पुरी के जगन्नाथ मंदिर की व्यवस्था ठीक करने के बारे में
सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले ने हमारे बड़े और प्रसिद्ध मंदिरों के हालात, प्रबंधन और दर्शनार्थियों की दिक्कतों की ओर शासन-प्रशासन ही का नहीं पूरे
देश का ध्यान आकृष्ट किया है. शीर्ष अदालत ने उड़ीसा सरकार को निर्देश दिये हैं कि इस
मंदिर में भक्तों से दुर्व्यवहार, और सेवकों का उन्हें
परेशान करना बंद हो. अतिक्रमण एवं गंदगी दूर करने के साथ ही
मंदिर के प्रबंधन में पर्याप्त सुधार किये जाएं. यह भी कहा है कि दर्शनार्थी जो चढ़ावा
चढ़ाते हैं उसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए. भक्तों को बिना परेशानी के दर्शन करने का
अवसर दिया जाए. वहां सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं.
देश की सर्वोच्च अदालत के इस हस्तक्षेप से देश के कई अन्य
मंदिरों में व्याप्त अव्यवस्था और दर्शनार्थियों के उत्पीड़न की ओर ध्यान जाना
स्वाभाविक है. वैष्णो देवी जैसे कुछ प्रख्यात और बेहतर प्रबंधन वाले मंदिरों को
छोड़ दें तो हिंदुओं के ज्यादातर मठों-मंदिरों में धर्मावलम्बियों का शोषण-उत्पीड़न
होता है. पण्डे-पुजारियों से लेकर दर्शन कराने के नाम पर दलाल तक भक्तों से
जोर-जबर्दस्ती करते हैं, चढ़ावे के नाम पर उनसे लूट होती है, चढ़ावे का कोई हिसाब-किताब नहीं होता, मंदिरों का
रख-रखाव ठीक नहीं है, गंदगी और अतिक्रमण है, कई जगह पुजारियों के भेष में असामाजिक, नशेड़ी और
अपराधी भी छुपे होते हैं. बड़ी श्रद्धा-भक्ति के साथ दूर-दूर से आने वाले
दर्शनार्थियों को इससे न केवल घोर असुविधा होती है, बल्कि
उनकी आस्था पर भी चोट पहुंचती है.
मृणालिनी पाधी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर पुरी
के जगन्नाथ मंदिर में भक्तों की कई दिक्कतों, उनके साथ सेवकों के दुर्व्यवहार और चढ़ावे
के दुरुपयोग के साथ ही गंदगी और अतिक्रमण का मुद्दा उठाया था. जस्टिस आदर्श कुमार
गोयल और अशोक भूषण की अवकाशकालीन पीठ ने आठ जून को इस याचिका पर सुनवाई की. अदालत
ने केंद्र सरकार, उड़ीसा सरकार और मंदिर प्रबंधन को नोटिस
देकर कहा कि यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों और संविधान के दिशा-निर्देशक
सिद्धानतों का मामला है. हमारे ये मंदिर धार्मिक, सामाजिक,
ऐतिहासिक, पुरातात्विक और सांस्कृतिक महत्त्व
के हैं. लाखों यात्री पर्यटन और आस्था के लिए यहां आते हैं. वे बड़ी मात्रा में
चढ़ावा चढ़ाते हैं. उन्हें निर्विघ्न रूप से दर्शन करने का अवसर मिलना चाहिए,
चढ़ावे का सदुपयोग हो और सेवकों को मंदिर प्रबंधन उचित मेहनताना दे.
शीर्ष अदालत ने पुरी के जिला जज को निर्देशित किया है कि वे
30 जून तक अंतरिम रिपोर्ट दाखिल करें कि दर्शनार्थियों को क्या दिक्कतें होती हैं, चढ़ावे का क्या होता और प्रबंधन में क्या दिक्कतें हैं. कोर्ट ने पुरी के कलेकटर से लेकर उड़ीसा सरकार तक
को विस्तार से कई निर्देश दिये हैं.
सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्देश के दो दिन बाद ही जगन्नाथ
मंदिर का एक दिन का चढ़ावा दस लाख 47 हजार 501 रुपये हो गया. पिछले कई सालों में यह
एक दिन का सबसे ज्यादा चढ़ावा है. इससे पहले आम दिनों में दो लाख और पर्वों पर चार
लाख तक ही दैनिक चढ़ावा आता था. बाकी रकम सेवक और पण्डे-पुजारी दर्शनार्थियों से
झटक लेते थे और वह उनकी जेब में चला जाता था. सुप्रीम कोर्ट के चाबुक के बाद एक
दिन का चढ़ावा साढ़े दस लाख होने से समझा जा सकता है कि कितनी बड़ी रकम सेवक या
पुजारी सीधे हड़प जाते थे.
