Friday, December 08, 2017

बाअदब, बामुलाहिजा होशियार!


लखनऊ की ग्राम पंचायत सुबंशीपुर की कभी प्रधान रही अमरकली की हमें बड़ी याद आ रही है. वह 2005 का साल था. प्रदेश में उस समय ग्राम पंचायतों के चुनाव हो रहे थे. उसी सिलसिले में गांवों का दौरा चल रहा था.  अनपढ़ अमरकली दस साल से ग्राम प्रधान थीं. अपने गांवों को उन्होंने सड़कों, नालियों, खड़ंजों, हैण्डपम्पों, स्कूल, आदि से विकसित कर रखा था. 350 से ज्यादा गरीब परिवारों को इंदिरा आवास योजना के अन्तर्गत पक्के कमान दिलवा दिये थे. वे खुद कच्चे मकान में रह रही थीं. अपने लिए पक्का घर बनवाना उनकी प्राथमिकता में था ही नहीं.

सीतापुर के बीहट गौड़ गांव के तब के प्रधान मुन्ना सिंह की भी हमें खूब याद है. उन्होंने अपनी पंचायत के गांवों को इतना विकसित कर दिया था कि 50 किमी दूर तक उसकी चर्चा होती थी. उस समय प्रधानी के उम्मीदवार वादा कर रहे थे कि हम मुन्ना सिंह की तरह ही गांवों का विकास करेंगे. गांव में सब तरफ सड़क थी लेकिन मुन्ना सिंह के घर के सामने कच्चा रास्ता था. पूछने पर उन्होंने बताया था कि मैं अपने घर के सामने की सड़क सबसे बाद में बनवाऊंगा, जब सब तरफ सड़कें बन जाएंगी. श्रद्धा और आदर से हम ऐसे प्रधानों के आगे विनत हो गये थे.

अमरकली और मुन्ना सिंह जैसे प्रधानों की याद हमें उस दिन बहुत ज्यादा आई जब हमने जाना कि संयुक्ता भाटिया के मेयर निर्वाचित होते ही लखनऊ नगर निगम ने उनके घर की तरफ जाने वाली सड़क दुरस्त कर दी. वह सड़क टूटी-फूटी न रही होगी तब भी संयुक्ता जी के मेयर बनते ही नगर निगम ने आनन-फानन उसे ठीक कर दिया. अमरकली और मुन्ना सिंह में कोई मेयर बनता तो कहते- नहीं, पहले सारे शहर की सड़कें ठीक करो, मेरे घर सबसे बाद में आना.

जनता की, उन लोगों की जिनकी सेवा के लिए जन-प्रतिनिधि चुने जाते हैं, अब कोई फिक्र नहीं करता. लखनऊ का वायु प्रदूषण स्तर इन दिनों बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है. प्रदूषण कम करने के लिए पानी छिड़कने की बात आई तो सबसे पहले राजभवन, मुख्यमंत्री निवास, सचिवालय के आस-पास के पेड़ और सड़कें तर की गईं. खानापूरी के लिए शहर के दूसरे इलाकों में भी छिड़काव का रोस्टर बनाया और प्रचारित किया गया लेकिन शायद ही कभी वहां छिड़काव किया गया हो. राजभवन, सचिवालय और कालिदास मार्ग की तरफ रोज शाम को सड़कें धोयी जा रही हैं. अग्निशमन की गाड़ियों से ऊंचे पेड़ों पर पानी फेंका गया. हरियाली होने के कारण इन वीआईपी इलाकों में बाकी शहर की तुलना में वैसे भी प्रदूषण कम होगा.

कोई वीवीआईपी कभी नहीं कहता कि पहले पूरे शहर में छिड़काव करो. पहले पूरे शहर की सड़कें ठीक करो. बिजली जाने से अस्पतालों में ऑपरेशन तक ठप हो जाएंगे लेकिन वीवीआईपी इलाकों का बल्ब कभी नहीं बुझता. कुछ दिन बाद जब शीत लहर चलेगी तो अलाव के लिए लकड़ियां लेकर नगर निगम की गाड़ी सबसे पहले मंत्रियों के बंगलों पर जाएगी. कोई मंत्री नहीं कहता कि हमारे बंगलों में अलाव की जरूरत नहीं. पहले पूरे शहर की गरीब जनता के लिए लकड़ियां पहुंचाओ. उलटे, वीआईपी फोन करके अपने बंगलों पर ज्यादा लकड़ी गिरवाते हैं.


कहने को हम लोकतंत्र हैं लेकिन इसका प्रशासनिक तंत्र वीआईपी की सेवा के लिए बन गया है. जनता की सुविधा-सेवा नहीं देखी जाएगी. वीआईपी काफिला फर्राटा मारते हुए गुजर जाए, इसके लिए जनता को जहां-तहां जाम में ठेल दिया जाएगा. गम्भीर मरीज की एम्बुलेंस के लिए सिर्फ अब्दुल कलाम नाम के राष्ट्रपति ने अपना काफिला रुकवाया था. बस. बाकी सब जन-प्रतिनिधि ठहरे बादशाह!  
(सिटी तमाशा, नभाटा, 09 दिसम्बर, 2017)

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