नवीन जोशी
आम बजट प्रस्तावों में एक यह भी है कि राजनैतिक दल किसी भी व्यक्ति से नकद में
दो हजार रु से ज्यादा चंदा नहीं ले सकेंगे. अभी यह सीमा बीस हजार रु है. इस प्रस्ताव को राजनैतिक चंदे में पारदर्शिता
लाने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है. कहा जा रहा है कि यह चुनाव सुधारों की
तरफ भी बड़ा कदम है. क्या वास्तव में?
अभी बीस-बीस हजार रु का चंदा हजारों-लाखों अग्यात लोगों से लेकर इस सीमा की
खिल्ली उड़ाई जाती है. किसी एक व्यक्ति से लाखों-करोड़ों रु नकद चंदा लेकर उसे
अलग-अलग अग्यात नामों से दिखाया जा सकता है. आगे से दो-दो हजार रु लाखों अग्यात
लोगों से मिला हुआ दर्ज किया जा सकता है. यानी राजनैतिक चंदा पहले की तरह अब भी
गोपनीय रहेगा. उसे सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर जो कर दिया गया.
इसका सबसे अच्छा उदाहरण मायावती पेश करती रही हैं. उन पर आरोप लगते आए हैं कि
वे बसपा को चंदे के नाम पर करोड़ों रु लेती रही हैं. मायावती हर बार यही जवाब देती
हैं कि लाखों की संख्या में बहुजन समाज के लोग बसपा को एक-एक, दो-दो रु चंदा देते
हैं. नोटबंदी के बाद बसपा के बैंक खाते में 104 करोड़ रु जमा होने की खबर आने पर भी
उन्होंने यही जवाब दिया था. मौजूदा नियमों में यह कोई गुनाह नहीं है. मायावती
एक-दो रु चन्दा लाखों ‘अग्यात’ लोगों से मिलने की बात कहती हैं, दूसरी पार्टियां लाखों लोगों से दो-दो हजार रु लेने की बात
कह सकती हैं और पाक-साफ बनी रहेंगी.
तो, नकद चंदा लेने की
सीमा बीस हजार से घटा कर दो हजार करने का प्रस्ताव जनता की आंख में धूल झौंकने के
सिवा और क्या है? उससे न इस मामले
में पारदर्शिता आनी है न कोई चुनाव सुधार होना है. पारदर्शिता लाने के लिए जरूरी
है कि पार्टियों को चंदा किस-किस से और कितना मिला,
यह सार्वजनिक किया जाए. दो हजार रु से ज्यादा का जो चंदा पार्टियां चेक से लेंगी, उसका दाता भी गोपनीय ही रहेगा. राजनैतिक दलों को बड़ी-बड़ी
रकम चंदे में देने वाले का नाम ही उजागर नहीं होगा तो कैसी पारदर्शिता?
यही नहीं, वित्त मंत्री ने जो
चुनाव बॉण्ड जारी करने का प्रस्ताव किया है, वह
भी कोई सुधारात्मक कदम नहीं है. कोई भी व्यक्ति कितनी भी रकम का बॉण्ड खरीद कर
पार्टियों को चंदे के रूप में दे सकता है. उसका नाम जनता के लिए 'अग्यात' ही रहेगा.
‘अग्यात श्रोतों’ से मिलने वाला भारी राजनैतिक चंदा भ्रष्टाचार और सरकारी पक्षपात का बड़ा कारण
है. एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 2004-05
से 2014-15 के बीच सात राष्ट्रीय दलों और 50 क्षेत्रीय पार्टियों को मिले कुल चंदे
का 70 फीसदी 'अग्यात श्रोतों’ से आया था. अगर चंदे का श्रोत ‘अग्यात’ ही रहना है तो उसकी
सीमा दो हजार हो या दो लाख, क्या फर्क पड़ने वाला
है?
कुछ समय पहले कानपुर की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव आयोग से
अपील की थी कि वह राजनैतिक चंदे के मामले में पारदर्शिता बरतने के लिए पार्टियों
पर दवाब डालें. इस चंदे को सूचना के अधिकार के दायरे में लाकर यह काम मोदी जी खुद
क्यों नहीं करते? (नभाटा, 05 फरवरी, 2017)
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