एक पुलिस अधिकारी के निकट सम्बन्धी नहीं पीटे गये होते तो
पत्रकारपुरम चौराहे पर मनीष ईटिंग प्वॉइण्ट के खिलाफ इस बार भी कार्रवाई नहीं
होती. पुलिस हरकत में आई और फिलहाल दुकान में ताला लग गया है. अवैध रूप से संचालित
मनीष ईटिंग प्वॉइण्ट समेत कुछ मांसाहार परोसने वाली दुकानों और मॉडल शॉप के कारण चौराहा
तो जाम रहता ही है, रात बारह-एक बजे हंगामा तथा गुण्डागर्दी से
राहगीर एवं आस-पास के निवासी परेशान रहते हैं. इसकी लिखित शिकायत एकाधिक बार आवास
आयुक्त, लविप्रा उपाध्यक्ष, जिलाधिकारी,
पुलिस क्षेत्राधिकारी और गोमतीनगर थाने में की जा चुकी है. शिकायत
लेकर अधिकारियों से मिलने वालों में कई वरिष्ठ पत्रकार भी शामिल रहे हैं. पूर्व
जिलाधिकारी राजशेखर ने इसके समाधान के लिए पत्र लिख कर सबद्ध विभागों की बैठक भी
पिछले साल बुलायी थी. फिर भी कोई समाधान नहीं निकला. अवैध काम करने वालों के पास
धन की ताकत और मजबूत गठजोड़ होते हैं.
ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं. राजधानी लखनऊ में तो बेहिसाब. जो
जितना बड़ा शहर, वह उतना घिनौना नरक बन रहा है. नरक बनाने
या बन जाने देने वाले वही हैं जिन पर इसे रहने लायक और सुंदर बनाने का जिम्मा है. अवैध
धंधे इसलिए फल-फूल रहे हैं कि नियम-कानूनों का पालन करने वाले ही उसे तोड़ने दे रहे
हैं. वेतन वे नियमों की चौकसी करने का लेते हैं लेकिन उनका उल्लंघन करने देकर
करोड़ों कमाते हैं. भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की बातें करने वाले भली-भांति जानते
हैं, देखते रहते हैं.
नई कॉलोनियों का नियोजन खूबसूरत होता है. बाद में उसका क्या
हाल कर दिया जाता है, इसका बेहतरीन उदाहरण है गोमती नगर. कभी
खूबसूरत, खुले और हरे-भरे लगने वाले विवेक खण्ड, विनय खण्ड, विराम खण्ड, विकास
खण्ड, आदि इलाके रिहायशी मकानों में बने वाणिज्यिक
प्रतिष्ठानों से भरे पड़े हैं. पत्रकारपुरम तो अमीनाबाद जैसा
बन गया है, जहां पैदल चलना भी मुश्किल है. यही हाल ज्यादातर
कॉलोनियों का है, इंदिरा नगर हो या विकास नगर या राजाजीपुरम.
किसी भी पार्टी की सरकार इसे नहीं रोक सकी. नगर निगम, लविप्रा, आवास-विभाग और सम्बद्ध थाने इसके लिए पूरी
तरह जिम्मेदार हैं. आज योगी सरकार सख्ती कर रही है तो वही अफसर कड़क दिखने का नाटक
कर रहे हैं जो इसके लिए दोषी हैं. अखिलेश सरकार में रामपाल यादव की अवैध इमारत
इसलिए गिरा दी गयी थी कि मुखिया की भृकुटि टेढ़ी हो गयी थी. जिन्होंने उसे गिराया
पहले वही उसे बनवा रहे थे. अब योगी सरकार में लविप्रा के अधिकारी. अभियंता वही काम
कर रहे हैं. बीते बुधवार को 86 करोड़ रु कीमत वाली सरकारी जमीन को दबंगों के कब्जों
से मुक्त करवाया गया. उस पर कब्जा किसने होने दिया था? इन्ही
लोगों ने.!
जब तकअफसरों की पूरी जवाबदेही नहीं होगी, उन्हें सजा नहीं दी जाएगी, उनसे वसूली नहीं होगी और
सिर पर डण्डा हर समय तना नहीं रहेगा, तब तक यह थमने वाला
नहीं. मनीष ईटिंग प्वॉइण्ट का ताला भी खुल ही जाएगा. वैसे भी वहां दूसरी अवैध
दुकानें नाले-नालियों व पार्कों में कचरा फेंकने, सड़क जाम
करने और गुण्डागर्दी में मशगूल हैं ही. हर बार तो पुलिस के करीबी पिटने वाले नहीं. (नभाटा, 22 अप्रैल, 2017)
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