Friday, March 29, 2019

चुनावी शोर में गंगा की अविरलता का मुद्दा



चुनावी शोर-शराबे और राजनैतिक-प्रतिद्वंद्वियों को किसी भी तरह नीचा दिखाने की अमर्यादित-अनैतिक होड़ से लेकर अंतरिक्ष में उपग्रह को मार गिरानेमें सफलता के गौरव-गायन में, महत्त्वपूर्ण और आवश्यक मुद्दों की चर्चा तो छोड़िए, उनका जिक्र तक गायब हो जाता है. इस सप्ताह यह सूचना शायद ही कहीं दिखाई-सुनाई दी हो कि गंगा को  प्रदूषण-मुक्त कर अविरल बनाने की मांग के लिए एक और विज्ञानी अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठ गया है.

आईआईटी (खड़गपुर) और आईआईएम (कॉलकाता) से पढ़ कर निकले 48 वर्षीय चंद्र विकास जब पिछले सप्ताह हरिद्वार के मातृ सदन में अनशनकारी युवा संत आत्मबोधानंद से मिले तो उन्हें लगा कि गंगा को बचाने की इस मुहिम में उनको भी शामिल होना चाहिए. चंद्र विकास ने कहा कि जब सिर्फ 26 साल के संत आत्मबोधानंद  गंगा के लिए अपने प्राण दाँव पर लगा सकते हैं तो मैं क्यों पीछे रहूँ. वे दिल्ली जाकर बीते रविवार को जंतर-मंतर पर बेमियादी अनशन पर बैठ गये.

संत आत्मबोधानन्द के बारे में भी बताना पड़ेगा. उनकी सुधि वैसे ही कोई नहीं ले रहा था. अब तो चुनावी भड़ास निकालने का दौर है. 22 वर्ष की आयु में केरल के इस युवा ने संन्यास लिया तो बदरीनाथ की यात्रा पर निकले. हरिद्वार के मातृ सदन में स्वामी शिवानंद की संगत में गंगा नदी के साथ हो रहे अत्याचारों और उसके खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई से उनका साक्षात्कार हुआ. स्वामी शिवानन्द वर्षों से इस हेतु संघर्ष करते रहे हैं. वहीं उन्हें पता चला कि अवैध खनन से गंगा नदी को बचाने के लिए 115 दिन तक अनशन करके स्वामी निगमानंद ने 
2011 में  प्राण त्याग दिये थे. स्वामी निगमानन्द का किस्सा भी किसी को क्यों याद होगा. 

पिछले वर्ष वहीं इस युवा संत ने देखा कि स्वामी सानंद गंगा नदी की अविरलता की बहाली की मांग के लिए आमरण अनशन पर हैं. स्वामी सानंद संन्यास लेने से पहले आईआईटी कानपुर के नामी प्रोफेसर जी डी अग्रवाल के रूप में जाने जाते थे. वे  प्रसिद्ध वैज्ञानिक और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के संस्थापक सचिव भी रहे थे. बहरहाल, जब उनकी मांगों पर  कहीं सुनवाई नहीं हुई तो वे आमरण अनशन करने लगे. 82 वर्ष के स्वामी सानंद ने 111 दिन के अनशन के बाद 11 अक्टूबर 2018 को अपने प्राण त्याग दिये. 

तब तक 26 साल के हो चुके संत आत्मबोधानंद ने तय किया स्वामी सानंद के संघर्ष को वे आगे ले जाएंगे. अपने गुरु स्वामी शिवानंद को कठिनाई से राजी करने के बाद वे 24 अकटूबर 2018 से अनशन कर रहे हैं. इतने दिनों में उनकी सेहत अब काफी गिर गई है लेकिन उनका संकल्प और पक्का ही हुआ है.

तो, इन्हीं संत आत्मबोधानंद से मिलने के बाद चंद्र विकास भी अब अनशन पर हैं. क्या आपने नेताओं के भाषणों, पार्टियों के घोषणा-पत्रों, वादों ,आदि में कहीं इस बारे में सुना? मीडिया में पढ़ा-देखा?

यह तो याद होगा ही कि 2014 के चुनाव में गंगा को प्रदूषण-मुक्त करके अविरल बनाने की बड़ी चर्चा हुई थी. प्रधानमंत्री मोदी माँ गंगा के बुलावेपर वाराणसी से चुनाव लड़े थे. नमामि गंगेपर धन भी खूब व्यय हुआ. गंगा का प्रदूषण कम हुआ होता तो कुम्भ के दौरान नदी किनारे के कारखानों को दो महीने के लिए क्यों बंद करना पड़ता? गंगा की अविरलता के लिए कुछ ठोस हुआ होता तो स्वामी सानंद क्यों प्राण त्यागते? क्यों आत्मबोधानंद और अब चंद्र विकास अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठते?

जब गंगा के साथ यह सलूक है तो अपनी गोमती किससे फरियाद करे?
   


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