Monday, April 17, 2017

कांशीराम ने अपना घर छोड़ा था, मायावती ने उनके मूल्य छोड़ दिये

                                                        
अपने भाई आनंद कुमार को बहुजन समाज पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पार्टी में अपने बाद नम्बर दो की हैसियत देने के लिए मायावती की काफी आलोचना हो रही है. विरोधी दल ही नहीं, दलित आंदोलन से जुड़े कई पुराने नेताओं ने भी इस कदम के लिए उनकी आलोचना की है.
बसपा मुखिया मायावती ने शुक्रवार को अम्बेडकर जयंती पर लखनऊ में आयोजित रैली में यह घोषणा की. उन्होंने यह शर्त जरूर रखी है कि आनंद कुमार कभी विधायक, सांसद, मंत्री या मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे. हाँ, वे अपना रियल एस्टेट बिजनेस चलाने और घर वालों को राजनीति में लाने के लिए स्वतंत्र होंगे.
विपक्षी नेता इस कारण आलोचना कर रहे हैं  कि अब तक मायावती खुद दूसरे दलों पर परिवारवाद को बढ़ाने का आरोप लगाती रही हैं.
कांशीराम के पुराने साथियों और कई दलित नेताओं ने इसलिए उनकी निंदा की है कि कांशीराम ने दलित आंदोलन के प्रति पूर्ण समर्पण के लिए अपने परिवार से सारे सम्पर्क तोड़ लिये थे. कांशीराम ने मायावती को अपना राजनैतिक वारिस बनाया था और उनसे अपने काम को आगे ले जाने की उम्मीद की थी.  
इस प्रसंग में यह जानना समीचीन होगा कि दलित आंदोलन को व्यापक रूप देने और बामसेफएवं डीएस-4’ जैसे संगठनों के जरिए बहुजन समाज पार्टी को खड़ा करने वाले कांशीराम का अपने परिवार और सम्पति के बारे में क्या सोचना था और उन्होंने किया क्या था.
सन 1978 में बामसेफ’ (बैकवर्ड एण्ड माइनॉरिटीज कम्युनिटीज एम्प्लॉई फेडरेशन) को संगठन का औपचारिक रूप देने के बाद कांशीराम ने पुणे में अपनी नौकरी छोड़ दी थी और पूरी तरह दलित आंदोलन के लिए समर्पित हो गये. तभी उन्होंने तय कर लिया था कि अब अपने परिवार से भी कोई ताल्लुक नहीं रखेंगे. उन्होंने कई प्रतिज्ञाएं कीं और अपने घर वालों को बताने के लिए लम्बी चिट्ठी लिखी थी.
दलित मामलों के अध्ययेता प्रोफेसर बदरीनारायण ने अपने पुस्तक कांशीराम: लीडर ऑफ दलित्समें एक उद्धरण दिया है जिसमें कांशीराम की बहन सबरन कौर के हवाले से बताया गया है कि कांशीराम ने कभी घर न लौटने, खुद का मकान न बनाने और दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों के घरों को ही अपना घर मानने की शपथ ली थी. उन्होंने अपने सम्बंधियों से कोई नाता नहीं रखने, किसी शादी, जन्म दिन समारोह, अंत्येष्टि, आदि में भाग न लेने और बाबा साहब अम्बेडकर का सपना साकार करने तक चैन से न बैठने की कसम खायी थी.
कांशीराम की चिट्ठी पढ़कर माता बिशन कौर बहुत परेशान हुईं थीं और बेटे को मनाने पुणे भागीं. उन्होंने कांग्रेस के एक दलित विधायक की बेटी से कांशीराम का विवाह तय रखा था. दो महीने तक साथ रह कर वे कांशीराम को मनाती रहीं.  फिर हार कर बहुत दुख के साथ वापस लौट आईं.
बाद की घटनाएं गवाह हैं कि कांशीराम ने अपनी  सारी कसमें निभाईं. राखी बांधना तो दूर, वे अपनी बहन की शादी में भी शामिल नहीं हुए. न ही उसकी अचानक मृत्यु पर गये. बड़े बेटे होने के बावजूद वे अपने पिता की चिता को अग्नि देने नहीं गये. सम्पत्ति अर्जित करने का तो सवाल ही नहीं था. नौकरी छोड़ने के बाद वे अपने बकाया भत्ते लेने भी दफ्तर नहीं गये थे.
कांशीराम का पूरा जीवन दलितों की आजादी और उनके अधिकारों के लिए जबर्दस्त संघर्ष और त्याग का उदाहरण है. मायावती से भी उन्होंने ऐसी ही अपेक्षा की थी, जब यह कहा था कि मेरी दिली तमन्ना है कि मेरी मृत्यु के बाद मायावती मेरे कामों को आगे बढ़ाएंगी.
मायावती ने भी अपने शुरुआती दौर में दलित आंदोलन के लिए कम संघर्ष नहीं किया. कांशीराम ने यूं ही उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया था. बदरीनारायण की उसी किताब में कांशीराम को एक जगह यह कहते उद्धृत किया गया है- “मायावती ने उत्तर प्रदेश में सायकिल से घूम-घूम कर जिस तरह बहुजन समाज पार्टी का संदेश जनता तक पहुंचाया है उसे मैं कभी नहीं भूल सकता, वह भी ऐसे समय में जबकि बसपा के चुनाव जीतने के आसार दूर-दूर तक नहीं थे. इस लड़की ने बुलंदशहर से बिजनौर तक सायकिल चलायी और लगातार मेरे साथ बनी रही. अगर उसने इतनी मेहनत नहीं की होती तो मैं बसपा को इतना आगे ले जाने में सफल नहीं हुआ होता.”    
मायावती कांशीराम का बहुत सम्मान करती रही हैं. बीमारी के लम्बे दौर में मायावती ने उनकी बहुत सेवा की. जब कांशीराम के परिवार ने उनके इलाज एवं देखभाल का जिम्मा जबरन खुद लेना चाहा तो अदालत ने भी मायावती ही का साथ दिया था. कांशीराम की चिता को अग्नि मायावती ने ही दी थी.
यह सब देखते हुए दलित समाज का मायावती से यह अपेक्षा रखना कि वे कांशीराम के पदचिह्नों पर चलेंगी, अस्वाभाविक नहीं है.
सन 2017 की मायावती वही नहीं हैं जिसकी तारीफ के पुल कांशीराम बांधते थे. सायकिल चलाकर दलित समाज में घुलना-मिलना वे कबके छोड़ चुकीं. अब उनके पास आलीशान बंगले हैं. वे ऊंची चहारदीवारियों के भीतर रहती हैं. उन पर अपार दौलत जमा करने के आरोप लगते रहते हैं.
मायावती के भाई आनंद कुमार पर भी बेहिसाब कमाई करने के आरोप हैं. उनके खिलाफ जांच चल रही है. नोटबंदी के बाद उनके खाते में बड़ी रकम जमा होने की खबरें आई थीं. उसी भाई को, जो बताते हैं कि बसपा का प्राथमिक सदस्य तक नहीं था, बहुजन समाज पार्टी का दूसरे नम्बर का मुखिया घोषित करके मायावती ने स्वाभाविक ही आलोचनाओं को न्योता दिया है.

कांशीराम के जीवन मूल्य बताते हैं कि वे इस फैसले को कतई पसंद नहीं करते.  

(http://hindi.firstpost.com/politics/kanshi-ram-leave-his-family-for-dalits-and-his-aim-mayawati-bsp-anand-kumar-pr-24058.html)

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