थम जाए तो अच्छा. संविधान हमारे नेताओं को सदबुद्धि दे. 
(प्रभात खबर, 13 दिसम्बर, 2017)  






No comments: