Friday, August 31, 2018

सड़कों के गड्ढे, मौतें और राम भरोसे जिंदगी


मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी के वादे के मुताबिक जून 2017 तक प्रदेश की सड़कों के सारे गढ्ढे भर दिये जाने थे. तय समय पर यह काम नहीं हो पाया. सड़क विभाग के मंत्री और उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने तब कहा था कि जनवरी 2018 तक सड़कें गढ्ढा-मुक्त बना दी जाएंगी. फिर भी यह काम पूरा नहीं हो पाया था तो सार्ववजनिक निर्माण विभाग के 12 अभियंताओं को निलंबित कर दिया गया था. उन पर आरोप था कि सरकार का वादा पूरा करने में उन्होंने लापरवाही बरती.

इस कार्रवाई का नतीजा क्या निकला, मालूम नहीं. सड़कों के गड्ढे कुछ जरूर भरे गये होंगे. ज्यादातर जगहों पर वे जानलेवा बने रहे. यहां हमारी चिंता कारण वह रिपोर्ट है जो पिछले हफ्ते इसी अखबार में छपी थी. शुभम सोती फाउण्डेशनकी इस रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष के 232 दिनों में राजधानी लखनऊ में 1001 दुर्घटनाएं हुईं जिनमें 381 लोगों की मौत हुई और 627 गंभीर घायल हुए. यह बहुत डरावना आंकड़ा है.

शुभम सोती 12वीं कक्षा का छात्र था जब सन 21010 में सड़क दुर्घटना में उसकी मौत हो गयी थी. उसके परिवारजनों ने उसकी याद में फाउण्डेशन बनाया जो जनता में, विशेष रूप से युवाओं में सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने का काम करता है. उसका अध्ययन बताता है कि राजधानी में जो दुर्घटनाएं हो रही हैं उनके मुख्य कारण हैं- सड़कों के गड्ढे और तेज रफ्तार. मरने और घायल होने वालों में कम उम्र नौजवानों की संख्या सबसे ज्यादा है.

इस साल हो रही अच्छी बारिश ने सड़कों को और भी जानलेवा बना दिया है. दोष बारिश का नहीं, सड़कों का मानकों के अनुरूप नहीं बनना है. जिन सड़कों में गड्ढे थे या जिनमें पैबंद लगाया गया था, बारिश ने उन्हें उधेड़ दिया. सड़कें बनाते समय यह ध्यान नहीं दिया जाता कि उनमें पानी नहीं भरे. जल निकासी होती नहीं और पानी कोलतार का दुश्मन हुआ. नतीजा गहरे गड्ढे. लखनऊ की जो सड़कें बेहतर मानी जाती थीं, उनकी भी बजरी-गिट्टी इन दिनों उखड़ गयी है. दोपहिया वाहनों के लिए यह बहुत खतरनाक साबित हो रहा है.

सड़क दुर्घटनाओं के मामले में उत्तर प्रदेश वैसे भी देश में अग्रणी है. यातायात विभाग की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 2017 में राज्य में  38,411 दुर्घटनाएं हुई जिनमें  20,142 लोग मारे गये और 27, 507 घायल हुए. देश में यह सबसे ज्यादा है. दुर्घटनाएं और मौतें हर साल बढ़ रही हैं. इस मामले में कानपुर नगर सबसे खतरनाक जिला है. फिर लखनऊ का नम्बर है. तीसरे स्थान पर आगरा.

सड़क दुर्घटनाएं कम हों, उनमें इतनी बड़ी संख्या में जानें न जाएं, ऐसे  उपाय जमीन पर कहीं नहीं दिखते, हालांकि भारत सरकार ने उस अंतराष्ट्रीय घोषणापत्र पर हस्ताक्षर कर रखे हैं जिसमें संकल्प लिया गया है कि सड़क-सुरक्षा के ऐसे उपाय किये जाएंगे कि 2020 तक सड़क दुर्घटनाओं में मौतों की संख्या आधी हो जाए. उत्तर प्रदेश में तो अभी मौतों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है. पता नहीं यहां किसी को ऐसे संकल्प-पत्र की याद भी है या नहीं.

जनता यातायात नियमों का पालन नहीं करती. हमारे वीवीआईपी नियम तोड़ना और धौंस जमाना सिखाते हैं. रास्तों पर अतिक्रमण हैं. यातायात पुलिस का सारा ध्यान वीवीआईपी की झूठी शान बनाये रखने में है. जनता की सड़क-सुरक्षा पर उसका ध्यान नहीं. जिम्मेदार विभाग सड़कों के गड्ढे भर देने में  लापरवाह है. दुर्घटना होते ही जल्दी से जल्दी इलाज की व्यवस्था नहीं. फिर कैसे कम हों दुर्घटनाएं और मौतें?

गुरुवार को यह मामला विधान परिषद में उठा लेकिन पक्ष-विपक्ष में व्यक्तिगत आक्षेपों तक रह गया. मूल मुद्दे पर चर्चा ही नहीं हुई. क्या कहें?

('सिटी तमाशा', नभाटा, 01 सितम्बर, 2018)



1 comment:

कविता रावत said...

बड़ी दयनीय स्थिति है सड़कों की, हम भी जब कभी बस या टैक्सी द्वारा दिल्ली से रामनगर जाते हैं तो रास्ते में बड़े-बड़े गड्डों के वजह से चलना कितना मुश्किल है। अब इन रास्तों से सत्ताधीशों को चलने की तो जरुरत नहीं पड़ती इसलिए बेचारे लावारिश बने रहते हैं