बहुत क्लेश होता है जब कोई संगठन अपने बीच के दोषी या
आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का बचाव करने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं. उम्मीद
यह होती है कि जिम्मेदार पदाधिकारी खुद आगे आकर संगठन या अपनी व्यावसायिक बिरादरी
की नाक बचाने के लिए ऐसे लोगों को कानून के हवाले कर दें लेकिन होता उलटा है. संगठन
इसे सामूहिक हित का मुद्दा बनाकर आंदोलन पर उतारू हो जाते हैं और अभियुक्त कटघरे
में खड़े होने कि बजाय हीरो बन कर घूमते हैं.
लड़कियों से छेड़खानी करने वालों की पकड़-धकड़ के लिए बिना वर्दी
निकली महिला पुलिस से जनपथ बाजार में छेड़खानी की गई. साथी पुलिस वालों ने जब
छेड़खानी करने वालों को पकड़ने का प्रयास किया तो जनपथ के व्यापारी इकट्ठा होकर
पुलिसकर्मियों पर हमलावर हो गए. अपने शर्मनाक व्यवहार को जायज ठहराने के लिए उन्होंने
लड़की को चरित्रहीन ठहराया और दोषियों को भागने में मदद की. वे उनके परिचित या उन
ही में कोई रहे होंगे. उन्हें शर्म तो छोड़िए तनिक संकोच तक न हुआ कि वे एक लड़की को
चरित्रहीन घोषित कर रहे हैं जबकि वे उसे जानते तक नहीं. किसी लड़की को चरित्रहीन
बताकर उसके साथ छेड़खानी या उससे भी आगे जाने को जायज ठहराने की यह घिनौनी मानसिकता
बहुत पुरानी और खेद है कि आज भी मौजूद है.
वकीलों के एक वर्ग ने पिछले दिनों शहर में जो उपद्रव किया
उसकी चौतरफा निंदा हो रही है. हाई कोर्ट ने उसका संज्ञान लिया और उसमें शामिल
वकीलों की पहचान करने की पहल की ताकि उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सके. मगर वकीलों के
संगठन काला कोट धारी ऐसे लोगों की पहचान में सहयोग नहीं कर रहे. उलटे उन्होंने
हड़ताल कर दी और काम करना चाहने वाले वकीलों को जबरिया रोका. सब जानते हैं कि वकालत
की आड़ में कुछ आपराधिक तत्व सक्रिय हैं. अक्सर वे कानून अपने हाथ में ले लेते हैं.
असहाय लोगों के मकानों पर कब्जा करने से ले कर कई तरह की आपराधिक शिकायतें उनके
खिलाफ हैं. उनकी हरकतों से यह प्रतिष्ठित पेशा बदनाम होता है लेकिन विभिन्न बार इस
पर कोई कदम नहीं उठाते. अनौपचारिक रूप से वे इस पर चिंता व्यक्त करते हैं परंतु
कोई प्रभावी कारवाई नहीं करते. इन दिनों हाई कोर्ट इस मामले में सुनवाई कर रहा है.
बार की तरफ से वकीलों के निर्दोष होने की दलीलें ही पेश की जा रही हैं.
शिक्षकों-कर्मचारियों के संगठन अपनी संख्या और सरकारी
काम-काज प्रभावित कर सकने के कारण बहुत ताकतवर हैं. अगर उनके किसी साथी को रिश्वत
लेते गिरफ्तार किया जाता है तो भी वे हड़ताल कर देते हैं और बहाना बनाते हैं
उत्पीड़न का. वे कभी सरकारी तंत्र को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने, भ्रष्टाचारियों
को अपने संगठन से बाहर करने की मुहिम नहीं चलाते. अयोग्य कर्मचारियों पर
नियमानुसार कार्रवाई भी उन्हें नागवार गुजरती है और वे दफ्तर के फाटक पर ‘इंकलाब ज़िंदाबाद’ करने पहुंच जाते हैं. कुछ वर्ष
पूर्व आईएएस अधिकारियों ने जरूर अपने ही बीच के ‘महाभ्रष्टों’
का चयन कर उल्लेखनीय उदाहरण प्रस्तुत किया था. किसी भी अन्य संगठन
ने इसका अनुकरण नहीं किया. बल्कि अब तो ज्यादातर संगठन भ्रष्ट और अराजक प्रवृत्ति
के लोगों के हाथ में हैं. इनमें दूसरों का भ्रष्टाचार खोलने को तत्पर पत्रकारों के
संगठन भी शामिल हैं.
जनपथ के व्यापारियों के शर्मनाक आचरण से निकली बात दूर तक
चली गई. संगठन की शक्ति का कैसा इस्तेमाल होने लगा है! किसी लड़की को चरित्रहीन बता
कर उससे छेड़खानी को जायज ठहरा कर तो व्यापारियों मे सभी सीमाएं तोड़ दीं.
(नभाटा, 26 फरवरी, 2016)
1 comment:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 12 मार्च 2016 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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