जुलाई 1950 में तत्कालीन केंद्रीय कृषि एवं खाद्य मंत्री
कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने देश भर में वन महोत्सव मनाने की शुरुआत की थी. उस
समय राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी दिल्ली
में पौधे लगाये थे. राज्यों में राज्यपालों तथा मुख्यमंत्रियों ने यह शुभ कार्य
करके जनता को पर्यावरण की सुरक्षा करने का संदेश दिया था. तब से पूरे देश में
सरकारें जुलाई के पहले सप्ताह में वन-महोत्सव मनाती आयी हैं. इस बार 69वां वन-महोत्सव मनाया जाने वाला है.
मुंशी जी की पहल पर उस बार देश भर में कितने पौधे रोपे गये
थे, इसका कोई आंकड़ा हमें नहीं मिला है. शायद
वे लोग आंकड़े जुटाने में विश्वास नहीं करते थे. आजकल आंकड़े ही आनक्ड़े जुटाए जाते
हैं. उदाहरणार्थ, सन
2015 में अकेले उत्तर प्रदेश ने एक दिन में दस लाख से ज्यादा वृक्षारोपण का विश्व
कीर्तिमान बनाया था. गिनीज बुक ऑफ वर्ड रिकॉर्ड्स के अधिकारियों ने तत्कालीन
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को ऐसा प्रमाण-पत्र सौंपा था. अन्य राज्यों ने भी कुछ न
कुछ कीर्तिमान बनाये ही होंगे. आंकड़ों और कीर्तिमानों के हिसाब से पिछले 68 वर्षों में देश में पेड़ ही पेड़ होने चाहिए थे. कौन पूछे कि वे कहां गये?
इस साल की जो तैयारी है, उसे देखिए.
अकेले राजधानी लखनऊ में करीब 21 लाख पौधे लगाने का सरकारी लक्ष्य रखा गया है. नौ
लाख के आसपास वन विभाग और बाकी अन्य विभाग लगाएंगे. इन पौधों की संख्या तो कागजों
में ठीक-ठीक दर्ज है लेकिन इतने पौधे कहां, किस जमीन पर
लगेंगे, इसका हिसाब नहीं है. राज्यपाल और मुख्यमंत्री और कुछ
अन्य वीवीआईपियों के लिए गड्ढे तय कर दिये होंगे जहां उनको वृक्षारोपण करना है,
लेकिन बाकी पौधे लखनऊ में तारकोल की किस सड़क और कंक्रीट के किस जंगल
में रोपे जाएंगे? पौधों को जड़ें फैलाने और बढ़ने के लिए जमीन
और आसमान चाहिए होते हैं, यह जानकारी सरकारी विभागों को होगी
ही.
पता नहीं गिनीज वर्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स वाले पौधारोपण के बाद
उनके जीवित बचने और बड़े हो जाने का भी रिकॉर्ड रखते हैं या नहीं लेकिन हम सबके
देखे इस देश में जो बेहिसाब बढ़े हैं, वें हैं सड़केंऔर, इमारतें
है. जो लगातार कम होते गये, वे हैं मिट्टी, हरियाली, तालाब, नदियां. विकास
के नाम पर पेड़ों की लगातार बलि ली जाती रही. अभी ऐन दिल्ली में रिहायसी इमारतें
बनाने के लिए 16500 पेड़ काटे जाने वाले हैं. उत्तराखण्ड में प्रधानमंत्री के वादे
के मुताबिक बन रही चार धाम ‘ऑल वेदर रोड’ के लिए 33,000 से ज्यादा पेड़ों की बलि ली जा रही है.
पर्यावरण की चिंता करने वाले विरोध कर रहे हैं मगर कौन सुनता है. सरकारें
वन-महोत्सव की तैयारी में मगन हैं.
लखनऊ में हरियाली और तालाब लगभग गायब हैं. सड़कों के किनारे
नीम, पीपल, इमली, पाकड़,
आदि बड़े-बड़े पेड़ पिछले दशक तक भी थे. अब किसी राहगीर को इन तपती
दुपहरियों में कुछ पल खड़े होने के लिए छांह नहीं मिलती. सजावटी पौधे छांह नहीं
देते. तालाबों की जगह बहुमंजिली इमारतें खड़ी हैं. कुछ जगहों में घनी छाया वाले पेड़
बचे हैं लेकिन वे आम जन की पहुंच से दूर वाले वीआईपी इलाके हैं.
किसी जिज्ञासु, शोध-प्र्वृत्ति वाले पत्रकार या सामाजिक
कार्यकर्ता को सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी मांगनी चाहिए कि पिछले दस वर्षों
में वन महोत्सवों के विभिन्न मदों में विभागवार कितना व्यय हुआ, कितने पौधे कब और किस जमीन पर लगाये गये, उनके
रख-रखाव और सिंचाई, आदि की क्या व्यवस्था थी और उनमें से
वास्तव में कितने जीवित रह गये. देखें क्या-कैसा जवाब आता है.
(सिटी तमाशा, नभाटा, 30 जून, 2018)
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