उत्तर प्रदेश के इस चुनाव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी निजी
प्रतिष्ठा बना लिया है. जिस तरह वे प्रचार कर रहे हैं वैसा किसी विधान सभा चुनाव में पहले के प्रधानमंत्रियों ने नहीं किया. आम तौर
पर प्रधानमंत्री किसी राज्य में गिनी-चुनी सभाएं करते थे. उनके भाषण देश और प्रदेश
के विकास के साथ व्यापक राष्ट्रीय मुद्दों पर केंद्रित रहते थे. प्रदेश के
मुख्यमंत्री और अन्य प्रादेशिक विपक्षी नेताओं का नाम लेना या संकेतों में आरोप
लगाना, विपक्षियों के आरोपों का अपनी
सभाओं में जवाब देना, उनके जुमलों पर
जवाबी जुमले कसना, वगैरह से
प्रधानमंत्री बचते थे. इसे उस पद की गरिमा के अनुकूल नहीं माना जाता था. राहुल
गांधी की अजीबोगरीब बातों का जवाब तो मोदी जी लोक सभा तक में देते रहे हैं, लेकिन इन दिनों वे अखिलेश और मायावती पर सीधे आरोप ही नहीं
लगा रहे, उनके जुमलों का
बढ़-चढ़ कर जवाब भी दे रहे हैं.
मसलन, अखिलेश ने गुजरात के
गधों वाली बात कह कर बिल्कुल गलत किया लेकिन
मोदी जी को दूसरे ही दिन उसका जवाब देने की जरूरत थी क्या? उन्होंने खूब चटखारे लेकर अखिलेश पर खूब तंज कसे. अपनी
एकाधिक सभाओं में इस पर चुटकी ली. अखिलेश ने बाद में कहा भी कि मैं इस पर और बात
करना नहीं चाहता लेकिन मोदी जी तंज करते रहे. चंद रोज पहले पूर्वांचल की एक सभा
में मोदी जी ने टिप्पणी की कि ‘बुआ गईं, बुआ का भतीजा गया और भतीजे का यार भी गया.’ वास्तव में वे अखिलेश, राहुल
और मायावती की इस बात का जवाब दे रहे थे कि मतदान के चार चरणों के बाद मोदी जी की
आवाज दब गई है, वे घबरा गए हैं.
पूर्व प्रधानमंत्रियों ने शायद ही कभी ऐसी बातों का जवाब दिया हो.
प्रधानमंत्री के रूप में मोदी जी के मुंह से ऐसी बहुत सी बातें सुनते हुए अटपटा
लगता है. लगता नहीं कि हमारा प्रधानमंत्री बोल रहा है, भले ही वह चुनाव सभा हो. 2014 के लोक सभा चुनाव में मोदी
प्रधान मंत्री पद का भाजपाई उम्मीदवार होने के बावजूद गुजरात के यानी प्रदेश स्तर
के नेता थे. तब उनके भाषणों को उसी नजर दे देखा जाता था. आज वे बतौर प्रधानमंत्री
चुनाव सभाओं को सम्बोधित कर रहे हैं और यह एक राज्य विधान सभा का चुनाव है. भाषणों
और आरोप-प्रत्यारोपों में मायावती और अखिलेश से बराबरी करना या होड़ लेना उनके लिए गरिमामय
नहीं लगता. कब्रिस्तान और श्मशान पर उनका बयान हैरान करने वाला था. ध्रुवीकरण ही
कराना था तो अमित शाह और दूसरे भाजपाई कम हैं क्या!
हमारे एक मित्र कहते हैं कि मोदी जी ने अखिलेश को राष्ट्रीय स्तर का नेता बना
दिया है. उनके भाषण देश भर में पढ़े-सुने जाते हैं. सुदूर केरल और उत्तर-पूर्व तक
की जनता पूछने लगी है कि क्या अखिलेश अगली बार प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं? पहले शायद ही वहां कोई अखिलेश को जानता हो.
यूपी को निजी प्रतिष्ठा बना लेने का
एक खतरा यह है कि यदि भाजपा बहुमत नहीं पाती तो यह मोदी जी की निजी हार मानी जाएगी. सबसे बड़ी पार्टी बनने से भी प्रतिष्ठा
बचने वाली नहीं. एक और निष्कर्ष यह कि वे भाजपा में अपने अलावा किसी नेता या
नेताओं को सक्षम नहीं मानते.
-नवीन जोशी, 3 मार्च. 2017
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