Friday, October 18, 2019

प्रशासन भी क्यों न गाए यह प्रार्थना



पीलीभीत के प्रशासन ने पैंतरा बदल लिया है. अब जिलाधिकारी का कहना है कि अल्लामा इकबाल के गीत के बोल बहुत अच्छे हैं. भला उसे गवाने पर प्रिंसिपल को निलम्बित क्यों किया जाएगा. निलम्बन का कारण यह है कि प्रिंसिपल ने साम्प्रदायिक आधार पर प्रार्थना का चयन किया. काफी लानत-मलामत हो चुकने के बाद प्रशासन को अपनी एकतरफा कार्रवाई के बचाव में कोई बहाना चाहिए था. इसलिए यह आड़ खोजी गई है.

अत्यंत आश्चर्य और क्षोभ इस बात पर होने लगा है कि प्रशासन साजिशन की गई ऐसी शिकायतों पर आंख मूंद कर कार्रवाई करने लगा है. वह यह देखने की ज़हमत भी नहीं उठाता कि शिकायत किसने की है, उसका इरादा क्या है, और ऐसी शिकायतों पर निलम्बन जैसी सजा देने का समाज में क्या संदेश जाएगा.

प्रिंसिपल के निलम्बन के बाद जो जांच की जा रही है, क्या वह कार्रवाई से पहले नहीं की जा सकती थी? क्या शिकायत करने वाले हिंदू संगठनों के इरादों की पड़ताल नहीं की जानी चाहिए थी? स्कूल का प्रिंसिपल मुसलमान है और उर्दूकी प्रार्थना गवा रहा है. आज के माहौल में हिंदू संगठनों के उत्तेजित होने के लिए इतना काफी है. उन्हें इससे मतलब नहीं कि उस प्रार्थना से बच्चे क्या सीख रहे हैं. 

परेशान करने वाली बात यह है कि प्रशासन हिंदू संगठनों के दवाब में क्यों काम करने लगा. पीलीभीत के वीसलपुर स्कूल का मामला इसका नया उदाहरण नहीं है. यह नई रवायत चल पड़ी है. हमारा समाज ऐसा नहीं था. आज भी बहुतायत में ऐसा नहीं है लेकिन धीरे-धीरे बनाया जा रहा है. झूठी और नफरत फैलाने वाली शिकायतें की जा रही हैं, अफवाहें फैलाई जा रही हैं. प्रशासन भी रंग बदल रहा है या भारी दवाब में है.

चंद दिन पहले साझी दुनियाऔर कुछ दूसरे सामाजिक संगठनों ने प्रदेश में हो रहे महिला-अत्याचारों और लचर पुलिस कार्रवाई पर आक्रोश व्यक्त करने के लिए जीपीओ पर धरना दिया. पुलिस प्रशासन ने इसे रोकने की कोशिश की, वहां पहुंची महिलाओं से दुर्व्यवहार किया. लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति, बुज़ुर्ग प्रो रूपरेखा वर्मा को देशद्रोह में गिरफ्तार करने की धमकी दी. उससे कुछ समय पहले ही उसी जगह हिंदू संगठन ममता बनर्जी का पुतला फूंक रहे थे. उस पर पुलिस को कोई आपत्ति नहीं हुई.

कुछ सप्ताह पहले मेगसायसाय पुरस्कार विजेता, सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पाण्डे को जीपीओ पर धरना देने के लिए घर से बाहर ही नहीं निकलने दिया. उनके कुछ और साथियों के घर पर पुलिस तैनात कर दी गई. सामाजिक संगठन विभिन्न मुद्दों पर सरकार और प्रशासन के खिलाफ जीपीओ पर शांतिपूर्ण धरना देते रहे हैं. अनेक बार मौन रहकर या मोमबत्ती जलाकर या चेन बनाकर. हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था और संविधान नागरिकों को इसका अधिकार देते हैं.

प्रशासन की ज़िम्मेदारी कानून-व्यवस्था बनाए रखना है. इसलिए उसे विरोध-प्रदर्शनों पर नज़र तो रखनी चाहिए लेकिन उन्हें रोकना या धमकाना उसका काम हरगिज नहीं है. जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करना भी उसका फर्ज़ है. हमारी पुलिस यह फर्ज़ कबके भूल चुकी है. कोई भी पार्टी सत्ता में हो, वह उसके इशारे पर चलती रही है. इन दिनों यह अपने चरम पर दिखता है.

कुछ मुद्दों पर सरकार या प्रशासनिक कार्रवाई का विरोध करना, धरना देना या प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री को असहमति का पत्र लिखना अपराध नहीं है. लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए यह अच्छी खुराक है. 

मैं समझता हूं, यह प्रार्थना आजकल प्रशासनिक अफसरों एवं पुलिस वालों से ज़रूर गवानी चाहिए- मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको.’ ‘अल्लाहकी जगह ईश्वरकह लीजिए लेकिन गाइए.

(सिटी तमाशा, 19 अक्टूबर, 2019)
    

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