अपने कार्यकर्ताओं में अतिशय जोश भर कर
चुनाव लड़ने वाली पार्टियों को सत्ता में आने के बाद सबसे अधिक हानि वे ही
कार्यकर्ता पहुंचाते हैं. 2012 में प्रदेश की सत्ता में आने पर समाजवादी पार्टी के
छुटभैये नेता-कार्यकर्ता दबंगई पर उतर आए थे. उन्होंने न केवल पुलिस और प्रशासनिक
अधिकारियों के कॉलर पकड़े बल्कि राजमार्गों की चुंगी चौकियों के कर्मचारियों के साथ
मार-पीट की. सता के मद में वे भूले रहे कि नियम-कानून और सामान्य शिष्टाचार का
पालन उन्हें भी करना ही चाहिए. तत्कालीन मुख्यमंत्री और सपा के बड़े नेताओं ने इस
गुण्डई पर रोक लगाने की कोई कोशिश नहीं की.
अब प्रचण्ड बहुमत से प्रदेश की सत्ता
में आते ही भाजपा और उसके सहयोगी संगठनों के अतिउत्साही कार्यकर्ता दबंगई पर उतारू
हो गए हैं. अपने को गोरक्षा समिति का सदस्य बताने वालों ने लखनऊ में नगर निगम की उस गाड़ी को रोक लिया जो आवारा घूमने
वाले गाय व सांड़ों को पकड़ कर गोशाला ले जा रही थी. उन गोरक्षकों ने ड्राइवर और
कर्मचारियों की एक नहीं सुनी, बल्कि गोकशी का आरोप लगाते हुए उनकी पिटाई की. उन्होंने भाग
कर अपनी जान बचाई. उसी दिन गोकशी के आरोप से सम्भल में बड़ा बवाल होने की खबर आई.
ये अच्छे लक्षण नहीं हैं. प्रदेश की नई सरकार को ऐसे बेलगाम कार्यकर्ताओं पर
तत्काल अंकुश लगाना चाहिए.
एण्टी-रोमियो अभियान इसका एक और ज्वलंत
उदाहरण है. पार्टी कार्यकर्ता ही नहीं, पुलिस वाले भी जोश में आ गए. भाई-बहन, पति-पत्नी तक थाने पहुंचा दिए गए. महिला कॉलेजों की छुट्टी
के समय बाइक सवार दल वहां ‘जय श्री राम’ के नारे लगाते हुए ‘रक्षक’ बन कर चक्कर काटने लगे. गनीमत कि खुद मुख्यमंत्री ने पुलिस
को नसीहत दी कि युवा जोड़ों को बेवजह न सताया जाए. मामला कुछ शांत हुआ है लेकिन
पूरी तरह नहीं.
यह समझा जाना जरूरी है कि ऐसे निरंकुश
कार्यकर्ताओं या संवेदनहीन अभियानों से न तो गोरक्षा होगी और न ही महिलाओं के साथ
छेड़खानी रुकेगी. पहले बेहतर समझ और चौकस किंतु संवेदनशील तंत्र बनाए जाने की जरूरत
है. स्वयंभू ‘सिपाही’ कानून अपने हाथ में लेने लगे तो अराजकता फैलेगी, विभिन्न तबके आशंकित रहेंगे और सरकार की प्रतिष्ठा गिरेगी.
याद कीजिए कि केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद देश भर में गोरक्षा के नाम पर
कितने अप्रिय विवाद और हिंसा की घटनाएं हुई थीं. इस बारे में प्रधानमंत्री के मौन
ने व्यापक प्रतिरोध को जन्म दिया था. लम्बे समय बाद मोदी जी ऐसे गोरक्षकों को ‘फर्जी’ और धंधेबाज बताने को मजबूर हुए थे. तब कुछ अंकुश लग पाया.
प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह शुरू से ऐसे ‘सेनानियों’ से सतर्क रहे एवं संवेदनशीलता का परिचय दे.
हमारा संविधान हर नागरिक को धर्म, पंथ, विचार, खान-पान, पहनावे, आदि की स्वतंत्रता देता है. किसी भी राजनैतिक विचार वाली
पार्टी की सरकार हो, वह संविधान की
मूल भावना से संचालित होनी चाहिए. इसी कारण सरकार के मुखिया और मंत्रीगण संविधान
में सच्ची निष्ठा रखने की शपथ लेते हैं. यह बात पार्टी कार्यकर्ताओं को भी अच्छी
तरह समझानी चाहिए कि सरकार किन मूल्यों से बंधी है, कि उनके विपरीत आचरण से सरकार बदनाम होगी. (नभाटा, 01 अप्रैल, 2017)
2 comments:
बहुत अच्छा और सही लेख है यह। हमारी सरकार के नाम पर जो लोग क़ानून अपने हाथ में ले रहे हैं, उन पर तो कार्यवाही अवश्य होनी चाहिए। ऐसे तत्व भी सरकारों के कार्यों में बाधक बन जाते हैं। आज भी ऐसा हो रहा है और अगर इसका तुरंत निदान नही हुआ तो यह भी कैंसर ही बनेगा।
बहुत अच्छा और सही लेख है यह। हमारी सरकार के नाम पर जो लोग क़ानून अपने हाथ में ले रहे हैं, उन पर तो कार्यवाही अवश्य होनी चाहिए। ऐसे तत्व भी सरकारों के कार्यों में बाधक बन जाते हैं। आज भी ऐसा हो रहा है और अगर इसका तुरंत निदान नही हुआ तो यह भी कैंसर ही बनेगा।
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