Tuesday, October 31, 2017

राजनीति का वर्चुअल संग्राम


सोशल मीडिया अभियानों से उभरी मोदी और शाह की भारतीय जनता पार्टी अब सबसे ज्यादा चिंतित दिखाई देती है, खासकर गुजरात चुनावों के सिलसिले में, तो सोशल मीडिया ही से. ट्विट्वर पर राहुल गांधी के फॉलोवरों और रिट्वीट की संख्या तेजी से बढ़ने की जैसी प्रतिक्रिया भाजपा नेताओं में हुई वह इसी चिंता का द्योतक है.  जब राहुल ने जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्सकहा तो उन्हें सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट, डिजिटल और इलेक्ट्रानिक मीडिया में खूब चर्चा मिली. मोदी की एक गुजरात यात्रा की सुबह जब राहुल ने ट्वीट किया कि आज होगी आसमान से जुमलों की बारिशतो इसे रिट्वीट और लाइक करने वालों का आंकड़ा सोशल मीडिया पर मोदी की लोकप्रियता तक पहुंच गया.

जवाब में राहुल पर तरह-तरह के तंज कसे गये, कहा गया कि यह इसी मकसद से बनाई गयी टीम तथा बोट’ (स्वचालित ऐप ) का काम है.  इसके प्रत्युत्तर में राहुल ने अपने पालतू कुत्ते का वीडियो ट्वीट करते हुए व्यंग्य किया कि इसके पीछे पिडीहै. यह जवाबी ट्वीट भी खूब रिट्वीट हो रहा है.

सोशल मीडिया में भाजपा पर यह प्रत्याक्रमण अचानक नहीं हुआ. नरेंद्र मोदी और अमित शाह समेत तमाम भाजपा नेताओं ने पिछले तीन-चार सालों में बड़े नियोजित ढंग से राहुल गांधी की जो पप्पू-छविप्रचारित की, उन पर जो मजाकिया किस्से और चुटकुले सोशल मीडिया पर प्रचारित किये, उनसे राहुल की अगम्भीर एवं नासमझ राजनैतिक नेता और लल्लू-टाइपछवि बन गयी. इसके लिए कुछ हद तक खुद राहुल भी दोषी रहे. इधर कुछ समय से कांग्रेस और स्वयं राहुल गांधी की ओर से इस छवि को तोड़ने की पुरजोर कोशिश हुई. अमेरिका के विभिन्न शहरों में पिछले दिनों हुई उनकी सभाएं और टीवी-वार्ताएं, जिनकी काफी सराहना हुई, इसी अभियान का हिस्सा थीं. राहुल ने भी मोदी की तरह अपनी सोशल मीडिया टीम बनाई है, जो उनकी छवि सुधारने के अभियान में लगी है.

गुजरात में राहुल की हाल की सभाओं और नव सृजन यात्राओंमें जुटी भारी भीड़ और सोशल मीडिया में उसकी व्यापक चर्चा ने भी राहुल की छवि सुधारने का काम किया है. बहुत सी टिप्पणियों में कहा  रहा है कि लगता है राहुल का कायाकल्प हो रहा है. ट्विटर पर उनके फॉलोवर और रिट्वीट इसी दौरान बढ़े और बढ़ाये गये. जाहिर है भाजपा की नजर इस पर शुरू से रही होगी. अमित शाह ने अपनी एक सभा में युवकों से यूं ही अपील की नहीं की होगी कि वाट्स-ऐप की हर बात पर पूरा भरोसा मत करो, अपना दिमाग लगाओ. सोशल मीडिया को अपना बड़ा हथियार बनाने वाली पार्टी के अध्यक्ष की इस अपील ने उस समय चौंकाया था. अब लगता है कि ऐसा क्यों कहा गया था.

सोशल मीडिया ही नहीं, सार्वजनिक सभाओं तथा चुनाव प्रचार के तौर-तरीकों में भी लगता है कि राहुल ने भाजपा, विशेष रूप से मोदी को जैसे को तैसाकी तर्ज पर जवाब देने की रणनीति बना रखी है. जीएसटी के लिए गब्बर सिंह टैक्सजैसा जुमला गढ़ना ठीक मोदी के अंदाज में है. नये-नये नारे और जुमले गढ़ने में मोदी माहिर हैं जिन पर खूब तालियां बजती हैं और सोशल मीडिया पर भी वे ट्रेण्ड करते रहते हैं. जैसे, अभी हाल में अहमदाबाद आईआईटी के छात्रों से उन्होंने कहा कि मैं आईआईटीयन तो नहीं, लेकिन टीयन अवश्य हूं’. उन्होंने चायवालाके लिए टीयन शब्द गढ़ा.  तो, राहुल ने भी इधर उसी अंदाज में मोदी पर हमले शुरू किये हैं. दो दिन पहले ही उन्होंने कहा कि मोदी जी ने देश की अर्थव्यवस्था पर दो-दो टॉरपीडो चला दिये- नोटबंदी और जीएसटी.

