Sunday, March 10, 2019

देश तो सेना के सुरक्षित हाथों में है, मोदी ने अपनी जिम्मेदारियाँ कैसे निभाईं?



नवीन जोशी

स्वराज अभियानके जुझारू नेता योगेंद्र यादव ने शनिवार को भाजपा के एक पोस्टर की फोटो ट्वीट की थी. पोस्टर में मोदी हैं तो मुमकिन हैनारे के साथ नरेंद्र मोदी, अमित शाह और कुछ अन्य भाजपा नेताओं के साथ वायु सेना के विंग कमाण्डर अभिनन्दन वर्धमान की बड़ी सी फोटो लगी है. ट्वीट में योगेंद्र यादव चुनाव आयोग से पूछते हैं- क्या इसकी अनुमति दी जा सकती है? राजनैतिक पोस्टरों में एक सेवारत सैनिक की तस्वीर? यदि नहीं, तो क्या आप इसके खिलाफ कार्रवाई करेंगे?’

अभिनंदन वर्धमान वही जाँबाज वायु सैनिक हैं जिन्होंने पिछले दिनों बालाकोट हमले के बाद पाकिस्तानी जवाबी कार्रवाई में उसके एफ-16 विमान को गिराया था. उस हमले में खुद उनका मिग विमान ध्वस्त हुआ और उन्हें पाकिस्तानी सीमा में उतरना पड़ा. शुरुआती तनातनी के बाद पाकिस्तान ने सदिच्छा और वार्ता की पहल दिखाते हुए उन्हें भारत को सौंप दिया था.

योगेंद्र यादव के ट्वीट के क्रम में कई और पोस्टर सामने आने जिनमें भाजपा ने सैनिकों, सैन्य प्रतीकों और बालाकोट के आतंकवादी ठिकानों पर वायु सैनिक हमले का श्रेय लूटने का पूरा प्रयास किया है. दिव्य मराठीअखबार का एक पूरे पेज का विज्ञापन है जिसमें नरेंद्र मोदी के वृहदाकार चित्र के ऊपर दो युद्धक विमान उड़ान भर रहे हैं. साथ में अटल बिहारी बाजपेयी समेत कई भाजपा नेताओं की छोटी तस्वीरों के साथ मोदी जी गरज रहे हैं- सौगन्ध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं मिटने दूंगा, मैं देश नहीं झुकने दूंगा.

एक और फोटो भाजपा के जुलूस के आगे चल रहे एक रथ के सामने के पोस्टर का है. नरेंद्र मोदी की फोटो के नीचे युद्ध के लिए कूच करती हमारी सेना की टुकड़ी की तस्वीर है. लिखा है- सौगंध मुझे इस मिट्टी की...” पोस्टर पर ताण्डव करते भगवान शिव भी विराजमान हैं. एक और पोस्टर में संगीन लगी बंदूक ताने (सम्भवत: ) एक आतंकवादी की छाया है और ललकारते हुए मोदी जी कह रहे हैं- “हम तुम्हें मारेंगे और जरूर मारेंगे लेकिन वो बंदूक भी हमारी होगी, गोली भी हमारी होगी, बस जगह तुम्हारी होगी.

योगेंद्र यादव ने बहुत उचित और प्रासंगिक सवाल उठाया. अगले दिन राजदीप सरदेसाई ने अपने एक ट्वीट में ऐसे ही एक पोस्टर के साथ चार, दिसम्बर 2013 को भारत निर्वाचन आयोग द्वारा सभी राजनैतिक दलों को जारी एक नोटिस की प्रत्ति नत्थी की. इसमें  कहा गया है कि” (तत्कालीन) रक्षा मंत्री ने आयोग का ध्यान दिलाया है कि कुछ राजनैतिक दल, नेता और उनके प्रत्याशी अपनी चुनाव प्रचार सामग्री में सैन्य बलों की तस्वीरों का उपयोग कर रहे हैं. उन्होंने आयोग से इस पर उचित निर्देश जारी करने की अपेक्षा की है.”

