अट्ठासी साल के एक बुजुर्ग के बैंक खाते से साइबर ठगों ने
डेढ़ लाख रु उड़ा लिये. सचिवालय से सेवानिवृत्त वे अपनी पेंशन से जीविका चलाते हैं.
13 जून, 2107 को स्टेट बैंक की सचिवालय शाखा के उनके खाते से एकाधिक
बार यह रकम ऑनलाइन ट्रांसफर हुई. 14 जून को साइबर क्राइम सेल, हज़रतगंज में लिखित शिकायत (संख्या 886/17) दर्ज करायी गयी. 15 जून को
हज़रतगंज थाने में एफआईआर (संख्या 0479) दर्ज हुई. नामित जांच अधिकारी ने दो-तीन दिन
बाद शिकायतकर्ता को सुनवाई के लिए सुबह 10 बजे थाने बुलाया लेकिन काफी इन्तजार के
बाद भी वे नहीं मिले. बताया गया कि योग दिवस पर प्रधानमंत्री के लखनऊ दौरे की
सुरक्षा-तैयारियों में व्यस्त हैं. वह व्यस्तता शायद आज तक खत्म नहीं हुई. एक
बुजुर्ग पेंशनधारी को उसकी डूबी रकम दिलाना तो दूर उसकी रिपोर्ट पर सुनवाई तक नहीं
हुई.
स्टेट बैंक की सचिवालय शाखा के जिम्मेदार यह बताने को तैयार
नहीं कि जब उन बुजुर्ग ने ऑनलाइन ट्रांजेक्शन की सुविधा ही नहीं ली थी तो कैसे उनके
खाते से डेढ़ लाख रु किस्तों में ऑनलाइन ट्रांसफर कर दिये गये? वे मजबूरी में सिर्फ एटीएम कार्ड का इस्तेमाल करते हैं. बैंक ने उनसे पूछा
क्यों नहीं कि आप ऑनलाइन ट्रांजेक्शन करना चाहते हों तो पहले रजिस्ट्रेशन कराइए?
या एक-दो ट्रांजेक्शन होते ही बाकी रोक क्यों नहीं दिये गये?
तुरंत ही फोन करके पूछा क्यों नहीं गया कि क्या आप ही ये
ट्रांजेक्शन कर रहे हैं? कुछ निजी बैंक ऐसी ऐहतियात बरतते
हैं. स्टेट बैंक ने उन बुजुर्ग की कोई मदद नहीं की, जबकि इस
ठगी में उनकी लापरवाही भी साफ दिखती है.
ऐसे बहुत सारे व्यक्ति हैं- बुजुर्ग,
सामान्य घरेलू महिलाएं, ग्रामीण, कम पढ़े या अनपढ़, एक बड़ीआबादी जो नेट-बैंकिंग से कतई वाकिफ
नहीं. बस, एटीएम कार्ड का इस्तेमाल किसी तरह कर लेते हैं.
साइबर ठगों के निशाने पर वे सबसे ज्यादा हैं. बैंक मददगार नहीं होंगे तो इस
नेट-युग में उनके खाते की सुरक्षा कैसे होगी? ये वे लोग हैं
जो एसएमएस करना नहीं जानते. बैंक या कहीं और से आया जरूरी एसएमएस नहीं देख पाते.
इसके अभ्यस्त ही वे नहीं हैं. मोबाइल उनके लिए सिर्फ फोन है. फोन मिलाया या फोन
उठा कर बात कर ली. राष्ट्रीयकृत बैंक पहले जमा या निकासी फॉर्म भरने जैसे कामों
में भी उनकी मदद करते थे. तब उनका धन सुरक्षित था. आज उनका धन खतरे में है और बैंक
सिर्फ विभिन्न सेवाओं का शुल्क लेने में मशगूल.
स्मार्ट फोन की घनघोर अभ्यस्त नयी पीढ़ी को साइबर ठगी की
सूचना फौरन मिल जाती है. वे तत्काल बैंक और
साइबर अपराध सेल से सम्पर्क कर धोखाधड़ी रोकने में कामयाब हो जाते हैं. 88 साल के
उन बुजुर्ग और उन जैसे बहुत सारे लोगों से बैंक या साइबर अपराध सेल के अधिकारी इस
तेजी की उम्मीद नहीं कर सकते. उन्हें तो आपकी ही मदद की बहुत जरूरत है. वे अपना
पासवर्ड या पिन तक सुरक्षित नहीं रख पाते. बैंक के नाम पर आया फर्जी फोन उन्हें
आसानी से बरगला देता है, क्योंकि वे बैंक पर पहले की तरह भरोसा करते
हैं.
बैंक और पुलिस को ऐसे नेट-असहाय लोगों की मदद निश्चित ही करनी
चाहिए. क्या अब भी यह आशा की जाए कि साइबर अपराध सेल और स्टेट बैंक उन बुजुर्ग का
ठगा हुआ धन वापस दिलवाने की कोशिश करेंगे? कम से काम जांच तो करेंगे? यह पता करना कतई मुश्किल नहीं कि उस खाते से रकम कहां ट्रांसफर हुई.
(नभाटा, 16 जुलाई, 2017)
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