राहुल ने द्वारिका और चोटिला के मंदिरों में दर्शन एवं पूजा-पाठ किये. आदिवासियों के नृत्य-गीतों में भी शामिल हुए. जातीय समूहों को कांग्रेस की तरफ खींचने के लिए वे खासी मेहनत कर रहे हैं. ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर को कांग्रेस में शामिल कराया. पाटीदार आंदोलन के प्रमुख नेता हार्दिक पटेल को साथ लाने के लिए सौदेबाजी काफी आगे बढ़ चुकी है. भाजपा को कमजोर करने का हर मौका वे गुजरात में भुना लेना चाहते हैं, जैसा भाजपा ने अन्य राज्यों में कांग्रेस के साथ किया.

गुजरात में भाजपा वैसे भी बचाव की मुद्रा में है. 2104 के बाद वह पहली बार किसी राज्य में वादाखिलाफी और सत्ताविरोधी रुझान का सामना कर रही है. राहुल की नयी रणनीति स्वाभाविक ही उसके लिए चिंता का कारण होगी. चिंता इस कारण ज्यादा होगी कि देश की आर्थिक स्थितियां और कुछ राज्य के जातीय हालात आज उसके विपरीत हैं. नोटबंदी के कारण और जीएसटी की दरों में तनिक राहत मिलने के बावजूद व्यापरियों का बड़ा तबका नाराज है. बेरोजगारी से युवा वर्ग परेशान है. पटेलों के व्यापक आंदोलन ने गुजरात में भाजपा सरकार को लम्बे समय से तंग कर रखा है. 1985 के बाद से पटेल भाजपा का बड़ा वोट बैंक रहे हैं लेकिन अब खिलाफ हैं. अमित शाह के बेटे की कम्पनी के रातों-रात फलने-फूलने की हाल की खबर भी भाजपा की छवि के विपरीत गई है. इन हालात में राहुल की तरफ खिंचती भीड़ और सोशल मीडिया में उनकी आक्रामक रणनीति भाजपा नेताओं के माथे पर बल डालने के लिए काफी है.

भाजपा की चिंता यह नहीं होगी कि वह गुजरात विधान सभा का चुनाव हार सकती है. राजनैतिक प्रेक्षक और स्वयं कांग्रेस भी, यह नहीं मानते कि भाजपा गुजरात में हार जाएगी. नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता कम होने के बावजूद चुनाव जीतने के लिए अभी पर्याप्त लगती है. फिर, राहुल के सोशल मीडिया में छा जाने मात्र से कांग्रेस चुनाव जीत जाएगी, यह मानना दिवास्वप्न ही होगा. मगर भाजपा यह कतई नहीं चाहेगी कि उसका वोट प्रतिशत और विधायकों की संख्या पहले से कम हो जाए. उधर कांग्रेस पूरा जोर लगा रही है कि भाजपा के किले में बड़ी से बड़ी सेंध लगे ताकि मोदी का तिलिस्म टूटे और कांग्रेस की वापसी का रास्ता खुले. भाजपा की सीटें जितनी कम होंगी,  2019 की लड़ाई उसके लिए उतनी कठिन होगी. गुजरात का यही प्रमुख चुनाव-संग्राम है.

नरेंद्र मोदी जिस तरह सघन चुनाव-प्रचार में जुटे हैं, गुजरात के लिए विकास योजनाओं की घोषणाओं की जैसी झड़ी उन्होंने और उनके मुख्यमंत्री ने लगाई है, वह इसी कारण है. कांग्रेस का चुनाव जीतना तो दूर, राहुल का सोशल मीडिया पर लोकप्रिय होना भी उन्हें मंजूर नहीं. निकट भविष्य में कभी भी कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी सम्भालने जा रहे राहुल के लिए यह कड़ा इम्तहान है.
चुनावी मैदान से पहले एक वर्चुअल संग्राम सोशल मीडिया पर लड़ा जाना है. हम उसी का मुजाहिरा कर रहे हैं.     

 (प्रभात खबर, 01 नवम्बर, 2017)

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