निर्वाचन आयोग आगे लिखता है कि “सशस्त्र सेनाएँ हमारी सीमाओं, देश की सुरक्षा और राजनैतिक प्रणाली की संरक्षक हैं. लोकतंत्र में वे सर्वथा गैर-राजनैतिक एवं निष्पक्ष रहती हैं. इसलिए यह आवश्यक है कि राजनैतिक दल अपने चुनाव अभियानों में सेनाओं का उल्लेख करने में अत्यंत सावधानी बरतें. आयोग की राय है कि राजनैतिक दल अपने चुनाव अभियान, विज्ञापनों और भाषणों या अन्य किसी सामग्री में सेना प्रमुख या फौजों या सैन्य कार्यक्रमों की तस्वीरों का  उपयोग नहीं करें.’’

इस पुराने नोटिस को फिर से जारी करने का अर्थ सीधा-सीधा यही है कि कुनाव आयोग राजनैतिक दलों को निर्देश दे रहा है कि वे चुनाव अभियान में सेना का इस्तेमाल नहीं करें. 

क्या नरेंद्र मोदी और भाजपा सुन रहे हैं. वे हाल के सैन्य अभियानों का जिस तरह अपने चुनाव प्रचार में इस्तेमाल कर रहे हैं वह अनैतिक, अमर्यादित और चुनाव अयोगों के निर्देशों के विपरीत है. यह सुरक्षा बलों का अनर्थकारी राजनैतिक इस्तेमाल है. खेद का विषय है कि इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे बड़े गुहगार हैं अब वे अपनी प्रत्येक चुनावी  सभा में बालाकोट हमले, अभिनंदन की वापसी और सेनाओं के शौर्य को अपनी हिम्मत बताकर पेश कर रहे हैं.  

भाजपा 2019 के आम चुनाव के लिए हमारी सेनाओं के शौर्य, बालाकोट पर सर्जिकल स्ट्राइक, विंग कमाण्डर अभिनंदन की सकुशल वापसी और आतंकवादियों एवं पाकिस्तान को सबक सिखाने की गर्जना को ही मुख मुद्दे बना रही है. मोदी है तो मुमकिन हैइसी लिए कहा जा रहा है. अभी और भी ऐसे नारे, पोस्टर, गीत, तथा अन्य प्रतीक सामने आएंगे. भाजपा लोकतांत्रिक चुनाव नहीं, बल्कि राष्ट्रवाद, देशभक्ति, और फौज के राजनैतिक इस्तेमाल से राजनैतिक युद्ध जीतने की तैयारी में है.

यह उसी दिन निश्चित हो गया था जब पुलवामा में सीआरपीएफ की बटालियन पर हमला हुआ और चालीस जवान शहीद हुए. देश भर में गम और गुस्सा भड़काना लाजिमी था.  हमारी सेना बहुत समय से कश्मीर और अन्यत्र भी पाकिस्तान पोषित आतंकवादियों से सतत युद्ध लड़ रही है. हर हफ्ते हमारे जवान शहीद होते हैं. पुलवामा का हमला सैनिकों पर सबसे बड़ा घातक हमला था. चुनाव का समय न होता तो तिरंगे में लिपटे शहीदों के शवों को ससम्मान विदा करने के बाद कई दिन तक शहर-शहर-गली-गली पाकिस्तान के खिलाफ जहर उगलते और युद्धोन्माद फैलाते छोटे-छोटे जुलूस नहीं निकल रहे होते. ऐसे जुलूस तब तक निकलते रहे और टीवी चैनल भी गरजते रहे जब तक कि भारतीय वायु सेना ने बालाकोट के आतंकवादी ठिकाने पर हमला नहीं कर दिया. उसके बाद विजय जुलूस निकाले गये. क्या यह कहने की जरूरत है कि युद्धोन्माद और बदले की कार्रवाई के लिए सायास राजनैतिक वातावरण बनाया गया था?