नयी व्यवस्था लागू होने से मंदिर के सेवक आंदोलित हैं. उनका
कहना है कि उनके पेट पर चोट हुई है. बड़ी मात्रा में उनकी कमाई बंद हो काने से उनका
नाराज होना स्वाभाविक है. सुप्रीम कोर्ट ने सेवकों को मंदिर प्रबंधन की ओर से
उन्हें निश्चित पारिश्रमिक दिये जाने का निर्देश दिया है.आशा की जानी चाहिए कि आने
वाले दिनों में सेवकों को पर्याप्त मेहनतान मिलने लगेगा, मंदिर की आय बढ़ेगी, व्यवस्था सुधरेगी और
दर्शनार्थियों को भगवान जगन्नाथ के दर्शन आसानी से हो सकेंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने जगन्नाथ मंदिर मामले में उड़ीसा सरकार को
निर्देश दिया है कि वह देश के कुछ महत्त्वपूर्ण मंदिरों की व्यवस्था का अध्ययन
करे. उदाहरण के लिए अदालत ने वैष्णो देवी मंदिर, सोमनाथ मंदिर और स्वर्ण मंदिर के नाम सुझाये हैं. इन मंदिरों की
बहुत अच्छी व्यवस्था और दर्शनार्थियों की सुविधाओं की चर्चा होती रहती है. यहां
जाने वाले दर्शक प्रसन्न होकर लौटते है. कोर्ट ने कहा है कि इन मंदिरों के प्रबंधन
से सीख लेकर जगन्नाथ मंदिर के प्रबंधन को सुधारा जाए.
सुप्रीम कोर्ट के सुझाये चंद मंदिरों के अलावा भी कुछ देश
में कुछ मंदिर अच्छी व्यवस्था के लिए जाने जाते हैं. शिरडी का सांई मंदिर अपनी सहज, सस्ती, साफ-सुंदर व्यवस्था के लिए जान जाता है. वहं
न केवल दर्शनार्थियों को आराम से दर्शन हो जाते हैं बल्कि भक्तों को बहुत सस्ते
में रहने की अच्छी व्यवस्था और सुस्वादु भोजन भी उपलब्ध होता है.
इस सन्दर्भ में मैं पटना के हनुमान मंदिर का विशेष रूप से
उल्लेख करना चाहूंगा. पटना रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते ही आज हम जिस भव्य, साफ-सुथरे, व्यवस्थित हनुमान मंदिर के दर्शन करते
हैं, कोई देढ़ दशक पहले तक वह घोर अव्यवस्था, अराजकता और गंदगी के कारण कुख्यात था. चढ़ावे की रकम का कोई हिसाब-किताब न
था. बिहार के अपराधियों पर नकेल कसने के लिए चर्चित आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल ने
जब पुलिस सेवा छोड़ कर धर्म-अध्यात्म का रास्ता पकड़ा तो सबसे पहले इस मंदिर के कायाकल्प का बीड़ा उठाया.
अब आचार्य कहे जाने वाले किशोर कुणाल ने शीघ्र ही मंदिर की
व्यवस्था इतनी सुधार दी कि साफ-सफाई के अलावा वहां ‘बनने वाला प्रसादम’
भी प्रसिद्ध हो गया. भक्तों की भीड़ बढ़ी और मंदिर की कमाई भी कई गुना
बढ़ गयी. मंदिर के चढ़ावे से पटना में एक कैंसर अस्पताल का संचालन होने लगा. आज यह
बड़ा अस्पताल है जो बिहार जैसे गरीब राज्य में मरीजों को बहुत कम कीमत पर बेहतर
इलाज उपलब्ध कराता है. कई मामलों में नि:शुल्क भी. हनुमान मंदिर के चढ़ावे से और भी
जन-सेवा के काम होते हैं. किसी मंदिर की कमाई से कितना अच्छा सेवा-कार्य हो सकता
है, पटना का हनुमान मंदिर इसका सर्वोत्तम उदाहरण है.
