गोरक्षपीठ के युवा महंत आदित्यनाथ योगी उत्तर प्रदेश का
मुख्यमंत्री बनने के बाद से शासन-तंत्र की कार्य-प्रणाली बदलने की कोशिश में लगे है.
उधर इस तंत्र पर काबिज अफसर योगी के ही सिर सत्ता का नशा चढ़ाने में कोई कसर नहीं
छोड़ रहे.
मई मास में यह दूसरी बार हुआ है कि अधिकारियों के
अति-उत्साह के कारण मुख्यमंत्री की योगी या संन्यासी छवि खण्डित हुई है. वे अपने
कार्यक्रम की बजाय उसकी व्यवस्था के कारण हास्यास्पद-चर्चा में हैं. ताजा खबर
कुशीनगर से आई है, जहां मैनपुर कोट गांव के गरीब मुसहरों से
कहा गया कि नहा-धो, साफ-सुथरे होकर मुख्यमंत्री के कार्यक्रम
में जाना. करीब सौ परिवारों की इस बस्ती में हरेक को साबुन की एक-एक टिकिया और
शैम्पू के एक सैशे बांटे गये. तीन दिन पुरानी यह खबर अब राष्ट्रीय सुर्खी है.
इससे कोई बीस दिन पहले देवरिया से आयी एक खबर भी खूब
सुर्खियां बनीं. पाकिस्तानी सैनिकों की बर्बर्ता से शहीद हुए बीएसएफ के एक हवलदार के परिवार से
मिलने जब योगी देवरिया में उसके घर गये तो वहां आनन-फानन में एसी लगाया गया, सोफा मंगवाया गया और कालीन बिछाया गया. मुख्यमंत्री के वहां से जाते ही यह
सारा सामान उतनी ही तेजी से हटा भी लिया गया था.
शहीद के गरीब परिवार वालों से इस पर हैरानी और नाराजगी जतायी
थी. सोशल साइट्स और मीडिया में इस पर खूब चुटकियां ली गयीं. शासन या मुख्यमंत्री
कार्यालय की ओर से इस पर न कोई सफाई दी गयी, न ही ऐसा करने वाले किसी अधिकारी पर कोई
कार्रवाई हुई थी.
बीते गुरुवार को मुख्यमंत्री को कुशीनगर जिले के मैनपुर कोट
गांव से इंसेफ्लाइटिस रोग से बचाव के टीके लगाने की शुरुआत करनी थी. पूर्वांचल के
इस इलाके में हर साल इस खतरनाक बीमारी से सैकड़ों बच्चों की जान जाती है और बड़ी
संख्या में अपंग होते हैं. मुख्यमंत्री का इलाका होने के कारण इस बार बड़े पैमाने
पर टीकाकरण की योजना बनी है.
मुख्यमंत्री का दौरा तय होते ही गांव में अचानक शौचालय और
सड़क बनने लगे, सफाई होने लगी और बिजली के तार भी बिछाये
गये. योगी के दौरे के दो दिन पहले मुसहर बस्ती में साबुन और शैम्पू बांटे गये.
उनसे कहा गया कि मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में साफ-सुथरे बन कर जाना. अत्यंत गरीब
मुसहर लोग मेहनत-मजदूरी करके किसी तरह जीते हैं और बहुत गंदी बस्तियों में रहने को
मजबूर हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के इन मुसहरों में गरीबी का आलम यह है कि
वे चूहे तक पकड़ कर खाते हैं.
मुख्यमंत्री के दौरे के बाद गांव वालों ने मीडिया वालों को
साबुन की टिकिया और शैम्पू के सैशे दिखाते हुए यह बात बतायी. कुछ अखबारों में मामला
छपने के बाद अब कोई इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं. जिला प्रशासन कहता है कि
आंगनवाड़ी कार्यक्रम के स्वच्छता अभियान में सामान बांटा गया होगा. आंगनवाड़ी
कर्मचारी इससे अनजान बनते हैं.
देवरिया के बाद कुशीनगर के इस हास्यास्पद वाकये से एक बात
साफ है कि अधिकारी सत्ता की कीमीयागीरी से नये मुख्यमंत्री को खुश रखने की नई-नई
तरकीबें निकाल रहे हैं. वे योगी को दिखाना चाहते हैं कि प्रदेश का गरीब मुसहर भी
अब इतना सफाई पसंद हो गया है कि शौचालय से निपट कर, नहा-धो कर,
खुशबू लगाकर आपके कार्यक्रम में आता है, कि इस
प्रदेश के गरीब शहीद का परिवार आपके स्वागत में अपना शोक भूल कर लाल-कालीन बिछवाता
है, एसी लगवाता है, सोफा मंवा कर उस पर
गेरुआ वस्त्र सजाता है.
