Friday, June 16, 2017

विद्यार्थियों के साथ यह सलूक चिंतनीय है


बांह या सीने पर काला फीता बांध कर काम करना विरोध जताने का बहुत पुराना और शालीन तरीका माना जाता है. किसी नेता के दौरे में या सभा में काले झण्डे दिखाना विरोध जताने का पुराना प्रचलन है. देश विभाजन के लिए राजी न होते महात्मा गांधी को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्यों का काले झण्डे दिखाना सिर्फ फिल्मी दृश्यों में ही नहीं दर्ज नहीं है. आजाद भारत में निर्वाचित सांसद-विधायक भी अक्सर काले झण्डे लेकर सदन में जाते हैं और सत्तारूढ़ दल के खिलाफ लहराते नजर आते हैं. आशय यह कि विरोध का यह तरीका अहिंसक ही माना जाता रहा है.

कोई दसेक छात्र-छात्राएं आठ दिन से इसलिए जेल में हैं कि उन्होंने मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी को काले झण्डे दिखाये. मुख्यमंत्री उस दिन शिवाजी से सम्बद्ध हिंदवी कार्यक्रम में भाग लेने लखनऊ विश्वविद्यालय जा रहे थे. कुछ छात्र-छात्राएं इस कार्यक्रम का विरोध कर रहे थे. उनका तर्क यह था कि विश्वविद्यालय के धन का इस्तेमाल इस तरह के कार्यक्रम में करना गलत है. वे काले झण्डे लेकर रास्ते में खड़े थे और मौका मिलते ही मुख्यमंत्री के काफिले के सामने जा खड़े हुए. काफिला कुछ मिनट रोकना पड़ा. दो लड़कियों समेत चंद युवा गिरफ्तार किये गये. धाराएं ऐसी लगा दीं कि अदालत से उनकी जमानत न हो सकी. उन पर मुख्यमंत्री की सुरक्षा को खतरे में डालने का आरोप है. सभी जेल में हैं और आठ को विश्वविद्यालय से निलम्बित कर दिया गया है.

मुख्यमंत्री की सुरक्षा को खतरे में डालना निश्चय ही गम्भीर बात है लेकिन यह अपराध’ उन युवाओं का कैसे हो गयायह चूक तो सरासर सुरक्षा में लगे अमले की है. मुख्यमंत्री के लिए सुरक्षा दस्ते का बड़ा और चौकस इंतजाम रहता है. काले झण्डे लिये सड़क किनारे खड़े युवा अगर काफिले के सामने आ गये तो सुरक्षाकर्मियों की चूक से उन्हें मौका मिला. वर्ना तो परिंदा भी पर नहीं मार सकता. शुरू में इसे सुरक्षा में असावधानी का ही मामला माना गया था और कुछ पुलिस वाले निलम्बित भी किए गये थे लेकिन बाद में छात्र-छात्राओं पर गम्भीर धाराएं लगा दी गयीं.  

विश्वविद्यालय जैसी जगहजो हमेशा से राजनैतिक-सामाजिक चेतना की उर्वरा भूमि रही हैंकिसी मुद्दे पर कुछ युवाओं का विरोध में आना इतना गम्भीर मामला क्यों बना दिया गयावामपंथी दलों से लेकर भाजपा तक की छात्र-इकाइयां कॉलेजों-विश्वविद्यालयों में खूब सक्रिय रहती हैंआंदोलन और विरोध-प्रदर्शन करती हैं. आज के बहुत से राजनैतिक नेता विश्वविद्यालयों के युवा संगठनों से पनपे हुए हैं. तोमुख्यमंत्री को काले झण्डे दिखाते उन युवाओं  पर इतनी गम्भीर धाराएं क्यों लगा दी गयीं कि जमानत ही न होविश्वविद्यालय प्रशासन ने उनको निलम्बित क्यों कर दियाक्या पहली बार विद्यार्थियों ने किसी को काले दिखाये हैंकुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय आये थेतब वहां के कुछ छात्रों ने उनके विरोध में नारे लगाये थे. उन छात्रों के खिलाफ भी ऐसी कड़ी कार्रवाई नहीं की गयी थी.

किसी भी शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन कोविशेष रूप से छात्रों के प्रदर्शन को इस तरीके से कुचला जाना अलोकतांत्रिक ही कहा जाएगा. क्या सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन यह चाहते हैं कि प्रतिरोध में कहीं कोई आवाज ही न उठेविद्यार्थियों के साथ यह सलूक चिंता में डालने वाला है.   

(नभाटा, लखनऊ, 17 जून, 2017)

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