उत्तर प्रदेश में डेढ़ दशक के बाद बन रही भारतीय जनता पार्टी की सरकार के लिए
सबसे बड़ी चुनौती राज्य की जनता को उस बदलाव का असल अहसास कराना है जिसका जिक्र
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरे नेता अपने आक्रामक चुनाव अभियान में मुख्य
मुद्दा बनाए हुए थे. ‘यू पी को बदलना है’, ‘भेदभाव मिटाना है’, भ्रष्टाचार
खत्म करना है’, ‘बहनों-बेटियों को
सुरक्षा का माहौल देना है’,
‘ग़ुंडा
राज खत्म करना है’ जैसे वादे चुनाव
प्रचार में बड़े जोर-शोर से किए गए. संवाद शैली वाले भाषणों में मोदी जी फिर सभा से
पूछते थे- ‘बोलो, करना है कि नहीं करना है?’ भीड़
समवेत स्वर में जवाब देती थी- ‘करना है’.
तो, अब यह सब करके दिखना
ही बड़ी जिम्मेदारी है और प्रदेश के माहौल को देखते हुए बड़ी चुनौती भी. साफ-सुथरी
छवि की सरकार का चयन इसकी पहली सीढ़ी होनी चाहिए. सपा-बसपा की पूर्व सरकारों के
अपराधी चेहरों पर भाजपा ने खूब अंगुली उठाई है. मुलायम के चहेते मंत्री गायत्री
प्रजापति के किस्से चुनाव में खूब उछाले गए. जिस तरह जातीय समीकरणों के आधार पर
जिताऊ उम्मीदवारों का चयन किया गया, उसे देखते हुए सरकार
गठन में अच्छी छवि के मंत्री चुनना और जातीय संतुलन बनाना कठिन काम होगा. पिछले
पंद्रह साल में भ्रष्टाचार के सभी मामलों की जांच कराना कम टेढ़ी खीर नहीं होगा.
अखिलेश सरकार में कानून व्यवस्था सबसे ज्यादा छाया रहा. पुलिस में एक जाति
विशेष के लोगों की प्रमुख तैनाती और राजनैतिक हस्तक्षेप बढ़ते अपराधों और अपराधियों
को कानून के हवाले करने में बड़ी बाधा थे. पुलिस को इस व्याधि से मुक्त करना आसान
काम नहीं है. क्या भाजपा सरकार सख्त पुलिस अफसरों को आगे कर उन्हें आजादी से काम
करने की छूट दे पाएगी, यह बड़ा सवाल है.
कुछेक मामलों को छोड़कर मायावती के शासन में पुलिस पर दवाब लगभग नहीं होते थे.
बेहतर कानून व्यवस्था के लिए यह अनिवार्य शर्त है. सभी भगोड़े अपराध्यों को 45 दिन
के अंदर जेल भिजवाने का उसका वादा भी कम चुनौती पूर्ण नहीं. यही बात भूमाफिया से
अवैध कब्जे वाली जमीनों को मुक्त कराने के वादे के लिए भी कही जा सकती है.
आर्थिक मोर्चे पर बड़ी चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं. किसानों का फसली ऋण माफ
करना और लघु एवं सीमांत किसानों को व्याज मुक्त फसली ऋण देना भाजपा का प्रमुख वादा
रहा. इस पर वह तुरंत अमल करना चाहेगी. अखिलेश सरकार ने एक्सप्रेस-वे, मेट्रो, आई टी सिटी जैसी कई
बड़ी परियोजनाओं के लिए बहुत बड़ा बजट तय किया है. लुभावने चुनावी कार्यक्रमों के
कारण खजाने पर पहले ही भारी दवाब हैं. ऋण माफी और आर्थिक दवाब बढ़ाएगी. बड़े बजट
वाली पूर्व सरकार की महत्वाकांक्षी एवं लोकप्रिय परियोजनाओं का बजट रोकना नई सरकार
की बदनामी का कारण क्षीबनेगा, जो वह नहीं चाहेगी.
विद्यार्थियों को मुफ्त लैपटॉप देने जैसे लुभावने वादे खजाने पर और भी अनुत्पादक
बोझ बढ़ाएंगे. राज्य के पास ज्यादा संसाधन हैं नहीं. जनता पर नए टैक्स वह लादना
नहीं चाहेगी. प्रदेश में बिजली सप्लाई बढ़ाने के लिए जरूरी निवेश भी उसे जुटाना है.
उत्तर प्रदेश में अल्प्संख्यक कल्याण, हज
और वक्फ मामलों का बड़ा विभाग है. कई धड़ों में बंटी बड़ी मुस्लिम आबादी के परस्पर विरोधी
हित इससे जुड़े हैं. भाजपा के पास एक भी मुसलमान विधायक नहीं. किसी को टिकट ही नहीं
दिया था. इन मामलों को सूझ-बूझ से निपटाना और असंतोष पैदा न होने देना इस सरकार के
लिए मुश्किल भरा काम होगा. सपा-बसपा सरकारों में तुष्टीकरण के आरोप लगाने वाली
भाजपा के लिए ‘सबका साथ, सबका विकास’ जाहिर है कि आसान
नहीं होने वाला. यांत्रिक बूचड़खानों को
बंद करने की उसकी घोषणा पर अमल भी आक्रोश पैदा करने वाला होगा.
महिला सुरक्षा महत्वपूर्ण मुद्दा है लेकिन इसके नाम पर हर कॉलेज के आसपास गठित
होने वाले ‘एण्टी रोमियो दलों’ के ‘मॉरल पुलिसिंग’ जैसा साबित हो जाने
के खतरे हैं, जिससे अप्रिय विवाद
जन्म लेंगे. भाजपा सरकार को विहिप, बजरंग दल, गोसेवक समितियों जैसे अपने सहयोगी संगठनों के अति उत्साही
कार्यकर्ताओं को नियंत्रण में रखना होगा. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आचार-विचार
की आजादी जैसे विवाद उठे तो महौल खराब होगा.
भाजपा को प्रचण्ड बहुमत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि से मिला है. प्रदेश
सरकार को अपने काम और आचरण से उनकी छवि को कम से कम 2019 तक बनाए रखना भी एक
चुनौती होगा.
(आदित्य नाथ योगी के मुख्यमंत्री चुने जाने से पहले लिखी गई टिप्पणी)
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