पता नहीं इस शहर में कितने व्यक्तियों को याद है कि उनके
पास एक नदी भी थी या, कहने को अब भी है. शाम को लोहिया सेतु पर
युवाओं की भीड़ चाट-आइसक्रीम खाते हुए पुल की रेलिंग पर खड़े होकर सेल्फी लेती है.
गोमती रिवर फ्रण्ट नाम के तथाकथित सौंदर्य-तमाशे को देखने के लिए भीड़ जुटती है.
पता नहीं उस भीड़ में कितने लोग मरती हुई नदी की कराह सुन पाते हैं . बदबू का भभका
सभी की नाक में जाता है, पर अपनी ही मौज में डूबी यह पीढ़ी
क्या उसका कारण समझने की कोशिश करती है?
नदी के दुश्मन यहां बहुतेरे हैं. अखिलेश सरकार ने गोमती
रिवर फ्रण्ट प्रॉजेक्ट के नाम पर पहले से ही बदहाल नदी को मरणासन्न बना दिया. उसके
करीब पौने तीन सौ मीटर तट को समेट कर, कंक्रीट की दीवार से बांध कर करीब एक सौ मीटर कर दिया. नदी के तट उससे छीन
लिये. वहां सौंदर्यीकरण के नाम पर अवैध कब्जे करा दिये. कुड़िया घाट के पास नदी की
बीच धारा में मिट्टी का बांध बना दिया. नदी की धारा बाधित है. नदी बहेगी नहीं तो
तालाब बन कर सड़ेगी. नाले उसमें गिर ही रहे हैं. बचा-खुचा ऑक्सीजन पीकर जलकुम्भी का
जंगल फैल गया है. नदी का जैविक संसार खत्म हो गया.
योगी सरकार को अखिलेश सरकार का भ्रष्टाचार तो दिख रहा है
मगर नदी की मौत नहीं दिख रही. भ्रष्टाचार की जांच हो रही है, नदी बचाने के लिए कुछ नहीं हो रहा. कांग्रेस की हो या भाजपा की, सरकारें गंगा में करोड़ों रु बहा गयीं. गंगा और भी मैली होती गयी. गोमती तो
वैसे भी बेचारी ठहरी. इसे निजी मिलों, नगर निगम और प्रदूषण
रोकने के जिम्मेदारों ने भी मारा.
मगर गोमती के कुछ दोस्त भी हैं जो उसकी चिंता में लगे रहते
हैं. बीती 13 अगस्त को कुछ संस्थाओं के करीब तीस व्यक्तियों ने मिल कर ‘मेरी नदी, मेरा गौरव’ (माई
रिवर, माई प्राइड) नाम से
गोमती सफाई अभियान की शुरूआत की. अम्बेडकर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और
नदी विज्ञानी वेंकटेश दत्ता की अगुवाई में कुड़िया घाट पर जुटे इन कार्यकर्ताओं को बताया
गया कि नदी का महत्त्व क्या है, लखनऊ को गोमती ने क्या दिया
है और आज उस पर कैसा संकट है.
प्रो वेकटेश दत्ता काफी समय से गोमती को बचाने के लिए
सक्रिय हैं. गोमती रिवर फ्रण्ट का भी उन्होंने विरोध किया था. वे कहते हैं कि कुड़िया
घाट के पास बाहर से मिट्टी लाकर जो बांध बनाया गया है, उसने करीब डेढ़ किमी ऊपर तक नदी को बिल्कुल मार दिया है. प्रदूषण से नदी की
ऑक्सीजन खत्म हो गयी है. इस बांध को तत्काल हटाये जाने की जरूरत है.
‘मेरी नदी मेरा गौरव’
अभियान हर सप्ताह गोमती की सफाई कर रहा है लेकिन उसका मानना है कि इस सफाई से
ज्यादा कुछ होने वाला नहीं. गोमती को उसके सारे बंधनों और नालों से मुक्त कराना है.
उसके प्राकृतिक कूप और जल ग्रहण क्षेत्र पुनर्जीवित होने चाहिए. इसके
लिए बडे नागरिक अभियान की जरूरत है. उनकी अपील है कि ज्यादा से ज्यादा नागरिक,
खासकर युवा, इससे जुड़ें. प्रो दत्ता को शिकायत
है कि मीडिया भी गोमती की चिंता नहीं करता, जबकि यह बड़ा
मुद्दा बनना चाहिए.
तो, लोहिया सेतु से सेल्फी लेने और रिवर फ्रण्ट
पर चाट खाने वालो, गोमती के दोस्त नहीं बनोगे?
(नभाटा, 26 जुलाई, 2017)
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