Thursday, February 04, 2016

कई पीढ़ियों के दीदी-भैया और ‘बच्चों’ का मिलन


सन 1947 में ऑल इण्डिया रेडियो के रविवासरीय कार्यक्रम बच्चों का प्रोग्राम (बाद में बाल संघ नाम से लोकप्रिय) में कुसुम हरिनारायण दीदी बन कर कम्पीयरिंग करती थीं. बीते रविवार को 94 साल की अवस्था में जब वे अपना संकल्प और समस्त ऊर्जा बटोर कर कला गांव के गंवई  हॉल में बमुश्किल दाखिल हुईं तो वहां मौजूद पांच-छह पीढ़ियों के 20-25 लोग भावुक हो उठे. कुछ की आंखें छलछला आईं. करीब सत्तर साल के भैया रज्जन लाल उनके पैरों पर झुक गए. शुरू में वे बता चुके थे कि मेरी दीदी बहुत वृद्ध हो चुकी हैं और वे आ नहीं पाएंगी. लेकिन आज की परदादी और कभी की दीदी की स्मृतियों ने इतना जोर मारा कि उनके बेटे मां को वहां पहुंचाए बिना रह न सके. फिर तो 1949 में बाल संघ की कलाकार रहीं शकुंतला भी उनके ऑटोग्राफ लेने लगीं.
वहां के के सिंह थे जो 36 वर्ष मास्को रेडियो में काम करने के बाद भारत लौट आए मगर उससे भी पहले वे बाल संघ के कलाकार थे. 1952 से बाल कलाकार रहे खालिद भाई, जो बाद में टीवी और रंगमंच के बेहतर अभिनेता बने, भी लाठी के सहारे वहां मौजूद थे. धीरेंद्र वर्मा ने बूढ़े गले से वह पूरा गीत गा कर सुनाया जो कभी बाल संघ में खूब बजाया जाता था. रज्जन लाल और उनकी पत्नी शारदा लाल झोला भर फूल मालाएं लाए थे जो हर एक के गले में उम्र के वजन के हिसाब से पहनाई गईं. मुम्बई जाकर मशहूर हुए अतुल तिवारी ने जब यह कहा कि मेरे बिगड़ने की शुरुआत ही बाल संघ से हुई और इसका श्रेय रज्जन भैया को है तो सबने इस बिगड़ने के सदके किए. आकाशवाणी और दूरदर्शन की लोकप्रिय सख्शियत रमा त्रिवेदी ने जोर देकर कहा कि भाषा और सही उच्चारण का संस्कार उन्हें बाल संघ ने दिया तो तालियां बजाते सब लोग यह कहे बिना नहीं रह सके कि आज के आर जे कितनी भ्रष्ट भाषा और गलत उच्चारण करते हैं.
यह कोई एल्मनाई मीट नहीं थी. 1970-80 के दशक के बाल संघ के भैया जी रज्जन लाल और उसी दौर के बाल कलाकार प्रभाकर त्रिपाठी उर्फ आदियोग के निजी प्रयासों से बाल संघ के पुराने से बहुत पुराने कुछ कलाकार एक जगह जुटे. जब कुसुम जी दीदी बनती थी और उनके साथ यज्ञ देव पंडित भैया जी और मुश्ताक भाई चाचा तब आज के वयोवृद्ध रज्जन लाल, धीरेंद्र वर्मा, खालिद भाई, केके सिह, शकुंतला, आदि छोटे बच्चे थे. जब 20-25 वर्ष बाद रज्जन लाल भैया जी के रोल में आए और शकुंतला वर्मा दीदी बनती थीं तब रचना और अर्चना मिश्रा, अतुल तिवारी, अंजलि, विजय वीर, लता, प्रभाकर, नूतन, जैसे दर्जनों बच्चे गीत, कविता गाना, चुटकुला, वगैरह सुनाने के लिए हर रविवार आकाशवाणी स्टूडियो तक दौड़े जाते थे. स्टूडियो नम्बर एक के उस अजब-गजब जमघट ने उन बच्चों को तरह-तरह से मांजा और कला-कर्म के विविध संस्कार दिए. आज दशकों बाद उनमें से कुछ का इकट्ठा होना और बच्चा बन कर उस दौर के गीत, चुटकुले, संवाद सुनाना अपनी जड़ों का पानी पीने जैसा था, जो अमृत से कम नहीं होता. इसी अमृत पान का असर था कि आकाशवाणी के कार्यवाहक निदेशक पृथ्वीराज चौहान को कहना पड़ा कि अप्रैल मास से आज के बाल जगत कार्यक्रम का नाम फिर से बाल संघ कर दिया जाएगा. आदियोग ने इस पूरे अनौपचारिक आयोजन को सृजन पीठ से जोड़कर नया आयाम भी प्रदान कर दिया. यह पीठ आगे चल कर सृजन धर्मा व्यक्तियों का मिलन व रचना स्थल बनेगी. आमीन!
(नभाटा, 05 फरवरी, 2016)




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