पटाखे भी
हिंदू धर्म में शामिल हो गये हैं! जो लोग बहुत जहरीली हो गयी हवा को घातक होने से
बचाने के लिए पटाखे नहीं फोड़ने की अपील करते रहे, उन्हें
हिन्दू विरोधी घोषित किया जा रहा है. यहां तक कि, देश
के सर्वोच्च न्यायालय को भी हिंदू धर्म के मामलों में हस्तक्षेप करने वाला बताया
जा रहा है. शीर्ष अदालत ने रात आठ से दस बजे तक ही कम नुकसान वाले पटाखे चलाने का
निर्देश दिया था. इस निर्देश की खुली अवहेलना की गयी. खूब पटाखे चले, शोर
तो जो हुआ, सो हुआ, हवा के
जहरीले तत्व बहुत खतरनाक सीमा से ऊपर पहुंच गये.
सोशल मीडिया
में बड़े पैमाने पर इस प्रवृत्ति पर चिंता जताई जा रही है. खतरनाक वायु प्रदूषण के
बावजूद खूब पटाखे फोड़ने और सुप्रीम कोर्ट के आदेश की खुली अवहेलना करने पर सजग
समाज की चिंता स्वाभाविक है. एक बड़ा वर्ग है जो इस चिंता का मखौल उड़ा रहा है.
पटाखों पर नियंत्रण का निर्देश उसे हिंदू धर्म के विरुद्ध लग रहा है. ऐसे सोच पर
हँसी आती है. उससे अधिक क्षोभ होता है. दिमागों में घृणा भर-भर कर ये
कैसा वर्ग तैयार किया गया है? ये वही सोच
पा रहे हैं जिसका ‘प्रोग्राम’ इनके मस्तिष्क
में ‘फीड’ कर दिया गया है.
इन्हें समाज और स्वयं अपने भविष्य की चिन्ता नहीं है.
विकास के
वर्तमान ढांचे में हमने बहुत सारी गलतियां कर डाली हैं. अनेक अतियां हो गयी हैं.
इस कारण कई प्राणि-प्रजातियां विलुप्त हो गईं. मानव जाति का अस्तित्व भी खतरे में
पड़ता जा रहा है. देर हो चुकी है, तो भी अब अतियों
पर रोक के कुछ उपाय करने ही होंगे. पटाखों पर नियंत्रण ऐसे ही उपायों का हिस्सा है
ताकि हर सांस के साथ जो हवा हम अपने फेफड़ों में भर रहे हैं वह जीवनदायिनी की बजाय प्राणहारिणी न हो जाए. नदियों को और प्रदूषित होने से बचाने के लिए
पर्वों-उत्सवों पर मूर्तियों, पूजा-सामग्री, आदि
का विसर्जन बंद करना होगा. उसमें इसमें धर्म-विरुद्ध क्या है? और, पटाखे
कब से हिंदू धर्म या रीति-रिवाज का हिस्सा हो गये? जब
पटाखे नहीं थे तब क्या हिंदू नहीं थे? वास्तव में
हिंदू- धर्म को सबसे बड़ा खतरा ऐसे ही संकीर्ण, ‘प्रोग्राम्ड’ दिमागों से है.
नाला बन गयी
नदियों में हर पर्व पर डुबकी लगाने वाला समाज उनकी दुर्गति पर आंदोलित नहीं होता.
गंगा यदि सबसे पवित्र नदी है तो आस्था का सवाल कह कर भी कोई नहीं पूछता कि उसकी
अविरलता क्यों बाधित की गयी है? क्यों उसे
जगह-जगह सुरंगों में डाल कर बांधा जा रहा है? शहरों
के सीवर क्यों उसमें गिराये जा रहे हैं? आंख बंद
करके कीचड़ में डुबकी लगा कर कुम्भ-स्नान का पुण्य बटोरा जा रहा है. उसी गंगा की
अविरलता सुनिश्चित करने के लिए अनशन करते प्रसिद्ध विज्ञानी से संत बने स्वामी सानंद
ने अपनी जान दे दी. तब किसी हिंदू धर्म-रक्षक को दु:ख नहीं हुआ. कोई आंदोलन खड़ा
नहीं हुआ. प्रदूषणकारी पटाखों पर तनिक नियंत्रण के प्रयास धर्म-विरोधी हो गये.
सबरीमाला
मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने वाले सुर्पीम कोर्ट के
आदेश की धज्जियां उड़ाई गईं. धर्म और परम्परा के नाम पर एक अन्याय का समर्थन करने
वालों में सत्तारूढ़ दल सबसे आगे रहा. सर्वोच्च अदालत की ऐसी तौहीन देश, संविधान
और लोकतंत्र पर कितना बड़ा हमला है, इस पर कौन
चिंतित है? संवैधानिक संस्थाओं से सरकार ही छेड़छाड़ नहीं कर रही, जनता
को भी उनके खिलाफ भड़का रही है. निश्चय ही यह बहुत खतरनाक और चुनौतीपूर्ण समय है. यह
हमारी परीक्षा का भी समय है.
(सिटी तमाशा, 10 नवम्बर, 2018)
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