यह अलग बात है कि आदित्यनाथ योगी पूर्वांचल के उसी गरीब
इलाके से पिछले काफी समय से सांसद हैं. माना जाना चाहिए कि वे अपने इलाके की
गरीबी-अमीरी के हालात से परिचित होंगे. अफसरों की अद्भुत तेजी और क्षमता का अन्मान
उन्हें है या नहीं, यह अभी देखा जाना है. फिलहाल ऐसे कोई संकेत
नहीं हैं उन्होंने कोए संज्ञान लिया हो.
अपनी सामाजिक और प्रशासनिक सक्रियता के लिए चर्चित एक
वरिष्ठ आईएसएस अधिकारी कहते हैं कि पहले ऐसा नहीं होता था. अब अफसरों ने चापलूसी
की हदें पार कर ली हैं. योगी जी ऐसे हैं नहीं लेकिन चूंकि देवरिया मामले में
उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की तो कुशीनगर के अफसरों का भी उत्साह जाग गया होगा.
मुख्यमंत्री-निवास में एक संन्यासी ‘गृह-प्रवेश’ के अनुष्ठान का सजीव प्रसारण करने वाले
चैनलों के उत्साही रिपोर्टर उस समय बता
रहे थे कि योगी ने अपने शयन कक्ष से एसी हटवा दिये हैं, वे
भूमि-शयन करते हैं और कार्यालय में उनके बैठने वाली कुर्सी मात्र लकड़ी की है,
जिस पर गेरुआ वस्त्र पड़ा रहता है.
किसी मठ के महंत के लिए यह सामान्य बात है, यद्यपि योगी गोरक्षपीठ के अतिथि कक्ष में सोफे पर बैठने से भी परहेज नहीं
करते. सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी वे अन्य अतिथियों के साथ सोफे या गद्दीदार कुर्सी
पर बैठ जाते हैं. शहीद परिवार के यहां मौजूद किसी भी कुर्सी या जमीन पर बैठ जाने
में भी उन्हें दिक्कत या असहजता नहीं होती. लेकिन देवरिया में अधिकारियों ने न
केवल सोफा मंगवाया, बल्कि सोफे और मेज पर गेरुआ वस्त्र भी
बिछवाया. मुख्यमंत्री के सार्वजनिक कार्यक्रमों का मंच भी आजकल गेरुआ ही दिखाई
देता है.
मशहूर इतिहासकार और स्तम्भकार रामचन्द्र गुहा ने चंद रोज
पूर्व ‘टेलीग्राफ’ में प्रकाशित अपने कॉलम में योगी
के देवरिया-प्रकरण के संदर्भ में महात्मा गांधी और घनश्यामदास बिड़ला का एक
ऐतिहासिक प्रसंग दर्ज किया है. लॉर्ड इर्विंग के बुलावे पर गांधी जी दिल्ली पहुंचे
तो घनश्यामदास जी ने बिड़ला-निवास में रुकने का आग्रह किया. गांधी जी ने कहा कि वे
भंगी बस्ती में ठहरेंगे. तब बिड़ला जी ने भंगी बस्ती की झोपड़ी
में गांधी जी के लिए बिजली और पंखे का इंतजाम करना चाहा. गांधी जी ने अपने सचिव
प्यारे लाल के माध्यम से कहलवाया कि यदि भंगी बस्ती में पंखा-बिजली हमेशा लगी रहे
तो ठीक वर्ना सिर्फ मेरे लिए करने की जरूरत नहीं.
सन 1946 में घनश्यामदास बिड़ला पर इस जवाब से घड़ों पानी पड़
गया होगा लेकिन सन 2017 के उत्तर प्रदेश में महात्मा गांधी के आदर्शों का उल्लेख
भी एक मजाक ही कहलाएगा. आज तो एक शहीद के घर मुख्यमंत्री के लिए थोड़ी देर के लिए
चट-पट सारी सुविधाएं जुटा देने और उनके जाते ही हटा लेने तथा साबुन-शैम्प्पू से
मुसहरों को महकाकर मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में भिजवाने को प्रशासनिक कुशलता की
पराकाष्ठा माना जा रहा है.
देखना यह है कि तड़के उठ, योग-ध्यान से
निपट कर सात-आठ बजे सरकारी काम-काज में जुट जाने वाले योगी प्रदेश के अफसरों को
बदल पाते हैं या उनकी करगुजारियों के सामने स्वयं नतमस्तक हो जाते हैं.
-नवीन जोशी
(Firstpost/Hindi, May 29, 2017)
No comments:
Post a Comment