हमारे देश में चुनावों के दौरान जनता को
सबसे ज्यादा ठगा, भरमाया और ललचाया जाता है,
जबकि होना उलटा चाहिए था. यह समय जनता द्वारा नेताओं के कान पकड़ने,
उन्हें उनके अधूरे या भूले वादों की याद दिलाने, ज्वलंत और रोजमर्रा मुद्दों को उठाने और भविष्य की योजनाओं एवंर दृष्टि के
बारे में पूछने का होना चाहिए था.
नेता चुनाव के समय ही जनता के पास जाते
हैं. इसलिए यह समय उन्हें ठीक से अपनी बात सुनाने का, उनकी असलियत पहचानने का और उन्हें उत्तरदाई ठहराने का होना चाहिए.
अफसोस कि ऐसा नहीं होता. उलटे,
नेता जनता को ही असली मुद्दों से दूर ले जाने और अपने अनकिये-किये
पर पर्दा डालने का काम बखूबी कर जाते हैं.
अब यही देख लीजिए कि नरेंद्र मोदी और उनकी
टीम ने ‘मैं भी चौकीदार’ अभियान चला दिया है. हमारे
प्रधानमंत्री ने अपना नाम ‘चौकीदार नरेंद्र मोदी’ रख लिया है. उनकी देखा-देखी भाजपा के लगभग सारे केन्द्रीय और राज्यों के
मंत्रियों, भाजपा नेताओं और समर्थकों ने अपने सोशल मीडिया
खाते में नाम से पहले ‘चौकीदार’ लगा
लिया है. सबमें ‘चौकीदार’ बनने की होड़
लगी है.
क्यों, चौकीदार
क्यों? इसलिए कि राहुल गांधी ने ‘चौकीदार
चोर है’ चला दिया. जुमले गढ़ने में माहिर मोदी जी ने किसी सभा
में कहा था कि – ‘मैं देश के धन का चौकीदार हूँ’. राफेल सौदे में हुई अनियमतिताओं को मोदी सरकार के खिलाफ सबसे बड़ा मुद्दा
बनाते हुए राहुल गांधी ने नारा गढ़ लिया था- ‘चौकीदार चोर है.’
यह मामला जोर पकड़ने लगा तो मोदी जी की टीम ‘चौकीदार’
की प्रतिष्ठा बढ़ाने और स्थापित करने में लग गयी. सो, बकायदा अभियान चलाकर प्रधानमंत्री समेत सब भाजपाई ‘चौकीदार’
बन गये हैं.
अब सारी बहस ‘चौकीदार’ के इर्द-गिर्द घूम रही है. राहुल ‘चौकीदार चोर है’ नारे के साथ मैदान में डटे हैं तो
प्रियंका का तर्क है कि ‘चौकीदार तो अमीरों के होते हैं.’
यानी विपक्षी नेता भी ‘चौकीदार’ के खेल में उलझा दिये गये हैं. क्या खूब खेल है और कैसे चतुर खिलाड़ी!
2019 के आम चुनाव में हमें ‘चौकीदार’ चुनना है या ऐसी सरकार जो देश को संविधान
की भावना के अनुरूप चलाते हुए जनता की भलाई के लिए काम कर सके?
2014 में हमने ‘चाय
वाला’ चुना था क्या? राष्ट्रपति ने नरेंद्र
मोदी को देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई थी, चाय बेचने
वाले आदमी के रूप में नहीं.
याद ही होगा कि 2014
के चुनाव में मोदी जी अपने को ‘चाय वाला’
बताते हुए घूम रहे थे. बेची होगी उन्होंने कभी चाय, या नहीं बेची होगी. उस समय यूपी शासन से ऊबे देश को चाय बेचने वाले की
नहीं, ईमानदारी और समर्पण से इस बहुतावादी देश को संविधान की
मूल भावना के अनुरूप सरकार चला सकने वाले नेता की आवश्यकता थी. जनता को नरेंद्र
मोदी में एक नया, ऊर्जावान, बड़े-बड़े
वादों से उम्मीदें जगाने वाला प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार दिखा था. इसीलिए
उन्हें जनता ने भारी बहुमत से सत्ता में पहुँचाया.
इसलिए आज हमें जवाब ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी’ से माँगना है, ‘चाय वाला’ या ‘चौकीदार नरेंद्र
मोदी’ से नहीं.
यह वक्त है कि जनता पूछे और वे बताएँ कि पाँच
साल प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने अपने वादों पर कितना अमल किया?
वे बताएँ कि समाज में बढ़ती नफरत और मार-काट रोकने के लिए उन्होंने
क्या किया? हमारा संविधान हमें धर्म, मत,
सम्प्रदाय, रहन-सहन, अभिव्यक्ति,
आदि की जो स्वतंत्रताएँ देता है, उसकी रक्षा
के लिए उनकी सरकार ने क्या किया? रोजगार बढ़ाने के लिए क्या
काम हुआ? दलितों, किसानों, ग्रामीणों, आदि के कष्ट दूर करने के लिए वास्तव में क्या
काम किये?
लेकिन नहीं, वे
अपने को ‘सबसे अच्छा चौकीदार’ साबित
करने में लगे हैं ताकि जनता ऐसे प्रश्न न पूछे जिनका जवाब उन्हें मुश्किल में डाल
दे. ये जरूरी मुद्दे और सवाल दब जाएँ. जनता ‘चौकीदार’
के जुमले में उलझ जाए.
विमर्श बदल देने,
मुद्दों से ध्यान भटका देने, जवाबदेही टालने
में हमारे नेताओं का जवाब नहीं. मोदी जी की टीम तो इस खेल की चैम्पियन साबित हो
रही.
और, मान लें
कि मोदी जी पिछले पाँच साल सिर्फ चौकीदारी ही करते रहे तो सवाल उठाना आवश्यक है कि
फिर देश में ‘चोरियाँ’ क्यों हुईं? ‘चोर’ पकड़े जाने की बजाय भाग
क्यों गये? और जिन ‘चोरों’ की सूची रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन ने आपको दी थी,
उनके खिलाफ आपने क्या किया?
इससे बड़ा सवाल यह,
यूपीए शासन की जिन ‘चोरियों’ का हला मचा कर आप हीरो बने, उन मामलों में ‘चोरों’ को अब पकड़ा क्यों नहीं?
चूँकि मोदी जी खुद को ‘चौकीदार’ कह रहे हैं इसलिए ये स्वाभाविक सवाल बनते
हैं. वैसे, जनता को उनसे ‘प्रधानमंत्री’
के रूप में और बहुत सारे सवाल पूछने हैं.
यह चुनाव का समय है. जनता को अपने आँख-कान
खुले रखने चाहिए. ‘चौकीदार’ की बहस में मत उलझिए. देश और समाज के सामने उपस्थित बड़े-बड़े मुद्दे उठाइए.
ध्यान दीजिए कि आपको बड़बोला ‘चौकीदार’ नहीं चुनना, जनता के
प्रति जवाबदेह सरकार चुननी है.
https://thefreepress.in/people-elect-responsibile-government-not-chowkidar/
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