Saturday, October 05, 2019

गांधी की मूर्ति पर फूल और विचारों पर धूल


जमाना हुआ, गांधी-स्मरण एक रश्म अदायगी से ज़्यादा कुछ नहीं रह गया. सच्चाई, सादगी, क्षमा, अहिंसा एवं प्रेम को जीवन में उतार लेने वाले महात्मा की स्मृति का भव्य तमाशा करने वालों का आचरण सर्वथा उनके मूल्यों के विपरीत है. उनके वास्तविक अनुयायी तो अब शायद ही कहीं हों. प्रत्येक राजनैतिक दल उनके असली वारिस होने का दावा कर रहा है लेकिन सभी ने गांधी के मूल्य और विचार बिल्कुल ही त्याग दिए.

गांधी कहते थे, विशेष रूप से सत्ता में बैठे लोगों के लिए कि जब कभी यह असमंजस हो कि क्या फैसला लें, तो सबसे पिछड़े और गरीब इनसान का ध्यान करो और उसके हित के लिए फैसला करो. होता इसके ठीक विपरीत है. यहाँ नाम गरीब और असहाय का लिया जाता है लेकिन अधिसंख्य फैसले लाभ उन्हें पहुंचाते हैं जो कतार में काफी आगे पहुंच चुके हैं. गरीब और निस्सहाय को न्याय मिलने की उम्मीद दिन पर दिन कम होती जा रही है.

देश के गरीबों-अधनंगों को देखकर गांधी ने अपने आधे वस्त्र त्याग दिए थे. आज गांधी के तथाकथित भक्त गरीबों-असहायों का रहा-बचा भी लूट ले रहे हैं. गांधी दूसरे की गलती से व्यथित होकर और दंगा शांत कराने के लिए अपने को सजा देते थे. आज अपने तमाम दोषों को छुपा कर, पीड़ित को ही दोषी साबित करने और सजा दिलाने की साजिश होती है.  

अन्याय करने वाला जितना बड़ा है कानून के हाथ उस तक पहुंचने में उतनी ही टाल-मटोल करते हैं या पहुंचते ही नहीं. चिन्मयानंद पर संगीन आरोप होने के बावजूद उसकी गिरफ्तारी बहुत देर में और बड़ी मुश्किल में हुई. उत्पीड़ित लड़की फौरन जेल भेज दी गई. हो सकता है कि लड़की के खिलाफ कुछ मामला बनता हो लेकिन क्या चिन्मयानंद के खिलाफ उससे कहीं अधिक गम्भीर मामला शुरू से ही नहीं बनता था? गिरफ्तार करने के बाद भी उन्हें कई दिन अस्पताल की सुविधाओं में रखा गया. लड़की तुरंत जेल की कोठरी में बंद कर दी गई.
कितने ही मामले हैं जिनमें कमजोर और उत्पीड़ित का पक्ष सुना नहीं जाता या इतनी देर कर दी जाती है कि ताकतवर अभियुक्त के खिलाफ प्रमाण नहीं मिल पाएं. 

विधायक कुलदीप सेंगर का मामला देख लीजिए. शिकायत दर्ज़ करवाने के बाद उत्पीड़ित लड़की और उसके परिवार पर कितने अत्याचार होते रहे. विधायक की गिरफ्तारी में यथासम्भव देर की गई. वह लड़की, उसके परिवार और गवाहों को तोड़ने व रास्ते से हटाने की साजिश रचता रहा. जो उत्पीड़क है, प्रभावशाली अपराधी है, वह निश्चिंत है. भय ही नहीं उसे. भागा-भागा वह फिर रहा है जो सताया गया है. यह अपवाद नहीं, आम है.
झाड़ू लगाकर और शौचालय बनवाकर गांधी का अनुयायी बना जा सकता है क्या

गांधी भौतिक नहीं आत्मिक शुचिता को जीवन में उतारने की बात करते थे. सत्य की दृढ़ता से गांधी ने जग जीत लिया. आज कोई नेता सच का सामना करना ही नहीं चाहता. निर्दोषों की मॉब लिंचिंग जैसे भयानक अपराध को सत्तापक्ष सुनने-समझने को तैयार नहीं है. एक चौरी-चौरा काण्ड के कारण गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस ले लिया था. यहां मॉब लिंचिंग के साथ-साथ गांधी की मूर्ति के चरणॉं में शीश नवाया जा रहा है..

गांधी से बड़ा हिंदू और राम-भक्त कौन है? हिंदू गांधी गाय से भी प्रेम करते थे और राम से भी लेकिन गाय या राम के नाम पर किसी की हत्या उन्हें हरगिज मंजूर न थी. उनके लिए हिंदू होने का अर्थ उतना ही मुसलमान, सिख और ईसाई होना भी था. 

अज़ब विडम्बना है कि गांधी को पूजने वाले जान-बूझकर गांधी को समझना नहीं चाहते. 30 जनवरी 1948 के बाद से लगातार गांधी की हत्या जारी है.

(सिटी तमाशा, नभाटा, 5 सितम्बर, 2019)  



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