Friday, June 08, 2018

मरीज बच जाए तो डॉक्टर भगवान, वर्ना जल्लाद?



राजधानी के हसनगंज क्षेत्र के सरकारी पशु चिकित्सालय में चंद रोज पहले दो भाइयों और उनकी मां ने एक पशु चिकित्सक पर जानलेवा हमला किया. उनके खिलाफ पुलिस थाने में दर्ज रिपोर्ट के मुताबिक वे अपने बीमार कुत्ते का इलाज कराने अस्पताल ले गये थे. कहते हैं कि डॉक्टर ने कोई इंजेक्शन लगाया, जिसके बाद उनके पालतू कुत्ते की मौत हो गयी. तीनों ने गलत इलाज करने का आरोप लगा कर डॉक्टर पर हमला कर दिया.

पिछले हफ्ते एक भोज में उत्तराखण्ड से आये वरिष्ठ डॉक्टर मित्र से मुलाकात हुई. उनके बेटे ने पिछले वर्ष राज्य की पीजी मेडिकल परीक्षा में टॉप किया और रेडियोलॉजी की पढ़ाई कर रहा है. रेडियोलॉजी क्यों? बोले- आप देख रहे हैं कि आजकल जरा-जरा सी बात पर डॉक्टरों पर हमले हो रहे हैं. इस लिहाज से रेडियोलॉजी सुरक्षित क्षेत्र है. वे काफी देर तक कई उदाहरण गिनाते रहे थे.

पिछले वर्ष गोमतीनगर इलाके के कुछ डॉक्टर मित्रों ने इस लेखक से अनुरोध किया था कि क्या मैं राजधानी के कुछ अखबारों के सम्पादकों और वरिष्ठ पत्रकारों से उनकी बैठक करा सकता हूँ. उनकी चिन्ता थी कि आये दिन अस्पतालों और निजी क्लीनिकों में तीमारदार डॉक्टरों पर लापरवाही या गलत इलाज का आरोप लगा कर मार-पीट, तोड़फोड़ कर रहे हैं. अखबारों में सीधे यही छप जाता है कि डॉक्टर ने गलत इलाज किया या इलाज में लापरवाही की. वे पत्रकारों के सामने डॉक्टरों का पक्ष रखना चाहते थे.

कुछ वर्ष पहले पीजीआई के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने पूछा था कि मेडिकल बीट के हमारे पत्रकारों की योग्यता क्या होती है? वे किस आधार पर यह लिख देते हैं कि इलाज गलत हुआ? और, क्या मेडिकल रिपोर्टिंग का मतलब सिर्फ यह है कि वे दुखी-हताश तीमारदारों के उल्टे-सीधे आरोप खबर बनाकर छाप दें? क्या आपको अनुमान भी है कि ऐसी खबरों से सभी डॉक्टरों की योग्यता ही नहीं, चिकित्सा पर से ही जनता का विश्वास हट रहा है? और क्या बात-बात पर डॉक्टरों पर हमले इसी अविश्वास का नतीजा नहीं है?

एक और चिकित्सक-मित्र ने बताया कि वे गम्भीर मरीजों का इलाज करने की बजाय कहीं और ले जाने की सलाह दे देते हैं. कुछ गड़बड़ हुई तो कौन मार खाये. उनकी बात ने बड़ी चिंता में डाल दिया. अगर डॉक्टर गम्भीर मरीज की जान बचाने की कोशिश करने की बजाय उसे टालने लगे हैं तो उपाय क्या है?

दूसरा पहलू यह है कि कई डॉक्टर धन-पिपासु हो गये हैं. ऐसी सभी खबरें असत्य नहीं होतीं कि मुर्दे को आईसीयू में रखकर लाखों का बिल वसूला गया. सरकारी अस्पतालों में निष्ठापूर्वक सेवा करने की बजाय निजी क्लीनिक पर ध्यान देने वाले डॉक्टर भी हैं. रोग की पहचान एवं इलाज में गलतियां भी हो जाती होंगी. लेकिन कितने डॉक्टर होंगे जिनका उद्देश्य रोगी की जान की कीमत पर धन कमाना है? कोई तीमारदार या रिपोर्टर कैसे जान सकता है कि गलत इलाज किया गया? और, जिस डॉक्टर पर गलत इलाज का आरोप लगाया गया है, क्या उसने सैकड़ों-हजारों मरीजों को जीवनदान नहीं दिया है?

पैरा-मेडिकल स्टाफ या हमारी खुद की लापरवाहियां मरीज के लिए कम घातक नहीं होतीं. उस सब का दोष डॉक्टर के मत्थे कैसे मढ़ा जा सकता है? मरीज ठीक हो जाए तो डॉक्टर भगवान अन्यथा जल्लाद, यह धारणा हमें कहां ले जा रही है? डॉक्टर तक पहुंच कर भी मरीज न बचे तो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है किंतु बीमार को भगवान के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता. अंतत: जाना डॉक्टर की शरण में ही होगा. यह भरोसा टूटना नहीं चाहिए.

(सिटी तमाशा, 9 जून, 2018)  

  


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