वहीं दूसरी तरफ बिहार के गया में स्थित विष्णुपाद मंदिर में
गंदगी, अतिक्रमण और दर्शनार्थियों के साथ दुर्व्यवहार की शिकायतें
आती रहती हैं. गया हिंदुओं के लिए महत्त्वपूर्ण तीर्थ है. वहां लाखों की संख्या
में यात्री जाते हैं. इन पंक्तियों के लेखक
को एक बार एक बड़ी कम्पनी के सर्वोच्च अधिकारी के साथ इस मंदिर जाने का मौका मिला. मंदिर
के पण्डे-पुजारियों और अन्य कर्मचारियों को उनके आने की पूर्व सूचना थी. जैसे ही
हम मंदिर प्रागण में पहुंचे हमें घेर लिया गया. सभी उस बड़े ‘आसामी’
से अधिकाधिक दक्षिणा लेने के लिए धक्का-मुक्की करने लगे. बड़ी मुश्किल
से उन्होंने पूजा निपटाई और वहां से निकल कर राहर की सांस ली. मंदिर के चारों ओर
और नदी तट तक इतनी गन्दगी थी कि हमें नाक पर रुमाल रखना पड़ा. पैरों के नीचे कीचड़
बजबजा रहा था. वहां जाकर मन में किसी तरह की श्रद्धा नहीं हुई. यह कोई एक दशक पहले
की बात है. आजकल पता नहीं क्या हाल है.
गया की तुलना में पड़ोस ही में स्थित बोध गया के बोधि वृक्ष
और बुद्ध मंदिर में जाकर अद्भुत शांति और सुखद अनुभूति मिलती है. वहां इतनी सफाई
और शांति है कि उस प्रांगण में बैठ कर ध्यान लगाने का मन हो आता है. यही हाल पड़ोसी
जिले नालंदा के पावापुरी का है जहां भगवान महावीर को मोक्ष प्राप्त हुआ था. अत्यंत
शांत, स्वच्छ और व्यवस्थित. गुरुद्वारे भी अपनी व्यवस्था से बड़ी
श्रद्धा जगाते हैं. अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का तोकहना ही क्या. वैसी सुंदर
व्यवस्था हिंदू मंदिरों में क्यों नहीं हो सकती?
कुछ वर्ष पहले एक विदेशी मित्र के साथ मिर्जापुर के विन्ध्यवासिनी
देवी के मन्दिर जाने का अवसर मिला. हमारी गाड़ी वहां पहुंची ही थी कि हमें चारों
तरफ से घेर लिया गया. कुछ लोग हाथ पकड़ कर खींचने लगे. विदेशी मित्र को खींच कर एक
तरफ ले गये. उसे उनसे छुड़ाना मुश्किल हो गया. हम अंतत: मंदिर में नहीं जाए बिन ही
लौट आये. विंध्यकासिनी मंदिर की बड़ी प्रतिष्ठा है. वहां हजारों दर्शनार्थी जाते
हैं. ऐसे व्यवहार से उनकी आस्था को कितनी ठेस पहुंचती होगी. कोई दो वर्ष पहले
उत्तर प्रदेश सरकार ने विंध्यवासिनी मंदिर की व्यवस्था ठीक करने की कोशिश की थी तो
पण्डा समुदाय रुष्ट होकर आंदोलन करने पर उतारू हो गया था.
जगन्नाथ मंदिर हो या विंध्यवासिनी, पण्डों-पुजारियों-सेवादारों की रोजी-रोटी उससे जुड़ी है, इसमें कोई संदेह नहीं. धर्मावलम्बियों के लिए जो आस्था है, वह इनके लिए रोजगार है. किंतु इसके भी नियम होने चाहिए. निश्चित व्यवस्था
होनी चाहिए. श्रद्धालुओं को वीआईपी दर्शन के नाम पर तंग करने, अनुचित मांग करने, चढ़ावा जेब में रख लेने और मंदिर
की अन्य सुविधाओं की घोर उपेक्षा के नाम पर इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती. सभी
मंदिरों को व्यवस्थित तरीके से चलाया जाना चाहिए ताकि दर्शन में सुविधा हो और
चढ़ावे का सदुपयोग हो. सुप्रीम कोर्ट ने ठीक ही कहा है कि जगन्नाथ मंदिर की
व्यवस्था वैष्णोदेवी मंदिर की तरह चलायी जाए. वास्तव में यह आदेश देश के सभी
मंदिरों पर लागू किया जाना चाहिए.
(सुपर आयडिया, जुलाई, 2018)
No comments:
Post a Comment