सायास नहीं होता तो हमारे बड़बोले प्रधानमंत्री 26 फरवरी की तड़के बालाकोट पर हमले के दिन ही चुरू की अपनी सभा में “सौगन्ध मुझे इस मिट्टी की/मैं देश नहीं मिटने दूंगा/ मैं देश नहीं झुकने दूंगाकी गर्जना बार-बार नहीं करते. सेनाओं के लिए देश के आम जन में जो सम्मान भाव है, उसका भावुक राजनैतिक इस्तेमाल उसके बाद से वे और उनके सभी नेता हर रोज कर रहे हैं. ऐसा लगता है कि वायु सेना ने बालाकोट आतंकी शिविर पर हमला देश के लिए नहीं, मोदी और भाजपा के लिए किया है. गोया देश सेना के नहीं, मोदी के सुरक्षित हाथों में है.

यही नहीं, मोदी समेत भाजपा के बड़े नेता यह भी बार-बार दोहरा रहे हैं कि यूपीए के शासन में जब भी बड़े आतंकी हमले हुए, तब हमारी सेनाएँ जवाबी हमला करना चाहती थीं लेकिन मनमोहन सरकार ने उन्हें अनुमति ही नहीं थी. वे सन 2016 में उरी पर हुए आतंकवादी हमले के बाद की गई सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट हमले को देश और सेना की नहीं, भाजपा और मोदी की बहादुरी के रूप में पेश कर रहे हैं. गृह मंत्री राजनाथ सिंह तो कह रहे हैं कि दो नहीं, तीन सर्जिकल स्ट्राइक की गई हैं लेकिन तीसरी के बारे बताऊंगा नहीं.        

यह भी गौर करना जरूरी है कि पुलवामा आतंकी हमले और बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक से पहले मोदी और उनकी पार्टी कई नकारात्मक्ताओं से घिरी हुई थी. तीन राज्यों में भाजपा सत्ता खो चुकी थी. यूपी जैसे बड़े राज्य में सपा-बसपा का गठबंधन उनके लिए कठिन चुनौती बना. किसानों की नाराजगी भारी पड़ रही थी. भाजपा के भीतर दलित नेताओं का गुस्सा फूट रहा था. गठबंधन के साथी बड़ा दवाब बना रहे थे और कुछ साथ छोड़ चुके थे. विपक्ष एकजुट होने की कोशिशों में लगा था. 2014 के बड़े-बड़े वादों का हिसाब भी कई कोनों से मांगा जा रहा था. बेरोजगारी बढ़ने के आंकड़े डरावने हो रहे थे. राहुल गांधी ने राफेल विमान सौदे की गड़बड़ियों की तोप सीधे मोदी की तरफ तानी हुई थी.

यह विपरीत माहौल आम चुनाव में मोदी की बड़ी चुनौती बनने जा रहा था. फिलहाल हमारी सेना की बहादुरी और देश प्रेम का जज्बा उनके बचाव को आ गया है. तत्काल वे लाभ में दिखाई देते हैं लेकिन यह कवच कितने दिन उनकी आड़ बना रहेगा कहना मुश्किल है. यह अवश्य है कि वे इसी के पीछे छिप कर चुनावी युद्ध लड़ने की पूरी कोशिश करेंगे.

नरेंद्र मोदी अपने हाथ लगे तुरुप का बहुत शातिराना इस्तेमाल कर रहे हैं. विपक्ष का कौशल इसमें है कि वह कितनी जल्दी और किन मुद्दों से उन्हें लड़ाई के खुले मैदान में खींच लाते हैं. विपक्ष और सिविल सोसायटी का दायित्व है कि वे जनता को बताएँ कि देश मोदी के नहीं, सेना के हाथों में सुरक्षित है. नरेंद्र मोदी को तो जनता ने कुछ और ही जिम्मेदारियाँ दी थीं. उसे उन्होंने कितना निभाया?     


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