छोटी दीपावली की शाम अयोध्या में पौने दो लाख दीये जलाकर ‘भगवान राम की अयोध्या वापसी’ का उत्सव पहली बार
खूब धूम-धाम से मनाने की खबर हमारे मीडिया में छाई रही. मगर यह खबर ज्यादा पढ़ने को
नहीं मिली कि एक-दो रोज बाद सरयू के तट पर रखे गये इन दीयों में बच रहे या इधर-उधर
फैल गये तेल को बटोरने वाले भी उसी अयोध्या में कम न थे.
कौन लोग हैं जो दीयों में बचा तेल बटोर रहे थे और क्यों? ‘टाइम्स ऑ फ
इण्डिया’ की एक खबर बताती है
कि राम की पैड़ी की सीढ़ियों पर कुछ तेल फैला हुआ था. बुझ गये कई दीयों में भी तेल
बच रहा था. कुछ भिखारियों, संपेरों और मजदूरों
ने वह तेल खाली बोतलों में भरा और घर ले गये. एक संपेरे विजय कुमार ने उस
सम्वाददाता को बताया कि छोटी दिवाली के दिन हमारा चूल्हा नहीं जला लेकिन दूसरे दिन
‘खजाना’ हाथ लग गया.
वह कौन सा खजाना था? विजय कुमार ने रिपोर्टर
को बताया कि बुझे दीयों का तेल हमने बोतलों में इकट्ठा किया. उसके जैसे कई
परिवारों ने ऐसा किया. इससे उन्होंने खाना पकाया. कुछ ने एक-दो बोतल तेल अपने घर
भी भेजा. एक टाइम का खाना पकाने के लिए उन्हें करीब पंद्रह रु का तेल खरीदना होता
है. कमाई न हो तो नहीं खरीद पाते. इससे पहले कि प्रशासन घाट की सीढ़ियों पर बालू
डाल कर तेल की सफाई करता, उसे कई परिवारों ने
बटोर कर खाना पकाने के लिए रख लिया. यह उनकी खुशी थी, उनकी दीवाली थी.
इस बार अयोध्या की दीवाली सम्भवत: विश्व कीर्तिमान बना गयी लेकिन क्या
बचा-खुचा तेल ‘खजाने’ की तरह बटोरने वालों की ‘खुशी’ भी कहीं दर्ज होगी? उसका
भी कोई कीर्तिमान होगा? उस भव्य उत्सव और इस
लाचार खुशी के बीच कोई रिश्ता है?
अयोध्या के दीपोत्सव पर कोई टिप्पणी किये बिना यह प्रतीक है हमारे देश की उस
भयावह खाई का जो अमीरी और गरीबी के बीच न केवल बनी हुई है बल्कि बहुत तेजी से गहरी
और चौड़ी होती जा रही है. आजादी के बाद से आज तक गरीबी दूर करने के लिए सभी सरकारों
ने, नेताओं ने तरह-तरह के नारे लगाये
लेकिन गरीबी दूर नहीं हुई. नारों का जोश और शोर बढ़ता गया. गरीब और भी दूर होते चले
गये.
ताजा आंकड़े बता रहे हैं कि भारत के शीर्ष एक फीसदी अमीरों के पास देश की 53
फीसदी सम्पत्ति मौजूद है. सन 2000 में यह प्रतिशत 36.8 था. यानी सोलह वर्ष में देश
के एक फीसदी सबसे अमीर लोगों ने 16.2 फीसदी की छलांग लगा ली. अगर देश के सबसे अमीर
10 फीसदी लोगों की बात करें तो उनके पास 76.3
प्रतिशत सम्पत्ति है. अमीरों की सम्पति के हिसाब से हमारा देश अमेरिका से कहीं ज्यादा
अमीर ठहरता है, जबकि अमीर-गरीब की
खाई के मामम्ले में हम दुनिया के चंद शीर्ष देशों में शुमार होते हैं.
देश के पचास फीसदी गरीबों के पास कुल मिलाकर सिर्फ 4.1 फीसदी सम्पत्ति है. अमीरों
की सम्पत्ति तेजी से बढ़ रही है. सबसे नीचे वाले किसी तरह रेंग रहे हैं.
अयोध्या में दीयों में बचे-खुचे तेल को ‘खजाने’ की तरह बटोरने वाले इस सूची के सबसे निचले पायदान पर हैं.
या क्या पता वे आंकड़ा एकत्र करने वालों की किसी सूची में जगह ही न पाते हों.
यह कविता इस देश में सबकी जुबान पर रही है- ‘जलाओ
दीये पर रहे ध्यान इतना, अंधेरा धरा पर कहीं
रह न जाए’ लेकिन अंधेरे का
घेरा बढ़ता जा रहा है.
(सिटी तमाशा, नभाटा, लखनऊ, 28 अक्टूबर, 2017)
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