27 फरवरी को कर्नाटक के
बेलागांव में और 28 फरवरी को उत्तर प्रदेश के बरेली में प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी लगभग
वही बातें करेंगे जो वे बीती 18 फरवरी को मध्य प्रदेश के सीहोर में और 21 फरवरी को
ओडिशा के सूखाग्रस्त बारगढ़ में कह चुके हैं.
वे बताएंगे कि उनकी सरकार
ने किसानों के कल्याण के लिए क्या-क्या किया है और उसके क्या-क्या फायदे हैं.
लखनऊ में आम्बेडकर के
अस्थिकलश के सामने शीश नवाने और वाराणसी में संत रविदास मंदिर में पूजा करके प्रसाद
ग्रहण के बहाने दलित राजनीति के मंच पर हलचल मचाने के तुरंत बाद नरेंद्र मोदी
किसान कल्याण मेलों में दिखाई देने लगे हैं. जब तक विरोधी दलों के नेता दलित प्रेम
का ‘दिखावा’ करने के लिए उन पर हमला करने को आगे आए, मोदी जी अपनी सरकार का किसान हिमायती चेहरा
लेकर देश में घूमने लगे.
उनका एजेण्डा साफ है- किसानों का भरोसा जीतना. रणनीति यह कि
जगह-जगह सम्मेलन कर किसानों को बताया जाए कि सरकार ने अब तक किसानों के हित में क्या-क्या
फैसले किए हैं.
फिलहाल चार सम्मेलन निश्चित किए गए है, जिनका
जिक्र शुरू में किया गया है. कहीं इसे किसान स्वाभिमान रैली और कहीं किसान कल्याण
मेले का नाम भी दिया गया है. प्रधानमंत्री स्वयं इन्हें सम्बोधित कर रहे हैं. सम्भव
है बरेली के बाद और भी कार्यक्रम हों.
जे एन यू प्रकरण के बहाने पूरे देश में देशप्रेम बनाम
देशद्रोह और भगवाकरण बनाम वैचारिक स्वतंत्रता की आक्रामक बहस छिड़ी है.
अदालतों, विश्वविद्यालयों और सड़कों पर ‘देश द्रोहियों’ पर हमले हो रहे हैं. संसद भी इन ही
मुद्दों पर गर्म है लेकिन प्रधानमंत्री इस बारे में कुछ कहने से परहेज करके किसानों
के कल्याण के लिए किए जा रहे फैसलों पर बोलने में लगे हैं.
मध्य प्रदेश के सीहोर में उन्होंने ‘प्रधानमंत्री
फसल बीमा योजना’ के संशोधित संस्करण से किसानों का परिचय
कराया. उन्होंने किसानों को याद दिलाया कि यह योजना पहली बार अटल बिहारी बाजपेई की
सरकार ने लागू की थी. फिर यूपीए सरकार आई तो उसने इसमें ऐसे बदलाव कर दिए कि किसान
भाई फसल बीमा योजना से भागने लगे. उन्होंने बताया कि अब मेरी
सरकार ने इसकी कमियां दूर कर दी हैं. इसमें किसानों की समस्याओं के हल मौजूद हैं
और मुसीबत के समय यह उनके काम आएगी.
यहां यह बताना ठीक होगा कि पहले की
योजना में बीमा प्रीमियम का 15 फीसदी तक हिस्सा किसान को देना होता था जो अब दो और
डेढ़ फीसदी तक घटा दिया गया है. मुआवजा राशि की सीमा भी तीन गुना तक बढ़ा दी गई है.
किसानों का विश्वास जीतने के लिए इसे मोदी सरकार का बड़ा नीतिगत परिवर्तन माना जा
रहा है. पहले चरण में 50 लाख किसानों का फसल बीमा किया जाना है.
इसके अलावा प्रधानमंत्री किसानों को मिट्टी की सेहत दुरस्त
रखने के लिए जारी किए गए ‘सॉइल हेल्थ कार्ड’ के
बारे में बता रहे हैं. मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बनी रहेगी तो उपज अच्छी होगी. वे बता रहे हैं कि उनकी सरकार ने जो किसान सिंचाई योजना जारी की है उसके
क्या-क्या लाभ हैं. वे जैविक खेती के फायदे गिना रहे हैं और बता रहे हैं कि
पर्याप्त मात्रा में यूरिया की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए क्या-क्या कदम
उठाए गए हैं.
जोर-शोर से शुरू किए गए डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लांच होने
वाले ‘नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट’ के बारे में मोदी जी बड़े
उत्साह से बताते हैं कि इससे किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिल सकेगा.
नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट की लांचिंग के लिए 14 अप्रैल 2016
की तारीख तय की गई है. इस दिन बाबा साहेब भीम राव आम्बेडकर का जन्म दिन होता है.
जाहिर है इस तारीख का चयन भी प्रधानमंत्री के दलित एवं किसान एजेण्डे के तहत ही
किया गया होगा.
मोदी पूरी कोशिश कर रहे हैं कि जनता को उनकी सरकार गरीब-हितकारी
दिखाई दे. विरोधी दलों ने भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन के एनडीए के प्रस्तावों पर
पिछले साल उनकी खूब घेराबंदी की थी. आरोप लगाए गए थे कि मोदी सरकार उद्योगपतियों
के इशारे पर किसानों की स्वीकृति के बिना उनकी जमीन अधिग्रहीत करना चाहती है.
खासकर राहुल गांधी ने उन पर तीखे हमले किए थे. बिहार विधान सभा चुनावों में जब वे
विकास का एजेण्डा लेकर प्रचार कर रहे थे तब नीतीश, आदि उनकी ‘गरीब विरोधी और अमीर हिमायती सरकार की पोल’ खोल रहे
थे.
राज्य विधान सभाओं के चुनाव के अगले दौर से पहले मोदी दलितों-किसानों
के हित में किए गए अपने फैसलों को जनता को रटा देना चाहते हैं, इससे
पहले कि विरोधी दल इस मोर्चे पर सक्रिय हों.
हां, हरियाणा में भयानक रूप से हिंसक हुए जाट
आरक्षण आंदोलन के परिप्रेक्ष में मोदी जी इस अभियान की समीक्षा जरूर करेंगे.
हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर
प्रदेश में जाट बहुतायत में किसान हैं. मांगें माने जाने के आश्वासन के बावजूद वे
अभी भाजपा से नाराज हैं. ऐसे में कम से कम जाट बहुल इलाकों में किसान कल्याण के
प्रचार से वे बचना चाहेंगे.
(बीबीसी.कॉम, 28 फरवरी 2016)
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